प्रिय रविश जी,
आपको तब से सुन रहा हूँ जब शायद स्नातक में रहा होऊंगा | हिंदी पत्रकारिता करने की चाह रखने वाला शायद ही एसा कोई व्यक्ति हो जिसने आपको न सुना हो | या आप जिसके आदर्श न हों | सीधी सपाट गाँव की सुगंध से भीगी आपकी अल्हड़ भाषा मानो सीधे दिल में उतरती थी | ग्राउंड रिपोर्टिंग में तो आपका जबाब ही नहीं था | आप उस न्यूज़ के उस पहलू को दिखाते थे जिसे शायद कोई सोच भी न सके | पर धीरे धीरे आपके व्यव्हार में परिवर्तन आता गया | आपका दोहरा चेहरा उजागर होने लगा | एक आतंकी आपको मासूम लगने लगी | "भारत तेरे टुकड़े होंगे " का उद्घोष करने वालों के लिए आपने स्क्रीन तक काली कर दी | उस दिन मेरा सर शर्म से झुक गया | किसे अपना आदर्श मान बैठा था मैं ? किसके जैसे बनने की चाह ह्रदय में संजोये था मैं ? मैं उस पत्रकार रवीश का प्रशंसक था जिसने दिल्ली कि बदनाम गलियों में अपना प्राइम टाइम कर वैश्यायों का दर्द हम सबके सामने रखा था उसका नहीं जिसने देशद्रोही नारों के समर्थन में स्क्रीन काली कर दी |

एक बात सोचने की है | क्या "भारत की बर्बादी" के बाद आप भी अपना प्राइम टाइम कर पाएंगे सर ? जिन लोगों का समर्थन आप कर रहे हैं उन्हीं के भाई बन्धु इराक में महिलाओं को नंगा करके कोडियों में बेचते हैं | आशा करता हूँ कि आप इन तथ्यों से अनभिज्ञ तो नहीं होंगे | सोचिये आप इराक में हैं और आपका सुप्रसिद्ध दिल्ली वाला प्राइम टाइम करना चाहते हैं | क्या कर सकेंगे आप ? फिर ऐसे नारों का अंध समर्थन क्यों ? क्या अच्छा नहीं होता कि बजाय स्क्रीन काली करने के आपने कहा होता कि नारें लगे हैं तो इसका दोषी कौन है ? काश आपने मेरे देश को गाली देने वालों के विरोध में अपनी स्क्रीन काली की होती |
खैर छोडिये इसे | स्क्रीन काली करना आपकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी | आपके पक्षपात का विरोध करना हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है | ये जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हाई वे है न सर | इसे बाईडायरेक्शनल रहने दीजिये | इसे यूनीडायरेक्शनल मत बनाइये | आपको अधिकार है आलोचना का | आपका अधिकार हमारे सर माथे पर | आलोचना खूब कीजिये आप खूब निंदा कीजिये पर साथ में दूसरों को समीक्षा का अधिकार भी दीजिये | हमें हमारे समीक्षा के अधिकार से वंचित न कीजिये सर | पत्रकार रवीश से जज रवीश मत बनिए सर |
मुझे याद है आपका गौ हत्या पर प्रतिबन्ध के समय का आपका प्राइम टाइम | बजाय ये बताने के कि गौ माँ के दूध से बुद्धि का विकास होता है आप उसके मांस खाने के फायदे बता रहे थे |आप अपने दर्शकों को बता रहे थे कि गौ मांस में इतना प्रोटीन होता है उतना जिंक होता है | जो स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है | शर्म नहीं आती आपको ? कल को कोई सिरफिरा व्यक्ति अगर सर्दी में कुरान जलाने की बात करने लगे तब क्या करेंगे आप ? आप उस सिरफिरे व्यक्ति को रोकने का प्रयास करेंगे या इसे उसका सर्दी से बचने का नैसर्गिक अधिकार बताकर उस सिरफिरे की इस घिनौनी हरकत का विरोध करेंगे ? क्या तब भी आप ये बताएँगे कि एक पन्ने को जलाने से इतने जूल गर्मी या इतने वाट ऊष्मा उत्पन्न होगी ? नहीं न | फिर हिन्दुओं के लिए पूज्य गौ के लिए आपका दुराग्रह क्यों ? आपकी कथित धर्मनिरपेक्षता की बलिवेदी पर सिर्फ गौ की ही क़ुरबानी क्यों सर ?
अख़लाक़ की मृत्यु पर चूड़ी तोड़ विधवा प्रलाप करने वाले आप लोग प्रशांत पुजारी की नृशंस हत्या पर कभी नहीं बोलते | वो चाहे केरल का सुजीत हो या आगरा का अरुण माहौर | उनकी रूह किसी शमशान में आज तक आपके प्राइम टाइम शो की राह तक रही है | और ये न समझना कि ये सिर्फ दो-तीन नाम हैं | ऐसे अनगिनत नाम हैं जो मार दिए गए | कई तो ऐसे हैं जिनकी लाशें तक उनके परिवारीजनो को नसीब न हुईं | नयी सड़क पर चलने वाली आपकी NDTV की OP वैन उनकी लाशों को कुचलती हुई कभी JNU गयी तो कभी बिहार | न पहुंची तो इन अभागों के द्वार जिनका रास्ता शायद आपको कभी मिला नहीं | या सच कहूँ तो आपने कभी ढूँढने की कोशिश भी नहीं की | अफ़सोस कभी आपको २ घडी का समय न मिला | काश इन मजलूमों को भी आपके वो १५ मिनट नसीब हुए होते | काश कभी इनके लिए भी आपने प्राइम टाइम किया होता |
आज भी जब आपके भ्राता श्री का नाम सेक्स स्केंडल में
उछला है आपने चुप्पी साध ली है | एक कार्यक्रम में किसी ने आपसे तल्ख़ प्रश्न कर दिया
था | तब आप सांसे उखाड़ के चिल्ला चिल्ला के पूछ रहे थे कि “जो 25 हेलीकाप्टर लेकर
उड़ता है वो दलाल है या नहीं” ? अब आप पूछिये अपने बड़े भैया से कि वो लड़कियों सप्लायर हैं
या नहीं | पूछिये न सर राडिया टेप में आने वाली अपनी सहकर्मी से कि नीम का पत्ता कडवा
है या नहीं ? आप सभी को दलाल कहिये, अंधभक्त कहिये, चमचा कहिये या गुंडा कहिये पर
अगर सामने वाला आपको खबरंडी बोल दे तो टसुये मत बहाइये सर | ये विक्टिम कार्ड मत
खेलिए सर | ये फाउल है |
सुना है सर आप बड़े क्रिएटिव हैं | आपको TRP की परवाह भी नहीं | तो क्यों न आज आप अपने भैया के खिलाफ अपनी क्रियेटिविटी दिखाएँ | चलिए रवीश जी आज वापस उन गलियों में चलें जहाँ आपने अपना सुप्रसिद्ध प्राइम टाइम किया था | उन बदनाम बस्तियों की गाथा दुबारा सुनाएँ जनता को | किस तरह भारत की तरुणाई सिसक रही है अपनी बेबसी पर | सुनाये उन दलालों के किस्से और कहानियां भी | जिनकी वजह से बच्चियों की मासूमियत दरिंदों के बिस्तर पर दम तोड़ रही है |
मैं पूछता हूँ रवीश जी आपसे ? चलेंगे आप मेरे साथ आज फिर वहां ? है हिम्मत आपमें आपके भाई के खिलाफ खड़े होने की ? है हिम्मत आपमें पेशे से न्याय करने की ? सच के साथ खड़े होने की ? सही को सही गलत को गलत कहने की ? मैं जानता हूँ आप ये नहीं कर सकते | क्युकि सच का साथ देने के लिए आदमी का जमीर जिन्दा होना चाहिए | रीढ़ की हड्डी होनी चाहिए जो आदमी को जुल्म के सामने सीधा तन के खड़ा रखती है | जो अपना जमीर बेच चुके जिनके शरीर में रीढ़ की हड्डी नहीं वो भला क्या सच का साथ दे पाएंगे | रहने दीजिये सर आपसे न हो पायेगा |
पत्रकार एक सामाजिक प्राणी है | कुछ नहीं तो कम से कम 10 हजार लोग आपको सुनते होंगे | उन में से कई आपको अपना आदर्श मानते हैं | उनकी विचारधारा या सोचने की समझ आपको सुनते हुए विकसित होती है | मुझ जैसे साधारण लोग इस छोटी सी बात को समझते हैं | तो क्या ये बात आपको समझ नहीं आती | सार्वजानिक जीवन जीने वाले आदमी को क्या आतंकियों के पक्ष में मुहीम चलाने की अनुमति दी जा सकती है ? जरा इस पर भी गौर कीजियेगा सर | आपको अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी | पत्रकारिता की आड़ में आपको आपका एजेंडा चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती |
हाँ पर इसकी आड़ में गाली देने की अनुमति भी नहीं दी जा सकती | पर ये गाली देने वाले दोनों तरफ हैं सर | मुझे तो अक्सर देख लेने की धमकी देते हैं | अभी १ साल पहले मुझे ददवारे में पकड़ लिया था | गाली गलौज हुई सही टाइम पर कुछ मित्र मिल गए वरना आज आपको ये नहीं लिख पाता | हो सकता था कि उस दिन मैं सुजीत के जैसे तलवारों से काट दिया जाता| आप तो मेरी कब्र पर फातिहा पढने भी नहीं आते | क्युकि मैं आपके व्यक्तिगत और व्यापारिक हितों के ढांचे में फिट नहीं बैठता |
जहाँ तक गाली गलौज का प्रश्न है मैं मानता हूँ ये शर्म का विषय है | जब आदमी तर्क से हारता है तो गाली गलौज का ही सहारा लेता है | पर हर बार एसा नहीं होता | मैं अग्रवाल हूँ | अपनी दुकान पर जाकर सबसे पहले उसके पैर छूता हूँ | वो हमारी पालनहार है | खाने के लिए २ वक्त की रोटी का प्रबंध करती है | सुबह से शाम ईमानदारी से ग्राहक चलाता हूँ | कोई लड़ भी ले तो पलट कर जबाब नहीं देता | वैसे ही आपके लिए आपकी पत्रकारिता भी आपके लिए माँ का दर्जा रखती होगी | आप नास्तिक हैं तो पैर तो नहीं छूते होंगे | पर मेरा विश्वास है कि इसके प्रति माँ की श्रद्धा अवश्य रखते होंगे | फिर जरा सोचिये जब आप अपनी पक्षपाती रिपोर्टिंग करते हैं तब क्या आप अपनी इस माँ से बलात्कार नहीं कर रहे होते हैं ? जब आप इशरत सी "आतंकी" को "मासूम" बताते हैं तब आप इसे "रंडी" कहकर अपमानित नहीं कर रहे होते हैं ? जब "भारत की बर्बादी" के नारे लगाने वाले को आप जनता में हीरो बनाते हैं तब क्या आप स्वयं इसकी बोली लगा कर इसकी "दलाली" नहीं कर रहे होते हैं ?
मैं शिशु मंदिर का पढ़ा हूँ | हमारे आचार्य जी रोज हमें कथा सुनाते थे | एक बार भगवन गौतम बुद्ध की कहानी सुनाई | एक व्यक्ति तथागत की प्रसिद्धी से चिढ़ता था | वो रोज आता और बुद्ध को गाली सुनाता | पर बुद्ध प्रतिउत्तर में कुछ न कहते बस मुस्कुरा भर देते | दिन महीने साल बीते | वो व्यक्ति उपेक्षा से त्रस्त हो गया | थक हार कर बुद्ध से बोला मैंने आपका इतना अपमान किया इतनी गाली दी आपको पर आप विचलित न हुए | पलट कर कभी आपने कुछ न कहा | क्यों ? तब तथागत बोले पुत्र मान लो तुम मुझे भोजन परोसो और मैं खाने से इंकार कर दूँ तो वो भोजन किसके पास रहेगा | उसने कहा वो तो मेरे पास ही रहेगा | बुद्ध ने कहा बस मैंने तुम्हारी गाली भी स्वीकार नहीं कि वत्स | आप लोग बुद्ध की विरासत सँभालने का दावा करते हैं | बुद्ध की इतनी साधारण सीख आप महान लोगों के समझ में नहीं आई | जिसके पास जो है वही आपको प्रदान करेगा | आपके ऊपर है कि आप उसे स्वीकार करते हैं या अस्वीकार |
हालाँकि आपके कारनामे बहुत हैं लिखने के लिए | पर मैं आप जितना लिक्खाड़ नहीं हूँ | मेरे कम लिखे को ज्यादा समझना | मुझे पता है सर कि आप बड़े पत्रकार हैं | मुझे जबाब देने का कष्ट हर्गिज नहीं करेंगे | पर मेरे इन प्रश्नों पर सरसरी निगाह जरूर डालियेगा सर | कम से कम आईना सामने रखकर अपनी आँखों में आँखें डालकर इनमे से एक प्रश्न का उत्तर खुद को अवश्य दीजियेगा सर | और हाँ ये सब करते हुए अपना अपना मुंह मत छिपाना सर | क्युकी आपके ज्यादातर उत्तर आपको आपकी ही नजरों में गिराने के लिए काफी हैं |