Friday, 25 August 2017

एक पत्र रवीश जी के नाम

प्रिय रवीश जी,
     कल आपको पोस्ट पर मैंने कुछ प्रश्न किये थे | जबाब में आपकी ट्रोल आर्मी अभी तक मैदान में आपकी मा बहन कर रही है | कुछ लोग तो सीधे इनबॉक्स में आ धमके हैं | पूछ रहे हैं मेरी क्वालिफिकेशन क्या है आप जैसे मठाधीश पर सवाल उठाने की | अब मैं हर किसी को जबाब नहीं दे सकता | इसीलिए ये पत्र आपके नाम लिख रहा हूँ | सीधे आप तक जबाब पहुचे ये तरीका आपसे ही सीखा है गुरुवर |
                            

     बचपन मैं मेरे शिक्षक ने हमारी कक्षा में डाकू अंगुलिमाल की कहानी सुनाई | क्लास में सभी नतमस्तक थे सिवा मेरे | क्युकि मुझे शुरुवात से ही प्रश्न करने की आदत थी | मैंने सुना था शिक्षा प्रश्न करके ही हासिल होती है | ज्ञान के स्त्रोत उपनिषद इसी तरह के प्रश्नों का उत्तर हैं |

     अत: मैंने गुरूजी से पूछा गुरूजी "गुरूजी क्या कोई अन्य इस घटना का साक्षी था ?  क्या ऐसा नहीं हो सकता कि बुद्ध ने उन्हें राजाश्रय का भरोसा दिलाया हो | क्युकि जिस तरह के अपराध उसने किये थे उसकी तो फांसी ही एकमात्र सजा हो सकती थी | अहिंसा के खोखले सिद्धांत के नाम पर उन्होंने एक दुर्दांत अपराधी को सजा से बचा लिया | क्या ये बुद्ध और अंगुलिमाल की आपस में डील नहीं हो सकती | फिर बुद्ध और अंगुलिमाल के अतिरिक्त इसका साक्षी कौन था ? जो बुद्ध ने कहा उसी को सच मान लिया |"

     उस समय इस्लामिक आतंकवादी बिन लादेन की कब्र खोदी जा रही थी | अमेरिका उसे तोरा बोरा में ढूढ़ रहा था | तो मैंने अपना दूसरा प्रश्न किया ...

     "यदि बुद्ध के अहिंसा के सिद्धांतों में इतनी ही शक्ति है तो क्यों अमेरिका अरबो खरबों रूपये अफगानिस्तान में फूंक रहा है | क्यों नहीं दलाई लामा जो बौद्धों के सर्वोच्च गुरु हैं जाकर बिन लादेन को सत्य और अहिंसा के पथ पर चलने का उपदेश देते ? क्या उन्हें अपनी जान का भय है या अहिंसा के सिद्धांतों में खुद उनका भरोसा नहीं रहा ? "

     गुरूजी के पास इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था | वो बहस थोड़ी सी तल्ख हो गई | उन्होंने सीधे मेरे परिवार पर प्रश्न करना शुरू किया | मेरे दुर्भाग्य से वो बौद्ध थे इसीलिए बुद्ध की आलोचना सुन न सके | प्रतिउत्तर देना उनके वश में नहीं था इसीलिए उन्होंने बुद्ध के विपरीत रास्ता चुना | यानि कि हिंसा का | मुझे मारपीट पर मुर्गा बना दिया |

     हालाँकि मैं इसे बुद्ध के विपरीत रास्ता नहीं मानूंगा क्युकि बुद्ध और अहिंसा दो विपरीत ध्रुव हैं | आचार्य कुमारिल भट्ट ने जब बौद्ध पन्थाचार्यों की शास्त्रार्थ में धज्जियाँ उड़ा दी तब बौद्ध लोगों ने उन्हें मारने के लिए दौड़ा दिया | ये बुद्ध की अहिंसा थी ये थे उनके उपदेश | खैर जाने दीजिये |

     उस दिन मुझे दो सीख मिली | प्रथम निर्दोष बन जाओ | अनजान होकर भोले होने का स्वांग करो | अधरों पे मोहिनी मुस्कान रखों | अपने प्रश्न कुछ इस तरह पूछों कि सामने वाले को लगे आपको वास्तव में ज्ञान की ललक है | लोग तुम्हारी मानसिकता पर सवाल ही न उठा सकें | जब कोई सवाल उठाने की कोशिश करे तो वही चार लोग आके कहें कि " Awww .. He is such a cute guy .. He can't do it. " और फिर पाउट करने लगें |

     द्वितीय ढोंगी हो जाओ | अन्दर से बिन लादेन बनों और ऊपर से बुद्ध | चेहरा ओढ़ लो | प्याज की तरह पर्त वाले बनों | ताकि कोई समझ ही न पाए तुम्हारा असली रूप क्या है ? सामने से बुद्ध की तरह ज्ञान यज्ञ करते रहो | अपने एजेंडा का प्रचार करते रहो | यदि कोई प्रश्न खड़ा करे तो उस पर मोहिनी मुस्कान का जादू चला दो | फिर अपने अनुयाइयों को भेज दो | अपने विरोधियों को तहस नहस कर दो | उन्हें मार दो उनकी आवाज को दबा दो |

    रवीश जी कल आपकी वाहियात पोस्ट पढ़ी और आदतानुसार उस पर कुछ चुभते प्रश्न कर लिए | अब गुरूजी की तरह आपमें भी हिम्मत नहीं थी उनका सामना करने की | तो आपने भी गुरूजी का रास्ता अपनाया | बजाय सामना करने के आपने अपनी ट्रोल आर्मी को भेजना उचित समझा | वाह रे बुद्ध ! देखी तेरी बौद्धिकता भी | इनबॉक्स भी भर दिया इधर कमेन्ट बॉक्स भी |

     सर मुझे आपसे बस इतना पूछना है कि क्या आप खुद को होली काऊ समझते हैं | या आप बुद्धत्व को प्राप्त कर चुके हैं | इसीलिए आप पर सवाल नहीं उठाये जा सकते ? आप प्रश्न करने वालों से क्यों डरते हैं ? संवाद द्विपक्षीय होता है | संवाद को एकपक्षीय बनाकर इसकी आत्मा का गला क्यों घोटना चाहते हैं आप ? आपके भक्त लगातार मेरी आईडी रिपोर्ट कर रहे हैं | आप क्यों मेरी आवाज को बंद करना चाहते हैं ? आपको क्यों मेरा बोलना खल रहा है ?

                               

     आप क्यों किसी के बोलने से डरते हैं ? ऐसा क्यों लगता है आपको कि कोई यदि कुछ बोलेगा तो आपकी पोल खुल जाएगी ? इसीलिए इस आवाज का गला घोंट दो | इसे गाली दो | इसे धमकी दो | इसे बदनाम करो | इसे मेसेज करो | पर्सनल अटैक करो | कुछ भी करो पर बोलने मत दो | सवाल मत पूछने दो |

     लेकिन मैं तो पूछूँगा | आप भले ही गालियाँ दिलवाओ या भद्दे कमेन्ट करवाओ | पर मैं प्रश्न पूछूँगा आपसे ? मैं पूछूँगा आपसे कि आपके पास इतना पैसा आता कहाँ से है जो आपने इतने ट्रोल्स पाल रखे हैं ? कितना कमीशन मिलता है बृजेश पांडे से आपको जो उनके खिलाफ बोलने में आपकी जीभ तालू से चिपक जाती है ? नक्सलियों पे सेना का प्रयोग क्यों नहीँ किया जाये ? कश्मीर से सेना क्यों हटाई जाए ? बंगाल में कवरेज करने कब जायेंगे आप ? केरला में हत्यारों पर कब बोलेंगे आप ? AMU में महिला पत्रकार की में हैंडलिंग पर कब मोमबत्ती जलाएंगे आप ?  राजेश की हत्या पर #NotinMyName कैम्पेन कब करेंगे सर ?

     हालाँकि मैं जानता हूँ आप इसका उत्तर कभी नहीं लिखेंगे | क्युकि आप सही मायनों में बुद्धत्व को प्राप्त कर चुके हैं | किन्तु सर आज आइना जरूर देखिएगा | आपको कालिख स्पष्ट नजर आएगी | साथ में अन्दर का बिन लादेन भी दिख जायेगा आपको | क्युकि लाख चेहरे ओढ़ ले इन्सान किन्तु आइना सारे मेकअप हटा ही देता है |
-अनुज अग्रवाल

8 comments:

  1. असल में वामपंथ की शि‍क्षा ही कुछ ऐसी है कि‍ उसमें रचनात्मक कुछ भी नहीं होता। अच्‍छी भली व्‍यवस्‍था चाहे वो सामाजि‍क हो, आर्थि‍क हो, या प्रशासनि‍क या और कोई उसे वि‍ध्‍वंस के कगार पर लाकर कानूनहीनता की स्‍थि‍ति‍ में पहुँचा देना यही वामपंथ का मुख्‍य ध्‍येय होता है। कि‍स ऑफ लव, ब्रा फ्री डे, भारत से आजादी इसके कुछ अनुपम उदाहरण हैं। रवीश कुमार इसी वामपंथ की परंपरा के वाहक हैं। इस वामपंथ का सबसे अच्‍छा पहलू है इसकी लच्‍छेदार मनमोहक बातें। गर आप भी ध्‍यान से सुनें तो मोहि‍त हुए बि‍ना रह पायेंगे। पर कुल मि‍लाकर ये वामपंथ हवा हवाई अवधारणा से ज्‍यादा की औकात नहीं रखता यही कारण है कि‍ वि‍श्‍व के अधि‍कांश देशों से धकि‍याया लति‍याया गया ये वामपंथ इस समय ‘भगवान के अपने देश’ को छोड़कर जमींदोज होने को है। चूंकि‍ भारत में 2014 में जो सरकार आयी है वो रवीश कुमार के वामपंथ के वि‍परीत वि‍चारधारा वाली है इसलि‍ये रवीश का रोजगार चल रहा है अन्‍यथा जि‍स तरह से एनडीटीवी से लोगों को बाहर का रास्‍ता दि‍खाया जा रहा है उसकी रौ में बहते हुए रवीश कुमार को भी चलता कर दि‍या जाने की संभावना अत्‍यंत बलवती थी। उसी सरकार के वि‍रोधि‍यों कि‍ बदौलत रवीश कुमार अंतर्जाल के ‘सड़क’ पर घूमते दि‍ख रहे हैं अन्यथा वे कब के नेपथ्‍य में फेंक दि‍ये जाते।

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    1. वामपंथ के किले ढह रहे हैं धीरे धीरे .. अंतिम सांसे ले रहा है वामपंथ अब

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    2. देश द्रोही है यह रवीश कुमार आपका प्रश्न उचित है

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    3. खुद के लिए बेज्जती कमा रहे हैं ..

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  2. देशद्रोहियो से प्रश्न नही पूछना डंडे के यार है ये देशद्रोही।

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    1. ये तमगा हम क्यों दे ..

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  3. गोदी मीडिया के भक्त का तमगा मिला कि नही...����

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    1. हाँ अच्छी खासी गालियों के साथ मिला है :D

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