आदरणीय फली नरीमन जी,
इतिहास में जितनी प्राचीन पुरानी मानव सभ्यताओं का जिक्र है उसमें
मेसोपोटामिया का नाम प्रमुख है । इतिहास कहता है कि ये सभ्यता बहुत
प्रगतिशील और विकसित थी । तक़रीबन 5 हजार साल पुरानी सभ्यता ..
सैकड़ो साल का धारा प्रवाह उन्नत जीवन .. वृहद् नगर .. बड़े बड़े भवन विशाल जनसँख्या
। तत्कालीन भारत से व्यापार होता था इनका मसालों और घोड़ों का । आपत्तिकाल से बचने
के लिए इनके पास असंख्य मुद्रा भंडार था ।


किन्तु इसी महान मेसोपोटामिया सभ्यता के वंशज 2014 में
सिंजर क्षेत्र की पहाड़ियों में शरण लेने को मजबूर हुए थे । इन्हीं की बहन बेटियां
आइसिस के जवानों के बिस्तर पर हूरों की तरह सजती थीं । इनकी लड़कियों को इंजेक्शन
दिए जाते हैं ताकि वो समय से पहले जवान हो जाएँ और आइसिस के आतंकियो की हवस मिटा
सकें ।
बेचारी रोज कंट्रासेप्टिक पिल्स या उस जैसी ही कोई दवा खातीं हैं ताकि माँ
न बन सकें । अव्वल तो वो प्रेग्नेंट होती नहीं अगर हो भी जाएँ तो ये लड़कियां अपने
बच्चों को उसके बाप का नाम नहीं बता सकती । भला सैकड़ो की भीड़ में कैसे पहचानेगी वो
। वो तो पड़ी रहती हैं बेचारी बिस्तर पर .. बेसुध । एक के बाद एक भेड़िये आते हैं । अपनी
हवस मिटाते हैं उसकी बोटी नोचते हैं और चले जाते हैं ।
पर मुझे ये सब सुन कर दया नहीं आती । गुस्सा भी नहीं आता । ये इनके
पूर्वजों के कर्मों(कु) का फल है जो ये भोग रहे हैं । सदियों पहले इन्हीं लोगों ने
पूर्वजों ने इन आइसिस वालों के पूर्वजों को शरण दी थी । ये जड़ें थीं सेकुलरिज्म की
जिसे इनके पूर्वजों ने सिंचित किया और उन्हें पाला पोसा । बिना
कुछ सोचे समझे उन्होंने न केवल उन्हें शरण दी बल्कि उनसे आर्थिक और धार्मिक
सम्बन्ध तक स्थापित कर लिए |
शनै-शनै कालचक्र बदला । सूर्य ने पूर्व से पश्चिम की यात्रा पूर्ण की । तब
के याचक अब शासक हो गए । संख्याबल से सत्ता परिवर्तित हुई । राजदंड अब आइसिस वालों
के हाथ में आ गया । इन्होंने वो गलती नहीं की जो मेसोपोटेमियन्स ने की । इन्हें
अपना लक्ष्य पता था । इसीलिए इन्होंने यजीदियों को सिंजर क्षेत्र की पहाड़ियों में में
खदेड़ दिया । उनके पुरुषों को संडास साफ़ कराने के लिए गुलाम बना लिया । उनकी
स्त्रियों को अपने जिस्म की प्यास बुझाने के लिए अपने हरम में बाँध लिया ।
आज सुना किसी फली नरीमन ने योगी आदित्यनाथ की आलोचना उनके हिन्दू महंत होने
को लेकर की है । इन महोदय के समुदाय का इतिहास भी इसी कहानी से मिलता जुलता है ।
माननीय को सेकुलरिज्म के उसी कीड़ें ने काटा है जिसने सदियों पहले मेसोपोटेमियन्स को
डस कर उनकी बुद्धि भ्रष्ट की थी । ये भी उसी कर्क रोग से पीड़ित हैं जिसका कोई इलाज
नहीं, कोई कीमोथैरेपी नहीं | जो जानलेवा है और ये उसे एक बार भोग कर बर्बाद भी हो
चुके हैं |
एक समय था जब पारसी समुदाय दुनिया भर से प्रताड़ित होकर भारत में शरण लेने आया
। उस समय
विश्व बंधुत्व के रंग में रंगे हुए वो हिंदुस्थानी ही थे जिन्होंने गुजरात के तटों
पर इन पारसियों का स्वागत किया | रहने को छत नहीं, खाने को रोटी नहीं थी इनके पास |
वो वसुधैव कुटुम्बकम के प्रेम में पगे हुए हिंदुस्थानी ही थे जिन्होंने इन्हें
वहां रचाया बसाया | जहाँ इनके रहने, खाने का बंदोबस्त किया | हाँ वो एकं सत विप्रा
बहुधा वदन्ति मानने वाले हम थे जिन्होंने आपका धर्म परिवर्तन नहीं कराया |
जिन्होंने आपके बच्चो गुलाम नहीं बनाया | जिन्होंने आपकी स्त्रियों को अपने हरम
में नहीं सुलाया |
महोदय आपको छत दी हमने | आपके बच्चों को रोटी दी हमने | आपकी स्त्रियों को
सम्मान दिया हमने | और जानते हैं क्यों किया हमने ये सब ? क्युकि हमारी हिन्दू
संस्कृति ही हमें इसकी प्रेरणा देती है | हिन्दू संस्कृति का प्रतीक भगवा का अर्थ
ही त्याग है | जो स्वयं के लिए जिया वो क्या जिया | मनुष्य वो है जो मनुष्य के लिए
मरे | “ईशावास्यं इदं सर्वं” ये है हिंदुत्व के मायने | ये है हिन्दू संस्कृति के
प्रतीक भगवा की प्रेरणा | और आप आज पवित्र भगवा की ही आलोचना कर रहे हैं ?
तकरीबन दो हजार साल पहले यहूदी शरणार्थियों ने भारत में शरण ली | इनका
इतिहास तो सर्वविदित है | पुरे विश्व में इनके नरसंहार के नित नए अध्याय लिखे गए |
वो केवल हिन्दुस्थान था जहाँ इन्हें इनके मुश्किल वक्त में शरण मिली | सन 1948 में इजरायल आज़ाद हुआ | उनकी संसद में एक अध्यादेश
पारित हुआ | “धन्यवाद हिन्दुस्थान ! तुम अकेले देश हो जहाँ हमें शरण मिली | जहाँ
हमारा नरसंहार नहीं हुआ ...” |
‘द हिन्दू’ 27 अप्रैल 2013 के अंक में एक लेख छपा ‘अ
होम अवे फ्रॉम होम’ जिसमे ‘Dropped
From Heaven’ की
लेखिका सोफी का जिक्र है | वो कहती हैं “हिन्दुस्थान में मेरे तीन मित्र थे वो सब
एक दुसरे के बिना नहीं रह सकते |” सोफी के पिता कहते हैं “We are Indian
first and Jews later.” सोफी के पति साइमन कहते हैं कि “India was never anti-Semitic.”
एक अन्य यहूदी धार्मिक गुरु लिखते हैं “Jews have lived in India
for over 2,000 years and have never been discriminated against. This is
something unparalleled in human history.”
सुना नरीमन महोदय आपने ? इसे कहते हैं कृतज्ञता | जो शायद आपमें नहीं है | ये
केवल 4 5 लोगों के बयान मात्र नहीं हैं | इस पर अगर लिखने बैठा जाए तो सैकड़ो लोग
अपनी यादे ताज़ा कर सकते हैं | वो सभी बतायेंगे कि कैसे दुनिया भर के लोग उनके खून
के प्यासे थे तब केवल और केवल हिन्दुस्थान में उन्हें सुरक्षा और सम्मान मिला | और
ये सब सम्भब हुआ इसी भगवा के कारण, जिसकी आपने आलोचना की है |
शक, हूण, कुषाण, मुग़ल यहाँ तक कि गुलाम वंश के
लोगों ने हम पर आक्रमण किया | गजनी गौरी जैसे लुटेरे आये जिन्होंने मंदिर ढहाए और
सोना लूट के ले गए | किन्तु हमने कभी पलट कर बदले की भावना से उनके देशों पर
आक्रमण नहीं किया | हमारे यहाँ से भी विवेकानंद और बुद्ध आदि लोग बाहर गए किन्तु तलवार लेकर नहीं बल्कि
ज्ञान लेकर |
अपने अनादि काल के अज्ञात और लगभग 10 हजार
सालों के ज्ञात इतिहास में कभी हिन्दुस्थानियों ने किसी देश पर आक्रमण नहीं किया |
हम दुनिया के हर देश में गए जरूर | हमने देश जीते जरूर पर प्रेम से | हथियारों से
नहीं | हमने दुनियां को विश्व शांति का पाठ पढाया | ऐसे समय जब ग्रीक हमलावर
सिकंदर विश्व विजेता बनने के सपने देख रहा था | वो हम थे जो दुनिया भर में मसाले
बेच सबके खानों में जायका भर रहे थे |
सहिष्णुता के इस गौरवशाली इतिहास के बाबजूद जब
कोई हिन्दुओं की आलोचना करता है तब वास्तव में दुःख होता है | सोचता हूँ क्या हमें
भी इतिहास से सबक ले बर्बर और असभ्य हो जाना चाहिए ? पर जब अपने भव्य अतीत में
झांकता हूँ तब चमत्कृत हो उठता हूँ | भगवा के शौर्य और त्याग की गाथाएं सुन हृदय
गर्व से भर उठता है |
कभी कभी सोचता हूँ कि फली नरीमन जैसों के कहे
पर क्यों अपना समय और प्रयास व्यर्थ करूँ | क्युकि तब मुझे सोफी की याद आती है | मुझे
लगता है सोफी और उस जैसे हजारों बेसहारों की मदद करके मैंने अपनी विश्व बंधुत्व के
सिद्धान्तों को सहेज लिया है | और जब जब उन्हें मदद की जरूरत होगी मैं उन्हें अपनी
बाँहों भर लूँगा | मैं हमेशा इनके लिए हमेशा सामर्थ्य अनुसार खड़ा रहूँगा | क्युकि
यही मेरी हिन्दू संस्कृति है | यही मेरी सभ्यता है | यही मेरा जीवन सन्देश है |
यही मेरा भगवा है |
-अनुज अग्रवाल
भाई हिंदुत्व का और हिंदुस्तान का सही परिचय दिया है आपने । और जिन अज्ञानी लोगों को भगवा रंग का सही अर्थ ज्ञात नहीं है उनके लिए भी अच्छा संदेश दिया है । और जो व्यक्ति इसकी आलोचना करते है उनके लिए एक ही कहावत है " अंधे को इंद्रधनुष दिखाना" और इनका ज्ञान जिसे ये इल्म कहते है तो वो इनके लिए" काला अक्षर भैंस बराबर है"।
ReplyDeleteआलोचना का सही जबाब देना बहुत जरूरी है | इसी कारण ये पत्र लिखा है | फली नरीमन जैसे लोगो को पढाना बहुत जरूरी है | समझे न समझे उनकी जिम्मेवारी है | पर हमें अपना काम हर हालात में करना ही होगा |
Deleteबहुत सही लिखा आपने ...सेक्युलरिजम के कीडे बेहद खतरनाक होते है, नरीमन साहब अपने इतिहास को नजर अंदाज करके पद्मविभूषण देने वालों का कर्ज उतार रहे है शायद!!
ReplyDeleteयही तो सवाल है .. क्या अतीत को भुलाकर अपने खूनियों से मित्रता की जा सकती है | क्या समाज के हितों को तिलांजलि दे व्यक्तिगत हितों को तरजीह दी जा सकती है ? फली नरीमन यही कर रहे हैं बस
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