Tuesday, 19 September 2017

रोहिंग्या भारत छोडो

     पुराने ज़माने में राजा महाराजा अपने साथ एक भाट(कवि) अवश्य रखते हैं | जो हमेशा उनके साथ मौजूद रहते थे | उनका काम था रजा की प्रशंसा में कविता लिखना | इससे होता कुछ नहीं था बस राजाओ के अहम् को संतुष्टि मिलती थी | इसके एवज में उन्हें बेशुमार दौलत मिलती थी | उस इनाम के लालच में ये भाट लोग कुछ भी फेंक देते थे |



     मान लो किसी युद्ध में राजा का घोडा गिर पड़ा तो ये भाट लोग ये नहीं कहेंगे कि घोडा थक गया उसे भोजन पानी की जरूरत है वो ये कहते थे " वाह वाह सम्राट जी आपका स्टेमिना तो देखो ये घोडा मर गया आप अभी तक नहीं थके | वाह सम्राट वाह |" और 'सम्राट' जिनके पास मुश्किल से 10 हजार एकड़ की जागीर होती थी खुश होकर गले के हार तोड़ कर दे दिया करते थे |


     कालांतर में ये साइकोलॉजी की एक कला बन गई | जिससे आपको काम निकलवाना हो उसकी प्रशंसा कीजिये | खुद को उससे निर्बल और बेसहारा बताइए | और आसानी से अपना काम निकलवा लीजिये |


     हमारे यहाँ एक मास्टर साहब थे | पूरा इलाका उन्हें बड़े भले मानुष के नाम से जानता था | मास्टर थे ... ठोड़ी में हाथ डालकर काम निकलवाने वाले | पर मुझे हमेशा उनमे एक चालक व्यक्ति नजर आया | जब भी रजिस्टर बनाने से सम्बंधित कोई काम होता उन्हें या तो दस्त लग जाते या उनके खेत में पानी लगना होता था | अगले दिन वो हमारे दरवाजे पर दिखाई देते | पिताजी से कहते “अरे मास्साब नैक हमाओ जे काम कर द्यो | आप तो भोत जानकार आदमी हो | हमाओ चश्मा कल गिर गओ हमे तौ कछु दीखु न रओ |” 

     पिताजी हमारे “अरे मास्साब आओ ! आप रहन दो | हम कर देंगे |” हमारा चाय बिस्किट खर्चा अलग से होता था | अगले पांच मिनट में मास्टरनी चौका में चाय खौला रही होती थीं और लालाजी याने के हम उनके लिए बिस्किट सजा रहे होते थे | पूरी मास्टरी उन्होंने इसी तरह भैया दैया करके निकाल दी | जिन्दगी में कभी रजिस्टर तक नहीं बनाया |



     इस ट्रिक का दूसरा बेस्ट उदाहरण अल्लामा इक़बाल हैं | उन्होंने जितना मूर्ख इस देश के मूल नागरिकों को बनाया उतना शायद ही किसी ने बनाया हो | उन्होंने कहा "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा" .. हमारे पूर्वज एकदम फ़्लैट हो लिए | बोले "सही बात है भिया | भोत सई कै रिये हो मियाँ | तुमाये जैसे आदमी की भोत जरूअत ए इतै " ...


     फिर इक़बाल ने कहा" राम है इमाम- ए - हिन्दोस्तां " तो हमारे पूर्वज और फूल के कुप्पा हो गए | बोले " जे बन्दा तौ है भिया खुदा का भेजा हुआ चराग | सारे हिन्दोस्तां में जे फैलाएगा अम्न की रौशनी" | और ले ले के पहुँच गए मट्टी का तेल | के इस चराग को बुझने न देंगे

     तब तक भैया इक़बाल ने बोल दिया "यूनान मिस्त्र रोमां सब मिट गये जहाँ से ... कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ..." बस इत्ते में हमारे पूर्वज फूल के फट गए | इक़बाल को तुरंत गंगा जमना तहजीब का फटा हुआ तहमद घोषित कर दिया | वो तो बलास्फेमी का डर कायम था काफिरों में वरना उनका बस चलता तो पैगम्बर ही बना के छोड़ते अल्लामा को |


     खैर हमारे पूर्वज अल्लामा को सेकण्ड सन ऑफ़ गॉड घोषित करने ही वाले थे कि इतने में खबर आ गई कि अल्लामा तो पाकिस्तान लेकर हिन्दोस्तां से अलग हो गये | और हिन्दोस्तानियों को उन्होंने 15 लाख काफिरों की लाशों की सौगात भेजी है | जो कहते थे कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी वही लोग हमें जिगर के टुकड़े लाहौर, कराची से हमारी हस्ती मिटा चुके थे |



     ईरान से सिकुड़ती हुई हमारे महान देश सीमायें राजस्थान के बॉर्डर पर आकर सिमट गई | क्यों ? क्युकि हमें कुछ भाटों की बातों का विश्वास हो चला था कि हमारी हस्ती तो कभी मिट ही नहीं सकती | जो भगवा कभी गांधार पर फहरा करता था आज उसे हम काश्मीर में नहीं फहरा सकते | क्यों क्युकि सेकुलरिज्म का काला चश्मा पहन हम इतने अंधे हो गये कि सच को नंगी आखों से देखने के बाबजूद हम उसे झुठलाते रहे |


     आज हम फिर वही गलती कर रहे हैं | दुश्मन हमारी सीमा पर ही नहीं बल्कि हमारे घर के अन्दर तक घुस चुका है | 40 हजार से ज्यादा आतंकी हमारे देश का अन्न जल और तमाम सुख सुविधाएँ भोग रहे हैं और हम बुद्ध बने बैठे हैं | वो आतंकी चेहरे पर पीड़ित होने का नकाब ओढ़ कर हमसे हमारी सिम्पैथी ले रहे हैं साथ में हमारे घर जला रहे हैं | प्रतिकार में जब हम उन्हें यहाँ से निकाल रहे हैं तो हमें ही हमारे वसुधैव कुटुम्बकम और अहिंसा परमो धर्मं:का पाठ रहे हैं |



     मित्रों जहाज सुन्दरी सिर्फ एक बात बहुत प्यार से समझाती है | "इन स्टेट ऑफ़ पेनिक प्लीज़ वेर योर मास्क फर्स्ट एंड देन असिस्ट दि अदर पर्सन "  हमारे खुद के छोटे से देश में 130 करोड़ लोग पहले से मौजूद हैं | साला शाम तक साँस लेने तक में दिक्कत ने होने लगती है | राजस्थान के लोग वैसे ही प्यासे मर रहे हैं | केरला में वामपंथी कत्ल कर देते हैं | बंगाल में दीदी चैन से सोने नहीं देती | कश्मीर की तो बात करना ही बेकार है | ऐसे हालत में पहले अपनी फटी जेब में पहले टाँके लगवायें या इनकी सहलायें ?


     मित्रों एक चीज़ क्रिस्टल के माफिक साफ है | आपको पुन: वसुधैव कुटुम्बकम जैसे नारों के साथ मूर्ख बनाने की पूरी तैयारी है | फिर से इक़बाल का गाना शुरू हो चुका है और फिर से आपके हाथ में पाकिस्तान नाम का लल्ला थमा दिया जायेगा | बेहतर है इस बार आप जग जाए | और जो शरण मांगने के लिए बांग दे उसके ओद्योगिक क्षेत्र पर जोर से लात लगाकर बोलें ...


जर्रे जर्रे में शामिल है हमारे लहू के कतरे
हाँ हिन्दोस्तां हमारे बाप का ही है ...

-अनुज अग्रवाल


Saturday, 9 September 2017

#अप्राइम_टाइम #भाग1 #गौरी_लंकेश (Gauri Lankesh)

नमस्कार,
     अप्राइम टाइम में आपका स्वागत है | अप्राइम टाइम इसीलिए क्युकि अभी दोपहर के 2 बज के तीस मिनट हो रहे हैं | लिखने के लिए इसे प्राइम टाइम में भी लिख सकते थे | पर उस समय आपको समय नहीं होता | उस समय टीवी पर तरह तरह के एंकर आते हैं | आप उन्हें देखने में व्यस्त रहते हैं जो सब्जबाग दिखाते हैं | अपनी अपनी विचारधाराओं का प्रचार प्रसार करते हैं | वो एंकर सब कुछ करते हैं पर नहीं करते तो सिर्फ पत्रकारिता जिसके नाम पर वो रोटियां कमाते हैं | माफ़ करना गलत बोल दिया .. सही शब्द हैं बोटियाँ कमाते हैं .. दलाली करते हैं .. 'पत्रकारिता की'

     हाल ही में गौरी लंकेश (Gauri Lankesh) की हत्या की गयी | उस बैंगलोर सिटी में जिसे कर्णाटक की राजधानी होने के साथ साथ देश की आईटी राजधानी होने का भी गौरव प्राप्त है | ये वही सिटी है जिसके वीडियोस आप सभी ने १ जनवरी की सुबह भी देखे थे | कानून व्यवस्था को तार तार करते शोहदों के हाथ वहां जश्न मना रही लड़कियों के जिस्म को आतंकित कर रहे थे | कमाल की बात है कि प्राइम टाइम में मुद्दा देश की आईटी राजधानी में बढ़ते अपराध नहीं हैं | बल्कि मुद्दा राईट वर्सेस लेफ्ट है | एंड ऑफ़कोर्स क्रेडिट गोज टू आर प्राइम टाइम 'एंकर्स' |
     खैर इस अप्राइम टाइम में हम इन्हीं एंकर्स को बेनकाब करेंगे और साथ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाले उस दोगले प्राणियों पर भी चर्चा करेंगे जो इस समय उफान पर हैं |
     सर्वप्रथम शुरुवात सुश्री गौरी लंकेश से करते हैं | हालाँकि ये इतने सम्मान की हक़दार नहीं है पर फिर भी संघी होने के नाते एक स्त्री का सम्मान करना फर्ज है | मैडम अपने को नास्तिक और सेक्युलर कहती थीं | और हिन्दू धर्म को मिथ कहती थी | एक नंबर की बदतमीज और ट्रोल करने वाली औरत थी और साथ में बददिमाग भी | माफ़ कीजियेगा किसी मरे हुए के लिए ऐसे शब्द निकालना उचित नहीं है किन्तु मैं स्पष्टवादी हूँ | मैं वही कह रहा हूँ जो इन महोदया की वाल कह रही है |
 

     मैंने गौरी लंकेश की वाल पर चक्कर लगाया और पाया कि सिवाय विषवमन और गलतबयानी के इन्होने पत्रकारिता के नाम पर कुछ नहीं किया है | केरल में मरने वाले स्वयंसेवकों के लिए इन्होने स्वच्छ केरलं शब्द का प्रयोग किया है | फेक पोस्ट का इन्होने समर्थन किया | ऊपर से अपने वामपंथी साथियों को एक दुसरे को एक्सपोज न करने की हिदायत तक दे डाली | अपनी एक अन्य पोस्ट में इन्होने एक गधे पर मोदी लिखा है | अपनी इन्हीं फेक पोस्ट्स और जहर उगलने वाली भाषा की वजह से ये जेल भी जा चुकी है | एक पोस्ट पर तो जाहिली की सातवी सरहद इन्होने पार कर दी |
     उसमे मोहतरमा लिखती हैं कि संघी या तो रेप प्रोडक्ट होते हैं या फिर सेक्स वर्कर के प्रोडक्ट | सेक्स वर्कर को हिंदी में वैश्या और शुद्ध हिंदी में रंडी कहा जाता है | एक संघी भी किसी न किसी महिला की ही संतान होती है | एक महिला होकर(?) किसी महिला के बारे में ऐसा भद्दा लिखना एक वामपंथी को ही सुशिभित कर सकता है | गिरने की भी एक हद होती है | महोदया ने वो सारी हदें पार कर दी थी | जाहिर है ऐसा लिखने वाली महिला मानसिक रूप से स्वस्थ तो हो नहीं सकती | फिर भी हम इनका सम्मान करते हैं | क्युकि हम इनके लेवल पर नहीं गिर सकते |

                                                   
     मैंने गौतम बुद्ध की एक कहानी पढ़ी थी | जिसमे एक व्यक्ति गौतम बुद्ध को गालियां देता है और तथागत निर्विकार रूप से उसे सुनते रहते हैं | अंत में पूछने पर बुद्ध ने कहा कि जिस प्रकार तुम मुझे खाना परोसो और मैं उस खाने को ग्रहण न करूँ तो वो खाना तुम्हारे पास ही रह जाता है | ठीक उसी प्रकार मैं तुम्हारी गालियाँ भी ग्रहण करने से इंकार करता हूँ | ये तुम्हारे अपशब्द तुम्हारी थाती हैं इन्हें सहेज के रखिये | मैं तथागत इन्हें अस्वीकार करता हूँ |
     ठीक उसी तरह गौरी लंकेश मैं अनुज अग्रवाल अपनी और अपने संघी भाई बहनों की तरफ से तुम्हारी उन सारी गालीयों को ग्रहण करने से इंकार करता हूँ | तुम्हारे सारे अपशब्द तुम्हारी थाती हैं | इन्हें सहेज के रखिये और अपने परिजनों को सादर गिफ्ट कीजिये | हालाँकि मुझे इसका भी दुःख हुआ | अपनी माँ के लिए इस तरह के शब्द आपको नहीं निकालने चाहिए थे |
     अब आप मृत हैं तो इन सब बातों का क्या फायदा | पर सच तो सामने आना ही चाहिए न | खैर भरे मन से आपको श्रद्धांजलि .. ईश्वर आपको अपनी शरण में लें और थोड़ी सी तमीज़ भी सिखाएं | ताकि अगले जन्म में आप इन्सान बन सकें |
-अनुज अग्रवाल