पुराने ज़माने में राजा
महाराजा अपने साथ एक भाट(कवि) अवश्य रखते हैं | जो हमेशा उनके साथ मौजूद
रहते थे | उनका काम था रजा की प्रशंसा में कविता लिखना | इससे
होता कुछ नहीं था बस राजाओ के अहम् को संतुष्टि मिलती थी | इसके
एवज में उन्हें बेशुमार दौलत मिलती थी | उस इनाम के लालच में ये
भाट लोग कुछ भी फेंक देते थे |
मान लो किसी युद्ध में
राजा का घोडा गिर पड़ा तो ये भाट लोग ये नहीं कहेंगे कि घोडा थक गया उसे भोजन पानी
की जरूरत है वो ये कहते थे " वाह वाह सम्राट जी आपका स्टेमिना तो देखो ये
घोडा मर गया आप अभी तक नहीं थके | वाह सम्राट वाह |" और
'सम्राट' जिनके
पास मुश्किल से 10 हजार एकड़ की जागीर होती थी खुश होकर गले के हार तोड़ कर दे दिया
करते थे |
कालांतर में ये
साइकोलॉजी की एक कला बन गई | जिससे आपको काम निकलवाना
हो उसकी प्रशंसा कीजिये | खुद को उससे निर्बल और
बेसहारा बताइए | और आसानी से अपना काम निकलवा लीजिये |
हमारे यहाँ एक मास्टर साहब
थे | पूरा
इलाका उन्हें बड़े भले मानुष के नाम से जानता था | मास्टर थे ... ठोड़ी में
हाथ डालकर काम निकलवाने वाले | पर मुझे हमेशा उनमे एक
चालक व्यक्ति नजर आया | जब भी रजिस्टर बनाने से सम्बंधित कोई काम होता उन्हें या तो दस्त
लग जाते या उनके खेत में पानी लगना होता था | अगले दिन वो हमारे दरवाजे पर दिखाई
देते | पिताजी से कहते “अरे मास्साब नैक हमाओ जे काम कर द्यो | आप तो भोत जानकार
आदमी हो | हमाओ चश्मा कल गिर गओ हमे तौ कछु दीखु न रओ |”
पिताजी हमारे “अरे
मास्साब आओ ! आप रहन दो | हम कर देंगे |” हमारा चाय बिस्किट खर्चा अलग से होता था
| अगले पांच मिनट में मास्टरनी चौका में चाय खौला रही होती थीं और लालाजी याने के
हम उनके लिए बिस्किट सजा रहे होते थे | पूरी मास्टरी उन्होंने
इसी तरह भैया दैया करके निकाल दी | जिन्दगी में कभी रजिस्टर
तक नहीं बनाया |
इस ट्रिक का दूसरा बेस्ट
उदाहरण अल्लामा इक़बाल हैं | उन्होंने
जितना मूर्ख इस देश के मूल नागरिकों को बनाया उतना शायद ही किसी ने बनाया हो | उन्होंने
कहा "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा" .. हमारे पूर्वज एकदम फ़्लैट
हो लिए | बोले "सही बात है भिया | भोत सई कै रिये हो मियाँ
| तुमाये
जैसे आदमी की भोत जरूअत ए इतै " ...
फिर इक़बाल ने कहा"
राम है इमाम- ए - हिन्दोस्तां " तो हमारे पूर्वज और फूल के कुप्पा हो गए | बोले
" जे बन्दा तौ है भिया खुदा का भेजा हुआ चराग | सारे
हिन्दोस्तां में जे फैलाएगा अम्न की रौशनी"
| और
ले ले के पहुँच गए मट्टी का तेल | के इस चराग को बुझने न
देंगे |
तब तक भैया इक़बाल ने बोल दिया "यूनान मिस्त्र रोमां सब मिट
गये जहाँ से ... कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ..." बस इत्ते में
हमारे पूर्वज फूल के फट गए | इक़बाल को तुरंत गंगा
जमना तहजीब का फटा हुआ तहमद घोषित कर दिया | वो तो बलास्फेमी का डर
कायम था काफिरों में वरना उनका बस चलता तो पैगम्बर ही बना के छोड़ते अल्लामा को |
खैर हमारे पूर्वज
अल्लामा को सेकण्ड सन ऑफ़ गॉड घोषित करने ही वाले थे कि इतने में खबर आ गई कि
अल्लामा तो पाकिस्तान लेकर हिन्दोस्तां से अलग हो गये | और
हिन्दोस्तानियों को उन्होंने 15 लाख काफिरों की लाशों की
सौगात भेजी है | जो कहते थे कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी वही लोग हमें
जिगर के टुकड़े लाहौर, कराची से हमारी हस्ती मिटा चुके थे |
ईरान से सिकुड़ती हुई हमारे महान देश सीमायें राजस्थान के
बॉर्डर पर आकर सिमट गई | क्यों ? क्युकि हमें कुछ भाटों की बातों का
विश्वास हो चला था कि हमारी हस्ती तो कभी मिट ही नहीं सकती | जो भगवा कभी गांधार पर फहरा करता था आज उसे हम काश्मीर में नहीं फहरा सकते
| क्यों क्युकि सेकुलरिज्म का काला चश्मा पहन हम इतने अंधे हो गये कि सच को
नंगी आखों से देखने के बाबजूद हम उसे झुठलाते रहे |
आज हम फिर वही गलती कर
रहे हैं | दुश्मन हमारी सीमा पर ही नहीं बल्कि हमारे घर के अन्दर तक घुस चुका
है | 40 हजार
से ज्यादा आतंकी हमारे देश का अन्न जल और तमाम सुख सुविधाएँ भोग रहे हैं और हम
बुद्ध बने बैठे हैं | वो आतंकी चेहरे पर पीड़ित होने का नकाब ओढ़ कर हमसे हमारी सिम्पैथी
ले रहे हैं साथ में हमारे घर जला रहे हैं | प्रतिकार में जब हम
उन्हें यहाँ से निकाल रहे हैं तो हमें ही हमारे वसुधैव कुटुम्बकम और अहिंसा परमो
धर्मं:का पाठ रहे हैं |
मित्रों जहाज सुन्दरी
सिर्फ एक बात बहुत प्यार से समझाती है | "इन
स्टेट ऑफ़ पेनिक प्लीज़ वेर योर मास्क फर्स्ट एंड देन असिस्ट दि अदर पर्सन " हमारे खुद के छोटे से
देश में 130 करोड़ लोग पहले से मौजूद हैं | साला शाम तक साँस लेने
तक में दिक्कत ने होने लगती है | राजस्थान के लोग वैसे ही
प्यासे मर रहे हैं | केरला में वामपंथी कत्ल कर देते हैं | बंगाल
में दीदी चैन से सोने नहीं देती | कश्मीर की तो बात करना
ही बेकार है | ऐसे हालत में पहले अपनी फटी जेब में पहले टाँके लगवायें या इनकी
सहलायें ?
मित्रों एक चीज़ क्रिस्टल
के माफिक साफ है | आपको पुन: वसुधैव कुटुम्बकम जैसे नारों के साथ मूर्ख बनाने की पूरी
तैयारी है | फिर से इक़बाल का गाना शुरू हो चुका है और फिर से आपके हाथ में
पाकिस्तान नाम का लल्ला थमा दिया जायेगा | बेहतर है इस बार आप जग
जाए | और
जो शरण मांगने के लिए बांग दे उसके ओद्योगिक क्षेत्र पर जोर से लात लगाकर बोलें
...
जर्रे जर्रे में शामिल
है हमारे लहू के कतरे
हाँ हिन्दोस्तां हमारे
बाप का ही है ...
-अनुज अग्रवाल