Thursday, 11 January 2018

स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रवादी युवा

     स्वामी विवेकानंद मेरे लिए किसी व्यक्ति मात्र का नाम नहीं है | ये मेरे लिए एक विचार है, एक चिंतन है | वो चिंतन जो हमेशा मेरे अंतर्मन को उद्वेलित कर हमेशा मुझे कुछ सकारात्मक करते रहने की सतत प्रेरणा देता है | ये नाम मेरे लिए यज्ञ वेदी में प्रज्जलित उस अग्नि की तरह है जो मेरे हृदय की कलुषिता को मिटाते हुए अपने सामान शुद्ध और पवित्र करती है | ये मेरे लिए गंगोत्री से निकली माँ गंगा के निर्मल जल की तरह है जो कल-कल निनाद करते हुए मेरे कानो में निरंतर चरैवेति -चरैवेति का उद्घोष करता है | जो हमेशा मुझे लक्ष्य तक पहुंचे बिना न रुकने की अक्षय ऊर्जा देता है |

     माँ काली के अनन्य उपासक स्वामी रामकृष्ण परमहंस के प्रिय शिष्य, शिकागो के धर्म सम्मलेन में हिन्दू धर्म पर अपने व्याख्यान से सम्पूर्ण जगत को सम्मोहित करने वाले प्रखर वक्ता की पगधूलि का भी वर्णन कर सके, मेरी कलम में वो सामर्थ्य नहीं | प्रणाम हिंदुत्व के भाष्यकार, अध्यात्म के मर्मज्ञ उस महान संत को जिसने तत्कालीन हिन्दू समाज को रूडीवादिता की बेड़ियों से मुक्त कराया |
     जिसने न हिन्दू पतितो भवेत् की उक्ति देकर उन हजारों बिछड़े भाइयो का उद्धार किया जिन्हें छल या बल से विधर्मी बना दिया गया था | उन्होंने यदि पुनरुद्धार कार्यक्रम न चलाया होता तो शायद इतिहास के पन्ने किसी दूसरे काला पहाड़ के क्रूरतम अत्याचारों की कहानियों से रंगे होते |
     सही अर्थो में धर्म की व्याख्या स्वामी जी ने ही है | राष्ट्रधर्म ही सबसे बड़ा धर्म है | और इसे निभाने के लिए युवाओ को ही आगे आना पड़ेगा | ऐसा स्वामी जी का मानना था | युवा वायु की तरह होते है | अगर इन्हें सही दिशा मिले तो विकास अन्यथा विनाश का सृजन करते हैं | ऐसे में युवाओं में बचपन से ही राष्ट्रवाद जड़ें रोपित करनी चाहिए | ताकि युवा शक्ति देश की उत्तरोत्तर प्रगति में भागीदार हो |
जन्मदिवस पर कोटिश: नमन


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