Wednesday, 6 December 2017

इतिहास के पन्नों में अयोध्या

     6 दिसंबर 1992 इतिहास में दर्ज ये एक तारीख मात्र नहीं है | ये हो भी नहीं सकती | अपने आप में इतिहास समेटे है ये दिन | 500 सालों का इतिहास | अपने रामलला की जन्मभूमि को स्वतंत्र कराने का इतिहास | उसके लिए दसियों युद्ध सैकड़ो लड़ाइयों का इतिहास | लाखों बलिदानों का इतिहास | अपनों द्वारा छली गयी और तमाम राजनैतिक षड्यंत्रों का शिकार रही पुनीत पावन #अयोध्या भूमि का इतिहास है ये | ये सरयू में बहे उन हुतात्माओं के लहू का इतिहास है जिसने अपने भरतवंशीय पुत्रों के रक्त को पुकारा और भरतवंशियों ने अपनी शिराओं में दौड़ते इसी लहू से जन्मभूमि का आज के दिन तिलक कर दिया |



     एक धर्मांध कट्टरपंथी विदेशी आक्रान्ता भारत आता है शबाब और शराब के नशे में डूबी हुए दिल्ली की लोदी सल्तनत उसे एक मामूली लुटेरा समझती रही | वो काबुल से अपने खच्चरों पर बैठ कर आया और दिल्ली के सुलतान की सल्तनत के परखच्चे उड़ा कर चला गया | 300 सालों की गुलामी से छिन्न-भिन्न, हमारी बची खुची, टुकडो में बंटी किन्तु अपने स्वार्थ लिपसा में डूबी #राजशाही उससे लड़ने की हिम्मत न जुटा सकी | एक राणा सांगा ने जरूर खानवा आकर उसे ललकारा पर हाय रे दुर्भाग्य अपने ही सहोदरों ने धोखा दे दिया |

     निश्छल भारतवासी भी उसकी कुटिल चालों को नहीं समझ सके | या सच अगर लिखूं तो कोई हो नृप हमें का हानिवाली मानसिकता ले डूबी | वरना क्या कारण था जो तोमरों की सेना बाबर से जा मिली | राणा सांगा को दक्षिण के महान साम्राज्यों से कोई मदद नहीं मिली ? भाषायें अलग हैं पर भारतीय एक हैं | भारतवर्ष भेषभूषा से भिन्न किन्तु सांस्कृतिक और राजनैतिक रूप से #अखंड है | महान आचार्य चाणक्य की ये सीख हम क्यों भूल गए ?

     1527 में बाबर खानवा का युद्ध जीतता है और 1528 में वो श्री राममंदिर तुडवा कर मज्जिद चिनवा देता है | क्यों ? क्युकि उसे उसके लक्ष्य का पता होता है | वो जानता था कि ये मंदिर ही भारत की एकता का प्रतीक है | श्रीरामलला जन-जन के आराध्य हैं | दुष्ट रावण के संहार करने की प्रेरणा देने वाले हैं | यदि इस शक्ति के प्रतीक श्री राम के पवित्र मंदिर को अगर उसने तहस नहस कर दिया तो उसकी सल्तनत को चुनौती देने की हिम्मत कौन करेगा ?

     चुन चुन के उसने और उसके वंशजो ने मंदिरों को ढहाया ये बताने के लिए देखो तुम्हारा खुदा तुम्हे नहीं बचा सकता | गौरव और शक्ति की प्रतीक प्रतिमाओं को मज्जिद की सीढ़ियों में चिनवा दिया । ये जताने के लिए कि तुम्हारे #शक्ति के प्रतीक खोखले हैं | मुग़ल इसमें सफल भी रहे | क्युकि शक्ति उन मूर्तियों में थी नहीं | शक्ति तो हमेशा जनता की भुजाओ में निहित थी | वो जनता जो अपने स्वार्थ के चलते अपने सामाजिक कर्तव्यों को भुला बैठी थी | अरे खुद श्री राम ने रावण को अकेले नहीं मारा | उसके लिए सुग्रीव, हनुमान, अंगद, नल-नील और यहाँ तक कि नन्ही गिलहरी तक ने सहयोग किया | श्री राम ने जंगलों से ब्रह्मास्त्र नहीं छोड़ा रावण पर | उनके सहयोग के लिए जनता आगे आई | उसकी मदद से श्रीराम ने लंका फतह की |

     खैर भारत में सारे बुजदिल नहीं रहते थे | कुछ लोग थे जिनकी शिराओं में उनके पूर्वजों का खून था | कुल 1 लाख 73 हजार लाशें गिरने के बाद ही मीर बांकी मंदिर गिरा पाया | देवीदीन पांडे, राणा रणविजय सिंह, रानी जयराज कुमारी, स्वामी महेश्वरानंद आदि लोगों के राम जन्मभूमि की स्वतंत्रता के लिए समय समय पर तमाम छोटे-बड़े युद्ध लड़ें और अपनी क़ुरबानी दीं | अकबर के राज्य में लगभग 20 हमले हुए जिसके परेशान अकबर ने वहां पूजन की अनुमति दी |

     जहागीर और शाहजहाँ ने अपने बाप दादो के यथास्थिति वाले फैसले को ही आगे बढाया पर 1658 में दिल्ली की गद्दी पर सत्तानशीं टोपियाँ सीकर अपनी जिन्दगी जीने वाला कथित महान सूफी संत औरंगजेब मुग़ल सल्तनत की छाती पर होने वाली #बुतपरस्ती को सहन नहीं कर सका | उसने जाबांज खान के नेतृत्व में अयोध्या पर आक्रमण कराया | हालाँकि अपने इरादों में औरंगजेब सफल नहीं हुआ | गुरु गोविन्द सिंह ने जाबांज खान को अल्लाह से मिलवा दिया |

     इस हार के बाद औरंगजेब 6 साल तक जन्मभूमि की तरफ आँख उठाने की हिम्मत न कर सका | 1664 में अपनी शक्ति एकत्र कर रक्त पिपासु औरंगजेब ने अयोध्या पर आक्रमण किया | मंदिर की रक्षा के लिए 10 हजार से ज्यादा हिन्दुओं ने अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया | किन्तु वो विफल रहे | जन्मभूमि एक बार फिर परतंत्र हुई | राम चबूतरा तोड़ दिया गया | पर हिन्दुओ ने हार नहीं मानी |

     संघर्ष आगे चलता रहा | राजा गुरुदत्त सिंह और राजकुमार सिंह ने इसे दासता से छुड़ाने के प्रयास किये | 1751 तक ये मंदिर कभी अपने कब्जे में कभी जाहिल लुटेरों के कब्जे में आता जाता रहा | मराठों ने अफगानियों के खिलाफ युद्ध लड़ा | पर दुर्भाग्य से वो #पानीपत में हार गए और मंदिर स्वतंत्र कराने का सपना फिर से सपना बन कर रह गया | इसके लगभग 100 साल तक शांति रही | फिर 1854 से 1856 बाबा रामचंद्र दास और बाबा उद्धव दास ने लखनऊ के नबाबो कमश: नसीरुद्दीन हैदर और वाजिद अली शाह से 5 युद्ध किये |

     फिर आया 1857 ये वो समय था जब देश में अंग्रेजों के विरुद्ध आज़ादी का बिगुल फूंक चुका था | हिन्दू मुस्लिम कंधे से कन्धा मिलाकर अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे | ऐसे में विवाद की जड़ को खत्म करने के उद्देश्य से मुस्लिम नेता अमीर अली ने मुस्लिमों को समझाकर अयोध्या की कमान बाबा #रामचन्द्रदास को देने का निर्णय किया | हिन्दुओं के आराध्य का भव्य मंदिर अयोध्या में बने इस पर सभी मुस्लिम राजी थे | किन्तु हाय रे दुर्भाग्य अपनी फूट डालो की नीति के तहत अंग्रेजों ने बाबा रामचंद्रदास और आमिर अली दोनों को एक पेड़ पर लटकवा दिया | राम मंदिर मुद्दे को सौहार्दपूर्ण को हल करने का ये शायद आखिरी मौका था |

     1886 में इस मुद्दे पर एक याचिका अंग्रेजो के समक्ष दाखिल की | पर अंग्रेंजों ने इस पर कुछ निर्णय करने से इंकार कर दिया | 23 दिसंबर 1941 को यहाँ पूजा की अनुमति मिल गयी | फिर 1949 को न्यायलय में वाद दायर किया गया | 7 अक्टूबर 1984 को अयोध्या में मंदिर पुन: निर्माण का संकल्प लिया गया | 1 फरवरी 1986 को बाबरी ढांचे में लगा ताला हटा दिया गया | 19 नवम्बर 1989 वो एतिहासिक दिन था जब एक #हरिजन ने श्रीराम मंदिर की नींव का पहला पत्थर रखा | 1990 में बात काफी आगे बढ़ी | 30 अक्टूबर को विहिप ने कार सेवा की घोषणा की |

     उस समय मुलायम सिंह की सरकार थी | लाखों लोग उस दिन अयोध्या में थे | पूरी कोशिश थी सरकार की कि अयोध्या में कारसेवक प्रवेश न कर पायें | पर रामभक्तों ने वहां मौजूद हर बैरियर को तोड़ते हुए कारसेवा की | उसी दिन गोली चली और कई रामभक्तों ने अपनी जानें गवाईं | जिन लोगो ने प्राण गवाये उसमे #कोठारी बंधू भी शामिल थे | अपने सीने पर गोलियां खाते समय उनकी उम्र 18 और 20 साल थी |

     ये कुर्बानियां बेकार नहीं गयी | उनकी मृत्यु देश भर के हिन्दुओं की आत्माओं को झकझोर गयी | जिसकी परिणिति हमें 6 दिसंबर 1992 को दिखाई दी | जब लाखों रामभक्तों के समूह ने फतह करते हुए 500 साल की गुलामी के प्रतीक उन 3 गुम्मदों को जमीदोज कर सदियों से चली आई सांस्कृतिक वर्चस्व की लड़ाई में एक मील का पत्थर स्थापित किया | एक लक्ष्य उस दिन हमने पाया |



     पर मित्रो अभी पूरा लक्ष्य सधा नहीं है | बहुत कुछ है जो पाना अभी बाकी है | मंदिर की सौगंध खाने वालों ने शायद उन लाखो हुतात्माओ के बलिदान को बिसरा दिया होगा, पर हिन्दू समाज कभी उन वीरो को नहीं भूलेगा | वो सौगंध पूरी होकर रहेगी जो #रामलला को साक्षी मानकर हमारे पूर्वजों ने खाई थी | एक इतिहास उस दिन लिखा गया था | एक इतिहास लिखना अभी बाकी है | वो दिन दूर नहीं जब माननीय उच्चतम न्यायलय सभी साक्ष्यो को मद्देनजर रखते हुए अपना निर्णय देगा | और अयोध्या में मेरे और आपके सहयोग से भव्यतम श्री राम मंदिर बनेगा |
जय जय श्री राम !!

Tuesday, 19 September 2017

रोहिंग्या भारत छोडो

     पुराने ज़माने में राजा महाराजा अपने साथ एक भाट(कवि) अवश्य रखते हैं | जो हमेशा उनके साथ मौजूद रहते थे | उनका काम था रजा की प्रशंसा में कविता लिखना | इससे होता कुछ नहीं था बस राजाओ के अहम् को संतुष्टि मिलती थी | इसके एवज में उन्हें बेशुमार दौलत मिलती थी | उस इनाम के लालच में ये भाट लोग कुछ भी फेंक देते थे |



     मान लो किसी युद्ध में राजा का घोडा गिर पड़ा तो ये भाट लोग ये नहीं कहेंगे कि घोडा थक गया उसे भोजन पानी की जरूरत है वो ये कहते थे " वाह वाह सम्राट जी आपका स्टेमिना तो देखो ये घोडा मर गया आप अभी तक नहीं थके | वाह सम्राट वाह |" और 'सम्राट' जिनके पास मुश्किल से 10 हजार एकड़ की जागीर होती थी खुश होकर गले के हार तोड़ कर दे दिया करते थे |


     कालांतर में ये साइकोलॉजी की एक कला बन गई | जिससे आपको काम निकलवाना हो उसकी प्रशंसा कीजिये | खुद को उससे निर्बल और बेसहारा बताइए | और आसानी से अपना काम निकलवा लीजिये |


     हमारे यहाँ एक मास्टर साहब थे | पूरा इलाका उन्हें बड़े भले मानुष के नाम से जानता था | मास्टर थे ... ठोड़ी में हाथ डालकर काम निकलवाने वाले | पर मुझे हमेशा उनमे एक चालक व्यक्ति नजर आया | जब भी रजिस्टर बनाने से सम्बंधित कोई काम होता उन्हें या तो दस्त लग जाते या उनके खेत में पानी लगना होता था | अगले दिन वो हमारे दरवाजे पर दिखाई देते | पिताजी से कहते “अरे मास्साब नैक हमाओ जे काम कर द्यो | आप तो भोत जानकार आदमी हो | हमाओ चश्मा कल गिर गओ हमे तौ कछु दीखु न रओ |” 

     पिताजी हमारे “अरे मास्साब आओ ! आप रहन दो | हम कर देंगे |” हमारा चाय बिस्किट खर्चा अलग से होता था | अगले पांच मिनट में मास्टरनी चौका में चाय खौला रही होती थीं और लालाजी याने के हम उनके लिए बिस्किट सजा रहे होते थे | पूरी मास्टरी उन्होंने इसी तरह भैया दैया करके निकाल दी | जिन्दगी में कभी रजिस्टर तक नहीं बनाया |



     इस ट्रिक का दूसरा बेस्ट उदाहरण अल्लामा इक़बाल हैं | उन्होंने जितना मूर्ख इस देश के मूल नागरिकों को बनाया उतना शायद ही किसी ने बनाया हो | उन्होंने कहा "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा" .. हमारे पूर्वज एकदम फ़्लैट हो लिए | बोले "सही बात है भिया | भोत सई कै रिये हो मियाँ | तुमाये जैसे आदमी की भोत जरूअत ए इतै " ...


     फिर इक़बाल ने कहा" राम है इमाम- ए - हिन्दोस्तां " तो हमारे पूर्वज और फूल के कुप्पा हो गए | बोले " जे बन्दा तौ है भिया खुदा का भेजा हुआ चराग | सारे हिन्दोस्तां में जे फैलाएगा अम्न की रौशनी" | और ले ले के पहुँच गए मट्टी का तेल | के इस चराग को बुझने न देंगे

     तब तक भैया इक़बाल ने बोल दिया "यूनान मिस्त्र रोमां सब मिट गये जहाँ से ... कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ..." बस इत्ते में हमारे पूर्वज फूल के फट गए | इक़बाल को तुरंत गंगा जमना तहजीब का फटा हुआ तहमद घोषित कर दिया | वो तो बलास्फेमी का डर कायम था काफिरों में वरना उनका बस चलता तो पैगम्बर ही बना के छोड़ते अल्लामा को |


     खैर हमारे पूर्वज अल्लामा को सेकण्ड सन ऑफ़ गॉड घोषित करने ही वाले थे कि इतने में खबर आ गई कि अल्लामा तो पाकिस्तान लेकर हिन्दोस्तां से अलग हो गये | और हिन्दोस्तानियों को उन्होंने 15 लाख काफिरों की लाशों की सौगात भेजी है | जो कहते थे कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी वही लोग हमें जिगर के टुकड़े लाहौर, कराची से हमारी हस्ती मिटा चुके थे |



     ईरान से सिकुड़ती हुई हमारे महान देश सीमायें राजस्थान के बॉर्डर पर आकर सिमट गई | क्यों ? क्युकि हमें कुछ भाटों की बातों का विश्वास हो चला था कि हमारी हस्ती तो कभी मिट ही नहीं सकती | जो भगवा कभी गांधार पर फहरा करता था आज उसे हम काश्मीर में नहीं फहरा सकते | क्यों क्युकि सेकुलरिज्म का काला चश्मा पहन हम इतने अंधे हो गये कि सच को नंगी आखों से देखने के बाबजूद हम उसे झुठलाते रहे |


     आज हम फिर वही गलती कर रहे हैं | दुश्मन हमारी सीमा पर ही नहीं बल्कि हमारे घर के अन्दर तक घुस चुका है | 40 हजार से ज्यादा आतंकी हमारे देश का अन्न जल और तमाम सुख सुविधाएँ भोग रहे हैं और हम बुद्ध बने बैठे हैं | वो आतंकी चेहरे पर पीड़ित होने का नकाब ओढ़ कर हमसे हमारी सिम्पैथी ले रहे हैं साथ में हमारे घर जला रहे हैं | प्रतिकार में जब हम उन्हें यहाँ से निकाल रहे हैं तो हमें ही हमारे वसुधैव कुटुम्बकम और अहिंसा परमो धर्मं:का पाठ रहे हैं |



     मित्रों जहाज सुन्दरी सिर्फ एक बात बहुत प्यार से समझाती है | "इन स्टेट ऑफ़ पेनिक प्लीज़ वेर योर मास्क फर्स्ट एंड देन असिस्ट दि अदर पर्सन "  हमारे खुद के छोटे से देश में 130 करोड़ लोग पहले से मौजूद हैं | साला शाम तक साँस लेने तक में दिक्कत ने होने लगती है | राजस्थान के लोग वैसे ही प्यासे मर रहे हैं | केरला में वामपंथी कत्ल कर देते हैं | बंगाल में दीदी चैन से सोने नहीं देती | कश्मीर की तो बात करना ही बेकार है | ऐसे हालत में पहले अपनी फटी जेब में पहले टाँके लगवायें या इनकी सहलायें ?


     मित्रों एक चीज़ क्रिस्टल के माफिक साफ है | आपको पुन: वसुधैव कुटुम्बकम जैसे नारों के साथ मूर्ख बनाने की पूरी तैयारी है | फिर से इक़बाल का गाना शुरू हो चुका है और फिर से आपके हाथ में पाकिस्तान नाम का लल्ला थमा दिया जायेगा | बेहतर है इस बार आप जग जाए | और जो शरण मांगने के लिए बांग दे उसके ओद्योगिक क्षेत्र पर जोर से लात लगाकर बोलें ...


जर्रे जर्रे में शामिल है हमारे लहू के कतरे
हाँ हिन्दोस्तां हमारे बाप का ही है ...

-अनुज अग्रवाल


Saturday, 9 September 2017

#अप्राइम_टाइम #भाग1 #गौरी_लंकेश (Gauri Lankesh)

नमस्कार,
     अप्राइम टाइम में आपका स्वागत है | अप्राइम टाइम इसीलिए क्युकि अभी दोपहर के 2 बज के तीस मिनट हो रहे हैं | लिखने के लिए इसे प्राइम टाइम में भी लिख सकते थे | पर उस समय आपको समय नहीं होता | उस समय टीवी पर तरह तरह के एंकर आते हैं | आप उन्हें देखने में व्यस्त रहते हैं जो सब्जबाग दिखाते हैं | अपनी अपनी विचारधाराओं का प्रचार प्रसार करते हैं | वो एंकर सब कुछ करते हैं पर नहीं करते तो सिर्फ पत्रकारिता जिसके नाम पर वो रोटियां कमाते हैं | माफ़ करना गलत बोल दिया .. सही शब्द हैं बोटियाँ कमाते हैं .. दलाली करते हैं .. 'पत्रकारिता की'

     हाल ही में गौरी लंकेश (Gauri Lankesh) की हत्या की गयी | उस बैंगलोर सिटी में जिसे कर्णाटक की राजधानी होने के साथ साथ देश की आईटी राजधानी होने का भी गौरव प्राप्त है | ये वही सिटी है जिसके वीडियोस आप सभी ने १ जनवरी की सुबह भी देखे थे | कानून व्यवस्था को तार तार करते शोहदों के हाथ वहां जश्न मना रही लड़कियों के जिस्म को आतंकित कर रहे थे | कमाल की बात है कि प्राइम टाइम में मुद्दा देश की आईटी राजधानी में बढ़ते अपराध नहीं हैं | बल्कि मुद्दा राईट वर्सेस लेफ्ट है | एंड ऑफ़कोर्स क्रेडिट गोज टू आर प्राइम टाइम 'एंकर्स' |
     खैर इस अप्राइम टाइम में हम इन्हीं एंकर्स को बेनकाब करेंगे और साथ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाले उस दोगले प्राणियों पर भी चर्चा करेंगे जो इस समय उफान पर हैं |
     सर्वप्रथम शुरुवात सुश्री गौरी लंकेश से करते हैं | हालाँकि ये इतने सम्मान की हक़दार नहीं है पर फिर भी संघी होने के नाते एक स्त्री का सम्मान करना फर्ज है | मैडम अपने को नास्तिक और सेक्युलर कहती थीं | और हिन्दू धर्म को मिथ कहती थी | एक नंबर की बदतमीज और ट्रोल करने वाली औरत थी और साथ में बददिमाग भी | माफ़ कीजियेगा किसी मरे हुए के लिए ऐसे शब्द निकालना उचित नहीं है किन्तु मैं स्पष्टवादी हूँ | मैं वही कह रहा हूँ जो इन महोदया की वाल कह रही है |
 

     मैंने गौरी लंकेश की वाल पर चक्कर लगाया और पाया कि सिवाय विषवमन और गलतबयानी के इन्होने पत्रकारिता के नाम पर कुछ नहीं किया है | केरल में मरने वाले स्वयंसेवकों के लिए इन्होने स्वच्छ केरलं शब्द का प्रयोग किया है | फेक पोस्ट का इन्होने समर्थन किया | ऊपर से अपने वामपंथी साथियों को एक दुसरे को एक्सपोज न करने की हिदायत तक दे डाली | अपनी एक अन्य पोस्ट में इन्होने एक गधे पर मोदी लिखा है | अपनी इन्हीं फेक पोस्ट्स और जहर उगलने वाली भाषा की वजह से ये जेल भी जा चुकी है | एक पोस्ट पर तो जाहिली की सातवी सरहद इन्होने पार कर दी |
     उसमे मोहतरमा लिखती हैं कि संघी या तो रेप प्रोडक्ट होते हैं या फिर सेक्स वर्कर के प्रोडक्ट | सेक्स वर्कर को हिंदी में वैश्या और शुद्ध हिंदी में रंडी कहा जाता है | एक संघी भी किसी न किसी महिला की ही संतान होती है | एक महिला होकर(?) किसी महिला के बारे में ऐसा भद्दा लिखना एक वामपंथी को ही सुशिभित कर सकता है | गिरने की भी एक हद होती है | महोदया ने वो सारी हदें पार कर दी थी | जाहिर है ऐसा लिखने वाली महिला मानसिक रूप से स्वस्थ तो हो नहीं सकती | फिर भी हम इनका सम्मान करते हैं | क्युकि हम इनके लेवल पर नहीं गिर सकते |

                                                   
     मैंने गौतम बुद्ध की एक कहानी पढ़ी थी | जिसमे एक व्यक्ति गौतम बुद्ध को गालियां देता है और तथागत निर्विकार रूप से उसे सुनते रहते हैं | अंत में पूछने पर बुद्ध ने कहा कि जिस प्रकार तुम मुझे खाना परोसो और मैं उस खाने को ग्रहण न करूँ तो वो खाना तुम्हारे पास ही रह जाता है | ठीक उसी प्रकार मैं तुम्हारी गालियाँ भी ग्रहण करने से इंकार करता हूँ | ये तुम्हारे अपशब्द तुम्हारी थाती हैं इन्हें सहेज के रखिये | मैं तथागत इन्हें अस्वीकार करता हूँ |
     ठीक उसी तरह गौरी लंकेश मैं अनुज अग्रवाल अपनी और अपने संघी भाई बहनों की तरफ से तुम्हारी उन सारी गालीयों को ग्रहण करने से इंकार करता हूँ | तुम्हारे सारे अपशब्द तुम्हारी थाती हैं | इन्हें सहेज के रखिये और अपने परिजनों को सादर गिफ्ट कीजिये | हालाँकि मुझे इसका भी दुःख हुआ | अपनी माँ के लिए इस तरह के शब्द आपको नहीं निकालने चाहिए थे |
     अब आप मृत हैं तो इन सब बातों का क्या फायदा | पर सच तो सामने आना ही चाहिए न | खैर भरे मन से आपको श्रद्धांजलि .. ईश्वर आपको अपनी शरण में लें और थोड़ी सी तमीज़ भी सिखाएं | ताकि अगले जन्म में आप इन्सान बन सकें |
-अनुज अग्रवाल

Friday, 25 August 2017

एक पत्र रवीश जी के नाम

प्रिय रवीश जी,
     कल आपको पोस्ट पर मैंने कुछ प्रश्न किये थे | जबाब में आपकी ट्रोल आर्मी अभी तक मैदान में आपकी मा बहन कर रही है | कुछ लोग तो सीधे इनबॉक्स में आ धमके हैं | पूछ रहे हैं मेरी क्वालिफिकेशन क्या है आप जैसे मठाधीश पर सवाल उठाने की | अब मैं हर किसी को जबाब नहीं दे सकता | इसीलिए ये पत्र आपके नाम लिख रहा हूँ | सीधे आप तक जबाब पहुचे ये तरीका आपसे ही सीखा है गुरुवर |
                            

     बचपन मैं मेरे शिक्षक ने हमारी कक्षा में डाकू अंगुलिमाल की कहानी सुनाई | क्लास में सभी नतमस्तक थे सिवा मेरे | क्युकि मुझे शुरुवात से ही प्रश्न करने की आदत थी | मैंने सुना था शिक्षा प्रश्न करके ही हासिल होती है | ज्ञान के स्त्रोत उपनिषद इसी तरह के प्रश्नों का उत्तर हैं |

     अत: मैंने गुरूजी से पूछा गुरूजी "गुरूजी क्या कोई अन्य इस घटना का साक्षी था ?  क्या ऐसा नहीं हो सकता कि बुद्ध ने उन्हें राजाश्रय का भरोसा दिलाया हो | क्युकि जिस तरह के अपराध उसने किये थे उसकी तो फांसी ही एकमात्र सजा हो सकती थी | अहिंसा के खोखले सिद्धांत के नाम पर उन्होंने एक दुर्दांत अपराधी को सजा से बचा लिया | क्या ये बुद्ध और अंगुलिमाल की आपस में डील नहीं हो सकती | फिर बुद्ध और अंगुलिमाल के अतिरिक्त इसका साक्षी कौन था ? जो बुद्ध ने कहा उसी को सच मान लिया |"

     उस समय इस्लामिक आतंकवादी बिन लादेन की कब्र खोदी जा रही थी | अमेरिका उसे तोरा बोरा में ढूढ़ रहा था | तो मैंने अपना दूसरा प्रश्न किया ...

     "यदि बुद्ध के अहिंसा के सिद्धांतों में इतनी ही शक्ति है तो क्यों अमेरिका अरबो खरबों रूपये अफगानिस्तान में फूंक रहा है | क्यों नहीं दलाई लामा जो बौद्धों के सर्वोच्च गुरु हैं जाकर बिन लादेन को सत्य और अहिंसा के पथ पर चलने का उपदेश देते ? क्या उन्हें अपनी जान का भय है या अहिंसा के सिद्धांतों में खुद उनका भरोसा नहीं रहा ? "

     गुरूजी के पास इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था | वो बहस थोड़ी सी तल्ख हो गई | उन्होंने सीधे मेरे परिवार पर प्रश्न करना शुरू किया | मेरे दुर्भाग्य से वो बौद्ध थे इसीलिए बुद्ध की आलोचना सुन न सके | प्रतिउत्तर देना उनके वश में नहीं था इसीलिए उन्होंने बुद्ध के विपरीत रास्ता चुना | यानि कि हिंसा का | मुझे मारपीट पर मुर्गा बना दिया |

     हालाँकि मैं इसे बुद्ध के विपरीत रास्ता नहीं मानूंगा क्युकि बुद्ध और अहिंसा दो विपरीत ध्रुव हैं | आचार्य कुमारिल भट्ट ने जब बौद्ध पन्थाचार्यों की शास्त्रार्थ में धज्जियाँ उड़ा दी तब बौद्ध लोगों ने उन्हें मारने के लिए दौड़ा दिया | ये बुद्ध की अहिंसा थी ये थे उनके उपदेश | खैर जाने दीजिये |

     उस दिन मुझे दो सीख मिली | प्रथम निर्दोष बन जाओ | अनजान होकर भोले होने का स्वांग करो | अधरों पे मोहिनी मुस्कान रखों | अपने प्रश्न कुछ इस तरह पूछों कि सामने वाले को लगे आपको वास्तव में ज्ञान की ललक है | लोग तुम्हारी मानसिकता पर सवाल ही न उठा सकें | जब कोई सवाल उठाने की कोशिश करे तो वही चार लोग आके कहें कि " Awww .. He is such a cute guy .. He can't do it. " और फिर पाउट करने लगें |

     द्वितीय ढोंगी हो जाओ | अन्दर से बिन लादेन बनों और ऊपर से बुद्ध | चेहरा ओढ़ लो | प्याज की तरह पर्त वाले बनों | ताकि कोई समझ ही न पाए तुम्हारा असली रूप क्या है ? सामने से बुद्ध की तरह ज्ञान यज्ञ करते रहो | अपने एजेंडा का प्रचार करते रहो | यदि कोई प्रश्न खड़ा करे तो उस पर मोहिनी मुस्कान का जादू चला दो | फिर अपने अनुयाइयों को भेज दो | अपने विरोधियों को तहस नहस कर दो | उन्हें मार दो उनकी आवाज को दबा दो |

    रवीश जी कल आपकी वाहियात पोस्ट पढ़ी और आदतानुसार उस पर कुछ चुभते प्रश्न कर लिए | अब गुरूजी की तरह आपमें भी हिम्मत नहीं थी उनका सामना करने की | तो आपने भी गुरूजी का रास्ता अपनाया | बजाय सामना करने के आपने अपनी ट्रोल आर्मी को भेजना उचित समझा | वाह रे बुद्ध ! देखी तेरी बौद्धिकता भी | इनबॉक्स भी भर दिया इधर कमेन्ट बॉक्स भी |

     सर मुझे आपसे बस इतना पूछना है कि क्या आप खुद को होली काऊ समझते हैं | या आप बुद्धत्व को प्राप्त कर चुके हैं | इसीलिए आप पर सवाल नहीं उठाये जा सकते ? आप प्रश्न करने वालों से क्यों डरते हैं ? संवाद द्विपक्षीय होता है | संवाद को एकपक्षीय बनाकर इसकी आत्मा का गला क्यों घोटना चाहते हैं आप ? आपके भक्त लगातार मेरी आईडी रिपोर्ट कर रहे हैं | आप क्यों मेरी आवाज को बंद करना चाहते हैं ? आपको क्यों मेरा बोलना खल रहा है ?

                               

     आप क्यों किसी के बोलने से डरते हैं ? ऐसा क्यों लगता है आपको कि कोई यदि कुछ बोलेगा तो आपकी पोल खुल जाएगी ? इसीलिए इस आवाज का गला घोंट दो | इसे गाली दो | इसे धमकी दो | इसे बदनाम करो | इसे मेसेज करो | पर्सनल अटैक करो | कुछ भी करो पर बोलने मत दो | सवाल मत पूछने दो |

     लेकिन मैं तो पूछूँगा | आप भले ही गालियाँ दिलवाओ या भद्दे कमेन्ट करवाओ | पर मैं प्रश्न पूछूँगा आपसे ? मैं पूछूँगा आपसे कि आपके पास इतना पैसा आता कहाँ से है जो आपने इतने ट्रोल्स पाल रखे हैं ? कितना कमीशन मिलता है बृजेश पांडे से आपको जो उनके खिलाफ बोलने में आपकी जीभ तालू से चिपक जाती है ? नक्सलियों पे सेना का प्रयोग क्यों नहीँ किया जाये ? कश्मीर से सेना क्यों हटाई जाए ? बंगाल में कवरेज करने कब जायेंगे आप ? केरला में हत्यारों पर कब बोलेंगे आप ? AMU में महिला पत्रकार की में हैंडलिंग पर कब मोमबत्ती जलाएंगे आप ?  राजेश की हत्या पर #NotinMyName कैम्पेन कब करेंगे सर ?

     हालाँकि मैं जानता हूँ आप इसका उत्तर कभी नहीं लिखेंगे | क्युकि आप सही मायनों में बुद्धत्व को प्राप्त कर चुके हैं | किन्तु सर आज आइना जरूर देखिएगा | आपको कालिख स्पष्ट नजर आएगी | साथ में अन्दर का बिन लादेन भी दिख जायेगा आपको | क्युकि लाख चेहरे ओढ़ ले इन्सान किन्तु आइना सारे मेकअप हटा ही देता है |
-अनुज अग्रवाल

Friday, 14 April 2017

दलित नवचेतना की आवाज अम्बेडकर

     आज 14 अप्रैल है | आम्बेडकर साहब का जन्मदिन | वो पुष्प जो जमीन पर उगा और फकत आसमान पर खिला | जिसने लाख कठिनाइयाँ झेली पग पग पर अपमान झेला पर अपना विश्वास नहीं खोया | अपनी मंजिल जिसने खुद तय की | मुश्किलों के पहाड़ो का सीना चीर कर जिसने अपना रास्ता बनाया | राह के कांटे जिसके सिर का ताज बने | जी हाँ आज उस आम्बेडकर का जन्मदिन है | जो मुंह में चांदी की चम्मच लेकर पैदा हुआ राजपुत्र नहीं था | जो अर्जुन नहीं था पर अपनी मेहनत, अपनी लगन, और अपनी साधना से वो एकलव्य बना | किन्तु वही आम्बेडकर आज आपके सम्मान का मोहताज है | ये बहुत ग्लानि की बात है सोशल मीडिया के नेटवीर आज के दिन उस महापुरुष को कोस रहे हैं जिसकी पगधूलि का वो एक अंश मात्र भी नहीं हैं |

     आम्बेडकर साहब को कोसना बहुत आसन है | उन्हें आप आरक्षण के नाम पर कोसिये या उनके धर्म परिवर्तन करने पर | पर आम्बेडकर बनना उतना ही दुष्कर है | कल्पना मात्र कीजिये कि आपको सिर्फ इसीलिए नहीं पढने दिया जाता क्योंकि आप दलित हैं | मारे प्यास के आपका गला सूख रहा है | सामने तालाब है और आप इसीलिए पानी नहीं ले सकते क्योंकि आप अछूत हैं | आप पानी छू भर लेंगे तो शायद गंगाजली भी उसे शुद्ध न कर पाए | आपके छाया भर पड़ने से ब्राह्मण तो छोडिये बनिए तक अशुद्ध हो जाये | जिस उम्र में स्नेह और आशीर्वाद मिलना चाहिए उस उम्र में आपको गालियाँ मिले | पग पग पर पल पल पर जातिसूचक शब्दों से आपका ह्रदय बींध दिया जाए | 
     सोचिये आम्बेडकर किन किन परिस्थियों से गुजरे | क्या हश्र होता होगा उस नन्हें बालक का ? सोचिये जरा ? पर उन विषम हालात में भी उन्होंने आशा न छोड़ी | अपने पूर्वजों की तरह उन्होंने हथियार नहीं डाले | वो लडे अपने अधिकारों के लिए | वो उन करोडो लोगो की आवाज़ बने जो उठने से पहले कुचल दी जाती थी |
     किसी भी देश का इतिहास उसकी सबसे बड़ी धरोहर होती है | कहते हैं कि इतिहास वो आइना होता है जिसमे भूत को निरख कर वर्तमान संवारा जाता है ताकि सुखद भविष्य की आधारशिला रखी जा सके | लेकिन अपना भारत दुनिया का इकलौता ऐसा मुल्क है जिसमे इतिहास सिर्फ किताबों तक सीमित है | यहाँ इतिहास सिर्फ पढ़ा जाता है कभी गुना नहीं जाता | कभी इससे सीख नहीं ली जाती है | क्योंकि अगर हमने इतिहास में झाँका होता तो आज दलितों को उनका सम्मान कब का मिल चुका होता | 
     आज भी दलितों के प्रति हमारी दुर्भावना जस की तस है | आप उप्र, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और बिहार में छपने वाला कोई भी अखवार उठा लीजिये उसमे एक खबर जरूर होगी | “दबंगों ने नहीं चढने दी दलित की बारात |”
     आज भी पांडे जी का दलित दोस्त अगर गलती से उनके घर आ जाये तो उनकी बुआ कहती हैं | “ ह रे चमरवा ! तोहरी हिम्मत कईसे हुई गईल हमरी द्वारी पे आपन गोड रख्खे क |” कभी दलित बस्तियों में बिजली की सप्लाई रोक दी जाती है | कभी पानी के पाइप काट दिए जाते हैं | क्यों भाई क्यों नहीं चढ़ा सकता दलित अपनी बारात ? क्यों नहीं आ सकता पांडे जी का दलित दोस्त उनके घर पर ? ये लोग इन्सान नहीं है क्या ? क्या ये किसी दूसरी दुनिया से आये हुए लोग है ? क्या ये मानसिकता बदलनी नहीं चाहिए ? क्यों भाई कब सीख लोगे अपने इतिहास से जब खुद इतिहास हो जाओगे तब ?
     शिकायत मुझे आम नागरिको से नहीं हैं | शिकायत है मुझे उन तथाकथित धर्म ध्वजा रक्षको से जो आज भी दलितों को उनका हक़ देने के लिए तैयार नहीं है | जो हिन्दुत्व के पुरोधा हैं जो आद्य शंकराचार्य की परम्परा से हैं | वो कैसे किसी दलित से घृणा कर सकते हैं ? 
     हमारे यहाँ तो महर्षि वाल्मीकि को भगवान् का दर्जा दिया गया है | स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम शबरी के जूठे बेर खाते हैं और उन्हें अपनी माँ कहते हैं | उन्हीं भगवन श्रीराम का एक परम मित्र भील समुदाय से होता है | फिर उन भगवान् श्रीराम के वंशज दलितों का तिरस्कार भला कैसे कर सकते हैं ? विश्व को वसुधैव कुटुम्बकम का पाठ पढाने वाली उदारमना हिन्दू संस्कृति क्या इतनी निष्ठुर हो सकती है जो अपने ही एक अंग को अपृश्य घोषित कर दे ? 
     आम्बेडकर साहब ने भी तो बस इसी के खिलाफ आवाज उठाई थी | उन्होंने समानता का अधिकार ही तो माँगा था | हमारे पूजनीय धर्मगुरु क्या उन्हें सम्मान से जीने का हक़ भी नहीं दे सकते ? अगर ये संभव नहीं तो मुझे ये कहने में कोई झिझक नहीं है कि मेरे मन में आम्बेडकर साहब का स्थान किसी भी शंकराचार्य की गद्दी से ऊँचा है |
     कल्पना मात्र कीजिये कि क्या हाल हुआ होता आपके हिंदुत्व का यदि आम्बेडकर साहब ने मुस्लिम या ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया होता वो तो शुक्र मनाइए वीर सावरकर और प.पू. गुरूजी का जिनके परामर्श से उन्होंने बौद्ध बनना स्वीकार किया और हिंदुत्व को शर्मशार होने से बचा लिया |
     इसीलिए हे सुबह शाम अनर्गल प्रलाप करने वाले हिन्दू महारथियों कृपया वीर सावरकर और प.पू. डॉ. साहब के अथाह परिश्रम पर पानी मत फेरो | इससे अच्छा है कि अपनी 10% उर्जा दलित उत्थान पर खर्च कर दो | अगर आप अपना थोडा समय भी दलित बस्तियों में बिता दोगे तो शायद आप हिंदुत्व का ज्यादा भला कर पाओगे | तभी शायद उनके सपनों के भारत के निर्माण में अपना योगदान दे पाओगे |
     बाबा साहब माफ़ करना ! हमें शायद अभी तक हम उस समाज का निर्माण नहीं कर सके हैं जिसकी कल्पना आपने दशको पहले की थी | एक जातिमुक्त समाज जिसमे कोई छोटा या बड़ा न हो | जिसमे कोई अपृश्य न हो, अछूत न हो | जिसमे सभी को सामान अधिकार और सम्मान मिले | आज हम आपके 127 वीं जन्मजयंती पर ये संकल्प लेते हैं कि अपने प्रिय भारतवर्ष को जाति मुक्त देश बनायेंगे | भेदभाव मिटायेंगे | आपके अनथक परिश्रम को सफल करेंगे | आपकी जन्मजयन्ती पर आपको शत बार नमन |

Thursday, 6 April 2017

एक ख़त फली नरीमन के नाम

आदरणीय फली नरीमन जी,

    इतिहास में जितनी प्राचीन पुरानी मानव सभ्यताओं का जिक्र है उसमें मेसोपोटामिया का नाम प्रमुख है । इतिहास कहता है कि ये सभ्यता बहुत प्रगतिशील और विकसित थी । तक़रीबन 5 हजार साल पुरानी सभ्यता .. सैकड़ो साल का धारा प्रवाह उन्नत जीवन .. वृहद् नगर .. बड़े बड़े भवन विशाल जनसँख्या । तत्कालीन भारत से व्यापार होता था इनका मसालों और घोड़ों का । आपत्तिकाल से बचने के लिए इनके पास असंख्य मुद्रा भंडार था ।
        
     किन्तु इसी महान मेसोपोटामिया सभ्यता के वंशज 2014 में सिंजर क्षेत्र की पहाड़ियों में शरण लेने को मजबूर हुए थे । इन्हीं की बहन बेटियां आइसिस के जवानों के बिस्तर पर हूरों की तरह सजती थीं । इनकी लड़कियों को इंजेक्शन दिए जाते हैं ताकि वो समय से पहले जवान हो जाएँ और आइसिस के आतंकियो की हवस मिटा सकें । 

     बेचारी रोज कंट्रासेप्टिक पिल्स या उस जैसी ही कोई दवा खातीं हैं ताकि माँ न बन सकें । अव्वल तो वो प्रेग्नेंट होती नहीं अगर हो भी जाएँ तो ये लड़कियां अपने बच्चों को उसके बाप का नाम नहीं बता सकती । भला सैकड़ो की भीड़ में कैसे पहचानेगी वो । वो तो पड़ी रहती हैं बेचारी बिस्तर पर .. बेसुध । एक के बाद एक भेड़िये आते हैं । अपनी हवस मिटाते हैं उसकी बोटी नोचते हैं और चले जाते हैं ।
                       
     पर मुझे ये सब सुन कर दया नहीं आती । गुस्सा भी नहीं आता । ये इनके पूर्वजों के कर्मों(कु) का फल है जो ये भोग रहे हैं । सदियों पहले इन्हीं लोगों ने पूर्वजों ने इन आइसिस वालों के पूर्वजों को शरण दी थी । ये जड़ें थीं सेकुलरिज्म की जिसे इनके पूर्वजों ने सिंचित किया और उन्हें पाला पोसा । बिना कुछ सोचे समझे उन्होंने न केवल उन्हें शरण दी बल्कि उनसे आर्थिक और धार्मिक सम्बन्ध तक स्थापित कर लिए |

     शनै-शनै कालचक्र बदला । सूर्य ने पूर्व से पश्चिम की यात्रा पूर्ण की । तब के याचक अब शासक हो गए । संख्याबल से सत्ता परिवर्तित हुई । राजदंड अब आइसिस वालों के हाथ में आ गया । इन्होंने वो गलती नहीं की जो मेसोपोटेमियन्स ने की । इन्हें अपना लक्ष्य पता था । इसीलिए इन्होंने यजीदियों को सिंजर क्षेत्र की पहाड़ियों में में खदेड़ दिया । उनके पुरुषों को संडास साफ़ कराने के लिए गुलाम बना लिया । उनकी स्त्रियों को अपने जिस्म की प्यास बुझाने के लिए अपने हरम में बाँध लिया । 

     आज सुना किसी फली नरीमन ने योगी आदित्यनाथ की आलोचना उनके हिन्दू महंत होने को लेकर की है । इन महोदय के समुदाय का इतिहास भी इसी कहानी से मिलता जुलता है । माननीय को सेकुलरिज्म के उसी कीड़ें ने काटा है जिसने सदियों पहले मेसोपोटेमियन्स को डस कर उनकी बुद्धि भ्रष्ट की थी । ये भी उसी कर्क रोग से पीड़ित हैं जिसका कोई इलाज नहीं, कोई कीमोथैरेपी नहीं | जो जानलेवा है और ये उसे एक बार भोग कर बर्बाद भी हो चुके हैं |
        
     एक समय था जब पारसी समुदाय दुनिया भर से प्रताड़ित होकर भारत में शरण लेने आया । उस समय विश्व बंधुत्व के रंग में रंगे हुए वो हिंदुस्थानी ही थे जिन्होंने गुजरात के तटों पर इन पारसियों का स्वागत किया | रहने को छत नहीं, खाने को रोटी नहीं थी इनके पास | वो वसुधैव कुटुम्बकम के प्रेम में पगे हुए हिंदुस्थानी ही थे जिन्होंने इन्हें वहां रचाया बसाया | जहाँ इनके रहने, खाने का बंदोबस्त किया | हाँ वो एकं सत विप्रा बहुधा वदन्ति मानने वाले हम थे जिन्होंने आपका धर्म परिवर्तन नहीं कराया | जिन्होंने आपके बच्चो गुलाम नहीं बनाया | जिन्होंने आपकी स्त्रियों को अपने हरम में नहीं सुलाया |

     महोदय आपको छत दी हमने | आपके बच्चों को रोटी दी हमने | आपकी स्त्रियों को सम्मान दिया हमने | और जानते हैं क्यों किया हमने ये सब ? क्युकि हमारी हिन्दू संस्कृति ही हमें इसकी प्रेरणा देती है | हिन्दू संस्कृति का प्रतीक भगवा का अर्थ ही त्याग है | जो स्वयं के लिए जिया वो क्या जिया | मनुष्य वो है जो मनुष्य के लिए मरे | “ईशावास्यं इदं सर्वं” ये है हिंदुत्व के मायने | ये है हिन्दू संस्कृति के प्रतीक भगवा की प्रेरणा | और आप आज पवित्र भगवा की ही आलोचना कर रहे हैं ?

     तकरीबन दो हजार साल पहले यहूदी शरणार्थियों ने भारत में शरण ली | इनका इतिहास तो सर्वविदित है | पुरे विश्व में इनके नरसंहार के नित नए अध्याय लिखे गए | वो केवल हिन्दुस्थान था जहाँ इन्हें इनके मुश्किल वक्त में शरण मिली | सन 1948 में इजरायल आज़ाद हुआ | उनकी संसद में एक अध्यादेश पारित हुआ | “धन्यवाद हिन्दुस्थान ! तुम अकेले देश हो जहाँ हमें शरण मिली | जहाँ हमारा नरसंहार नहीं हुआ ...” |

     ‘द हिन्दू’ 27 अप्रैल 2013 के अंक में एक लेख छपा ‘अ होम अवे फ्रॉम होम’ जिसमे ‘Dropped From Heaven’ की लेखिका सोफी का जिक्र है | वो कहती हैं “हिन्दुस्थान में मेरे तीन मित्र थे वो सब एक दुसरे के बिना नहीं रह सकते |” सोफी के पिता कहते हैं “We are Indian first and Jews later.सोफी के पति साइमन कहते हैं कि “India was never anti-Semitic. 
                          
     एक अन्य यहूदी धार्मिक गुरु लिखते हैं “Jews have lived in India for over 2,000 years and have never been discriminated against. This is something unparalleled in human history.

     सुना नरीमन महोदय आपने ? इसे कहते हैं कृतज्ञता | जो शायद आपमें नहीं है | ये केवल 4 5 लोगों के बयान मात्र नहीं हैं | इस पर अगर लिखने बैठा जाए तो सैकड़ो लोग अपनी यादे ताज़ा कर सकते हैं | वो सभी बतायेंगे कि कैसे दुनिया भर के लोग उनके खून के प्यासे थे तब केवल और केवल हिन्दुस्थान में उन्हें सुरक्षा और सम्मान मिला | और ये सब सम्भब हुआ इसी भगवा के कारण, जिसकी आपने आलोचना की है |

     शक, हूण, कुषाण, मुग़ल यहाँ तक कि गुलाम वंश के लोगों ने हम पर आक्रमण किया | गजनी गौरी जैसे लुटेरे आये जिन्होंने मंदिर ढहाए और सोना लूट के ले गए | किन्तु हमने कभी पलट कर बदले की भावना से उनके देशों पर आक्रमण नहीं किया | हमारे यहाँ से भी विवेकानंद और बुद्ध आदि लोग बाहर गए किन्तु तलवार लेकर नहीं बल्कि ज्ञान लेकर |
     अपने अनादि काल के अज्ञात और लगभग 10 हजार सालों के ज्ञात इतिहास में कभी हिन्दुस्थानियों ने किसी देश पर आक्रमण नहीं किया | हम दुनिया के हर देश में गए जरूर | हमने देश जीते जरूर पर प्रेम से | हथियारों से नहीं | हमने दुनियां को विश्व शांति का पाठ पढाया | ऐसे समय जब ग्रीक हमलावर सिकंदर विश्व विजेता बनने के सपने देख रहा था | वो हम थे जो दुनिया भर में मसाले बेच सबके खानों में जायका भर रहे थे |

     सहिष्णुता के इस गौरवशाली इतिहास के बाबजूद जब कोई हिन्दुओं की आलोचना करता है तब वास्तव में दुःख होता है | सोचता हूँ क्या हमें भी इतिहास से सबक ले बर्बर और असभ्य हो जाना चाहिए ? पर जब अपने भव्य अतीत में झांकता हूँ तब चमत्कृत हो उठता हूँ | भगवा के शौर्य और त्याग की गाथाएं सुन हृदय गर्व से भर उठता है |

     कभी कभी सोचता हूँ कि फली नरीमन जैसों के कहे पर क्यों अपना समय और प्रयास व्यर्थ करूँ | क्युकि तब मुझे सोफी की याद आती है | मुझे लगता है सोफी और उस जैसे हजारों बेसहारों की मदद करके मैंने अपनी विश्व बंधुत्व के सिद्धान्तों को सहेज लिया है | और जब जब उन्हें मदद की जरूरत होगी मैं उन्हें अपनी बाँहों भर लूँगा | मैं हमेशा इनके लिए हमेशा सामर्थ्य अनुसार खड़ा रहूँगा | क्युकि यही मेरी हिन्दू संस्कृति है | यही मेरी सभ्यता है | यही मेरा जीवन सन्देश है | यही मेरा भगवा है |

-अनुज अग्रवाल