Friday, 24 February 2017

शिव आदियोगी हैं, नशेडी नहीं

     हाल ही में महाशिवरात्रि का पर्व बीत गया | यानि कि भगवान आशुतोष का दिन | कई मित्रो के मेसेज आये शिवरात्रि की शुभकामनाये प्रेषित करते हुए | सभी का धन्यवाद सभी को शुभकामनाये | रूद्र आप सबकी रक्षा करे | पर आज मन उस तरह प्रफुल्लित नहीं है जिस तरह एक त्यौहार पर होना चाहिए | कारण है कि जितने भी मेसेज आये उनमे से आधे में भगवान् शिव का वर्णन एक नशेडी की तरह किया गया |

     वो महासूर्य अपने धनुष पिनाक की प्रत्यंचा मात्र चढ़ा दे तो अचल पृथ्वी भी कम्पन करने लगती है | उस पराक्रमी का चित्रण आप भांग नशे में चूर रहने वाले आदमी की तरह कर रहे हैं ? जो समस्त लोकों में संहार के देव हैं | जो युद्ध में स्वयं रूद्र और कालों में स्वयं महाकाल हैं | जो सत्य हैं, सनातन है जो शाश्वत हैं, शिव हैं | उन्हें आप धतूरा खाने वाला बता रहे हो ? कभी कुछ लिखने से पहले सोच भी लिया करो मित्रो कि क्या लिख रहे हो और किसके बारे में लिख रहे हो?
     मुझे पता है यहाँ पर भी कुछ मित्र कई धर्मग्रंथो से ससंदर्भ ये प्रमाणित कर सकते हैं कि भगवान् शिव धतूरे या भांग का सेवन करते थे | पर मेरी नजर में ये संभव नहीं है | जो हिंदी को या किसी भी भाषा को थोडा सा भी जानते हैं या जिन्हें साहित्य की थोड़ी सी भी जानकारी है, वो सब ये जानते हैं कि लिखते समय लेखक भाषा को बोझिल होने से बचाने के लिए अलंकारों का प्रयोग करता है | ताकि उसके लिखे की पठनीयता बनी रहे | जैसे किसी कवि ने लिखा
राम रण मध्य एसो कौतुक करत आज |

बाणन के संग छूटन लाग्ये प्रान दनुजन के ||

     “यानि भगवान् श्री राम आज एसा कमाल का युद्ध कर रहे हैं कि जैसे ही वो इधर से बाण छोड़ते है तो दूसरी तरफ राक्षसों का वध हो जाता है | “ अब अगर आप थोडा सा भी सोचेंगे तो पाएंगे एसा करना बिलकुल भी संभव नहीं है | आसानी से कोई भी ये जान सकता है कि ये अतिशयोक्ति का प्रयोग है श्रीराम की वीरता का वर्णन करने के लिए |
                             
     ठीक उसी तरह हम सभी जानते हैं कि शिव महायोगी हैं | कहते हैं कि समाधिस्थ शिव का इस चराचर जगत से कोई सम्बन्ध नहीं रह जाता है | वो समाधि में कुछ इस तरह लीन हो जाते है कि उन्हें खुद के शरीर की भी सुध नहीं रहती है | ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार किसी धतूरा खाए व्यक्ति की हालत हो जाती है | 
     हो सकता है कि उस ज़माने के लेखकों(ऋषि मुनि जो शिक्षा जिन पर शिक्षा के प्रसार का दारोमदार था) ने अपने लेखन में उसी अतिश्योक्ति या रूपक या उत्प्रेक्षा या किसी अन्य अलंकार का प्रयोग अपने शिष्यों को शिव की एकाग्रता को समझाने के लिए किया हो | जरा सी देर के लिए अपने मस्तिष्क के सातों द्वार खोलिए और खुले मन से सोचिये| खुद से पूछिये कि क्या ये संभव नहीं है? क्या पता आपको इसका जबाब खुद आपके अंतर्मन से मिल जाये| 

Thursday, 23 February 2017

एक जंग बौद्धिक आतंकियों के खिलाफ

     अभी हाल ही में रामजस कॉलेज में AISA के बौद्धिक आतंकवादियों द्वारा देश में फिर से अराजकता उत्पन्न करने का कुत्सित प्रयास किया गया | एक सेमिनार थी जिसमे देश द्रोह के आरोपियों को बोलना था | विषय था "कल्चर ऑफ़ प्रोटेस्ट - अ सेमिनार एक्सप्लोरिंग रेप्रजेंटेशन ऑफ़ डिसेंट" |
                               
     विरोध की संस्कृति कैसी होनी चाहिए इस पर वो लोग बोलना चाहते थे जिन्होंने मेरे भारतवर्ष के विरोध में इसके टुकड़े-टुकड़े करने की कसमे खायीं | भारत के अभिन्न अंग कश्मीर को भारत से आज़ाद करने के हिंसक आन्दोलन के समर्थक स्टेज पर बोलेंगे कि हमें विरोध कैसे करना चाहिए ? आयरनी ये है कि जो लोग खूनी माओवाद के धुर समर्थक हैं, जिनका संगठन JNU तक में बैन है, जिनके आकाओं के कहा कि "सत्ता बन्दूक की नालियों से गुजरती है " "वो कामरेड हो ही नहीं सकता जिसके हाथ खून से न रंगे हों |" ऐसे नरपिशाच लोग DU के छात्रो को सिखायेंगे कि विरोध कैसे करना चाहिए ?
     कहते हैं बच्चे अनगढ़ मिट्टी और शिक्षक कुम्हार होता है | कुम्हार अपनी चाक पर मिट्टी को घुमा घुमा कर घड़ा बना सकता है | पर वही मिट्टी जो एक सुन्दर सुराही बन सकती थी जरा सी असावधानी होने कूड़े के ढेर का हिस्सा हो जाती है | यहाँ इस संस्थानों में ऐसे प्रोफेसर्स बहुतायत में हैं जो deliberately स्टूडेंट्स का ब्रेन वाश कर उन्हें कूड़े के ढेर का हिस्सा बना रहे हैं | JNU में किस तरह आतंकवादियों से सॉफ्ट कॉर्नर रखने वाले स्टूडेंट्स और प्रोफेसर्स हैं ये हम सभी जानते हैं | भारत की श्रमजीवी जनता के मेहनत के पैसे पर पलने वाले ये पैरासाइट्स भारत के खिलाफ, भारत के बेटों में ही जहर भरते हैं |
         
     अब तक इनका दायरा सीमित था | ये सब देश की चुनिन्दा यूनिवर्सिटीज में होता था | जैसे JNU AMU आदि आदि | वहां से जम्मू और जाधवपुर यूनिवर्सिटी पहुंचे | अब इनका निशाना राष्ट्रवादियों का गढ़ दिल्ली यूनिवर्सिटी है | अब ये विषाणु हर जगह पांव पसारने की कोशिश कर रहे हैं | फिर इनके समर्थन में इनका नेक्सस आ जाता है | हाँ वही दलाल पत्रकार और वोट्स के भूखे नेता | ये वो वर्ग है जिसे इस देश के प्रति कभी श्रद्धा नहीं रही है | आप गौर से देख लीजिये | इनके समर्थन में वो सब लोग होंगे जो कश्मीर में आतंकवादियो के समर्थक हैं | जिनकी नजर में सेना बलात्कारी है | जिनकी नजर में नक्सल आतंकी मासूम हैं | जो NGO के खेल में सक्रिय हैं | जिनके लिए हिन्दुस्थान अब रहने लायक नहीं बचा है | और सबसे महत्वपूर्ण जिनकी नजर में औरंगजेब मसीहा है |
     जब ऐसे लोगों का विरोध होता है | तब यही लोग पहले उकसाने वाले नारे लगाते हैं | थूकते हैं गालियाँ देते हैं | ढोल की थाप पर कोरस गातें हैं नीम का पत्ता कडवा है और फलां आदमी @#वा है | पलट के कोई बोल दें अबे तुम साले अपने देश को गरियाते हो | तुम तो सोनागाछी के कोठों की पैदाइश हो | फिर ये लोग हमला बोल देते हैं | मारपीट करते हैं | पलट के कोई इनके गाल गरम कर दे तो ये लोग विक्टिम कार्ड खेलना शुरू कर देते हैं | ये ऐसे दर्शातें हैं जैसे इस देश में ये अति शोषित लोग हैं | इनका काम सरल करते हैं मीडिया में बैठे इनके दलाल | जिनकी रिपोर्टिंग और शब्द ऐसे होते हैं जो देश की जनता में इनके लिए सहानुभूति उत्पन्न करते हैं |
     मैं हमेशा से कहता हूँ | वैचारिक लड़ाई में आपका पक्ष आपके शब्द रखते हैं | आप तटस्थ होकर भी तटस्थ नहीं होते | वो आपके शब्द होते हैं जो आपको तटस्थ रखते हुए आपके अन्दर के पक्ष को उजागर करते हैं | इसे समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं :- आप कभी भी देख लीजिये | पत्रकार विशेष हमेशा किसी भी विवाद की स्तिथि में रिपोर्टिंग करते समय AISA के स्टूडेंट्स और ABVP के कार्यकर्त्ता या सदस्य बोलेंगे | वो कभी ABVP के छात्र शब्द का प्रयोग नहीं करेंगे | जैसे कि AISA जैसे संगठनो के लिए ये करते हैं | कुछ पत्रकार जिनके घरवाले ‘लड़कियों की दलाली’ में संलग्न हैं और जो ‘क्रन्तिकारी चैनल’ से हैं वो तो ABVP के गुंडे शब्द का प्रयोग तक कर देते हैं |
                                      
     ऐसे लोग हमेशा वामपंथी संगठनों की मारपीट या देशद्रोह को बढ़ी चालाकी से छिपाते हैं | उदाहरण के लिए आपमें से कितने लोग जानते हैं कि दंतेवाडा में 76 जवानो की नृशंस हत्या पर JNU के आतंकियों ने जश्न मनाया था ? कितने लोग जानते हैं कि JNU में महिषासुर के नाम पर माँ दुर्गा का अपमान किया गया था ? आपमें से कितने लोग जानते हैं कि 29 अप्रैल 2000 को JNU में 2 आर्मी ऑफिसर्स को मर्सीलेस्ली पीटा गया था क्युकि उन्होंने वहां मुशायरे में एंटी इंडिया स्लोगन्स का विरोध किया | अब आप खुद से पूछिए कि क्या ये न्यूज़ आपको टीवी काली करने वालों ने या देश को इंटोलरेंट बताने वालों ने प्राइम टाइम पर दिखाई थी क्या ? पूछिये इनसे कि तब इनके कैमरे कहाँ थे ? यही लोग हैं जो एक पक्ष के प्रोपेगेंडा को प्रमोट करते हैं | बिना पक्ष लिए अपना पक्ष रखना इसी को कहते हैं | और इस नेक्सस का सच सामने लाना बहुत जरूरी है |
     आइये उन सभी को जबाब दें जो भरपूर दें जो हमारे देश के खिलाफ हैं | जिनका सपना भारत की बर्बादी है | आइये जंग छेड़े उन बौद्धिक आतंकवादियों के खिलाफ जो हमारे देश के टुकड़े टुकड़े करना चाहते हैं | अब समय है हम पलट कर जबाब दें | कोई आपको ABVP का गुंडा कहे आप जबाब में AISA का आतंकवादी कहें | वो दिन गए जब आप लोगों की प्रोपेगेंडा पॉलिटिक्स हम चुपचाप सह लेते थे | अब भारत की तरुणाई जाग चुकी है | ये अब तक सहा है अब नहीं सहेंगे | इस गुंडागर्दी का हम हर संभव विरोध करेंगे | आज भगवान आशुतोष का दिन है | आइये इस महाशिवरात्रि पर इस विषवेल के समूल विनाश की शपथ लें | लगायें हर हर महादेव का नारा और संहार कर दें भारत माँ आंचल को तार – तार करने का सपना देखने वालों का |
जय हिन्द जय भारत
हर हर महादेव

Tuesday, 21 February 2017

एक खत रवीश जी के नाम

प्रिय रविश जी,

     आपको तब से सुन रहा हूँ जब शायद स्नातक में रहा होऊंगा | हिंदी पत्रकारिता करने की चाह रखने वाला शायद ही एसा कोई व्यक्ति हो जिसने आपको सुना हो | या आप जिसके आदर्श हों | सीधी सपाट गाँव की सुगंध से भीगी आपकी अल्हड़ भाषा मानो सीधे दिल में उतरती थी | ग्राउंड रिपोर्टिंग में तो आपका जबाब ही नहीं था | आप उस न्यूज़ के उस पहलू को दिखाते थे जिसे शायद कोई सोच भी सके | पर धीरे धीरे आपके व्यव्हार में परिवर्तन आता गया | आपका दोहरा चेहरा उजागर होने लगा | एक आतंकी आपको मासूम लगने लगी | "भारत तेरे टुकड़े होंगे " का उद्घोष करने वालों के लिए आपने स्क्रीन तक काली कर दी | उस दिन मेरा सर शर्म से झुक गया | किसे अपना आदर्श मान बैठा था मैं ? किसके जैसे बनने की चाह ह्रदय में संजोये था मैं ? मैं उस पत्रकार रवीश का प्रशंसक था जिसने दिल्ली कि बदनाम गलियों में अपना प्राइम टाइम कर वैश्यायों का दर्द हम सबके सामने रखा था उसका नहीं जिसने देशद्रोही नारों के समर्थन में स्क्रीन काली कर दी |
     एक बात सोचने की है | क्या "भारत की बर्बादी" के बाद आप भी अपना प्राइम टाइम कर पाएंगे सर ? जिन लोगों का समर्थन आप कर रहे हैं उन्हीं के भाई बन्धु इराक में महिलाओं को नंगा करके कोडियों में बेचते हैं | आशा करता हूँ कि आप इन तथ्यों से अनभिज्ञ तो नहीं होंगे | सोचिये आप इराक में हैं और आपका सुप्रसिद्ध दिल्ली वाला प्राइम टाइम करना चाहते हैं | क्या कर सकेंगे आप ? फिर ऐसे नारों का अंध समर्थन क्यों ? क्या अच्छा नहीं होता कि बजाय स्क्रीन काली करने के आपने कहा होता कि नारें लगे हैं तो इसका दोषी कौन है ? काश आपने मेरे देश को गाली देने वालों के विरोध में अपनी स्क्रीन काली की होती |

     खैर छोडिये इसे | स्क्रीन काली करना आपकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी | आपके पक्षपात का विरोध करना हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है | ये जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हाई वे है सर | इसे बाईडायरेक्शनल रहने दीजिये | इसे यूनीडायरेक्शनल मत बनाइये | आपको अधिकार है आलोचना का | आपका अधिकार हमारे सर माथे पर | आलोचना खूब कीजिये आप खूब निंदा कीजिये पर साथ में दूसरों को समीक्षा का अधिकार भी दीजिये | हमें हमारे समीक्षा के अधिकार से वंचित कीजिये सर | पत्रकार रवीश से जज रवीश मत बनिए सर |

     मुझे याद है आपका गौ हत्या पर प्रतिबन्ध के समय का आपका प्राइम टाइम | बजाय ये बताने के कि गौ माँ के दूध से बुद्धि का विकास होता है आप उसके मांस खाने के फायदे बता रहे थे |आप अपने दर्शकों को बता रहे थे कि गौ मांस में इतना प्रोटीन होता है उतना जिंक होता है | जो स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है | शर्म नहीं आती आपको ? कल को कोई सिरफिरा व्यक्ति अगर सर्दी में कुरान जलाने की बात करने लगे तब क्या करेंगे आप ? आप उस सिरफिरे व्यक्ति को रोकने का प्रयास करेंगे या इसे उसका सर्दी से बचने का नैसर्गिक अधिकार बताकर उस सिरफिरे की इस घिनौनी हरकत का विरोध करेंगे ? क्या तब भी आप ये बताएँगे कि एक पन्ने को जलाने से इतने जूल गर्मी या इतने वाट ऊष्मा उत्पन्न होगी ? नहीं | फिर हिन्दुओं के लिए पूज्य गौ के लिए आपका दुराग्रह क्यों ? आपकी कथित धर्मनिरपेक्षता की बलिवेदी पर सिर्फ गौ की ही क़ुरबानी क्यों सर ?
                                   
     अख़लाक़ की मृत्यु पर चूड़ी तोड़ विधवा प्रलाप करने वाले आप लोग प्रशांत पुजारी की नृशंस हत्या पर कभी नहीं बोलते | वो चाहे केरल का सुजीत हो या आगरा का अरुण माहौर | उनकी रूह किसी शमशान में आज तक आपके प्राइम टाइम शो की राह तक रही है | और ये समझना कि ये सिर्फ दो-तीन नाम हैं | ऐसे अनगिनत नाम हैं जो मार दिए गए | कई तो ऐसे हैं जिनकी लाशें तक उनके परिवारीजनो को नसीब हुईं | नयी सड़क पर चलने वाली आपकी NDTV की OP वैन उनकी लाशों को कुचलती हुई कभी JNU गयी तो कभी बिहार | पहुंची तो इन अभागों के द्वार जिनका रास्ता शायद आपको कभी मिला नहीं | या सच कहूँ तो आपने कभी ढूँढने की कोशिश भी नहीं की | अफ़सोस कभी आपको घडी का समय मिला | काश इन मजलूमों को भी आपके वो १५ मिनट नसीब हुए होते | काश कभी इनके लिए भी आपने प्राइम टाइम किया होता |

     आज भी जब आपके भ्राता श्री का नाम सेक्स स्केंडल में उछला है आपने चुप्पी साध ली है | एक कार्यक्रम में किसी ने आपसे तल्ख़ प्रश्न कर दिया था | तब आप सांसे उखाड़ के चिल्ला चिल्ला के पूछ रहे थे कि “जो 25 हेलीकाप्टर लेकर उड़ता है वो दलाल है या नहीं” ? अब आप पूछिये अपने बड़े भैया से कि वो लड़कियों सप्लायर हैं या नहीं | पूछिये न सर राडिया टेप में आने वाली अपनी सहकर्मी से कि नीम का पत्ता कडवा है या नहीं ? आप सभी को दलाल कहिये, अंधभक्त कहिये, चमचा कहिये या गुंडा कहिये पर अगर सामने वाला आपको खबरंडी बोल दे तो टसुये मत बहाइये सर | ये विक्टिम कार्ड मत खेलिए सर | ये फाउल है |
                             
     सुना है सर आप बड़े क्रिएटिव हैं | आपको TRP की परवाह भी नहीं | तो क्यों न आज आप अपने भैया के खिलाफ अपनी क्रियेटिविटी दिखाएँ | चलिए रवीश जी आज वापस उन गलियों में चलें जहाँ आपने अपना सुप्रसिद्ध प्राइम टाइम किया था | उन बदनाम बस्तियों की गाथा दुबारा सुनाएँ जनता को | किस तरह भारत की तरुणाई सिसक रही है अपनी बेबसी पर | सुनाये उन दलालों के किस्से और कहानियां भी | जिनकी वजह से बच्चियों की मासूमियत दरिंदों के बिस्तर पर दम तोड़ रही है | 
     मैं पूछता हूँ रवीश जी आपसे ? चलेंगे आप मेरे साथ आज फिर वहां ? है हिम्मत आपमें आपके भाई के खिलाफ खड़े होने की ? है हिम्मत आपमें पेशे से न्याय करने की ? सच के साथ खड़े होने की ? सही को सही गलत को गलत कहने की ? मैं जानता हूँ आप ये नहीं कर सकते | क्युकि सच का साथ देने के लिए आदमी का जमीर जिन्दा होना चाहिए | रीढ़ की हड्डी होनी चाहिए जो आदमी को जुल्म के सामने सीधा तन के खड़ा रखती है | जो अपना जमीर बेच चुके जिनके शरीर में रीढ़ की हड्डी नहीं वो भला क्या सच का साथ दे पाएंगे | रहने दीजिये सर आपसे न हो पायेगा |

     पत्रकार एक सामाजिक प्राणी है कुछ नहीं तो कम से कम 10 हजार लोग आपको सुनते होंगे | उन में से कई आपको अपना आदर्श मानते हैं | उनकी विचारधारा या सोचने की समझ आपको सुनते हुए विकसित होती हैमुझ जैसे साधारण लोग इस छोटी सी बात को समझते हैं | तो क्या ये बात आपको सम नहीं आती | सार्वजानिक जीवन जीने वाले आदमी को क्या आतंकियों के पक्ष में मुहीम चलाने की अनुमति दी जा सकती है ? जरा इस पर भी गौर कीजियेगा सर | आपको अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी | पत्रकारिता की आड़ में आपको आपका एजेंडा चलाने  की अनुमति नहीं दी जा सकती |
                       
     हाँ पर इसकी आड़ में गाली देने की अनुमति भी नहीं दी जा सकती | पर ये गाली देने वाले दोनों तरफ हैं सर | मुझे तो अक्सर देख लेने की धमकी देते हैं | अभी साल पहले मुझे ददवारे में पकड़ लिया था | गाली गलौज हुई सही टाइम पर कुछ मित्र मिल गए वरना आज आपको ये नहीं लिख पाता | हो सकता था कि उस दिन मैं सुजीत के जैसे तलवारों से काट दिया जाता| आप तो मेरी कब्र पर फातिहा पढने भी नहीं आते | क्युकि मैं आपके व्यक्तिगत और व्यापारिक हितों के ढांचे में फिट नहीं बैठता |

     जहाँ तक गाली गलौज का प्रश्न है मैं मानता हूँ ये शर्म का विषय है | जब आदमी तर्क से हारता है तो गाली गलौज का ही सहारा लेता है | पर हर बार एसा नहीं होता | मैं अग्रवाल हूँ | अपनी दुकान पर जाकर सबसे पहले उसके पैर छूता हूँ | वो हमारी पालनहार है | खाने के लिए वक्त की रोटी का प्रबंध करती है | सुबह से शाम ईमानदारी से ग्राहक चलाता हूँ | कोई लड़ भी ले तो पलट कर जबाब नहीं देता | वैसे ही आपके लिए आपकी पत्रकारिता भी आपके लिए माँ का दर्जा रखती होगी | आप नास्तिक हैं तो पैर तो नहीं छूते होंगे | पर मेरा विश्वास है कि इसके प्रति माँ की श्रद्धा अवश्य रखते होंगे | फिर जरा सोचिये जब आप अपनी पक्षपाती रिपोर्टिंग करते हैं तब क्या आप अपनी इस माँ से बलात्कार नहीं कर रहे होते हैं ? जब आप इशरत सी "आतंकी" को "मासूम" बताते हैं तब आप इसे "रंडी" कहकर अपमानित नहीं कर रहे होते हैं ? जब "भारत की बर्बादी" के नारे लगाने वाले को आप जनता में हीरो बनाते हैं तब क्या आप स्वयं इसकी बोली लगा कर इसकी "दलाली" नहीं कर रहे होते हैं ?

     मैं शिशु मंदिर का पढ़ा हूँ | हमारे आचार्य जी रोज हमें कथा सुनाते थे | एक बार भगवन गौतम बुद्ध की कहानी सुनाई | एक व्यक्ति तथागत की प्रसिद्धी से चिढ़ता था | वो रोज आता और बुद्ध को गाली सुनाता | पर बुद्ध प्रतिउत्तर में कुछ कहते बस मुस्कुरा भर देते | दिन महीने साल बीते | वो व्यक्ति उपेक्षा से त्रस्त हो गया | थक हार कर बुद्ध से बोला मैंने आपका इतना अपमान किया इतनी गाली दी आपको पर आप विचलित हुए | पलट कर कभी आपने कुछ कहा | क्यों ? तब तथागत बोले पुत्र मान लो तुम मुझे भोजन परोसो और मैं खाने से इंकार कर दूँ तो वो भोजन किसके पास रहेगा | उसने कहा वो तो मेरे पास ही रहेगा | बुद्ध ने कहा बस मैंने तुम्हारी गाली भी स्वीकार नहीं कि वत्स | आप लोग बुद्ध की विरासत सँभालने का दावा करते हैं | बुद्ध की इतनी साधारण सीख आप महान लोगों के समझ में नहीं आई | जिसके पास जो है वही आपको प्रदान करेगा | आपके ऊपर है कि आप उसे स्वीकार करते हैं या अस्वीकार |

     हालाँकि आपके कारनामे बहुत हैं लिखने के लिए | पर मैं आप जितना लिक्खाड़ नहीं हूँ | मेरे कम लिखे को ज्यादा समझना | मुझे पता है सर कि आप बड़े पत्रकार हैं | मुझे जबाब देने का कष्ट हर्गिज नहीं करेंगे | पर मेरे इन प्रश्नों पर सरसरी निगाह जरूर डालियेगा सर | कम से कम आईना सामने रखकर अपनी आँखों में आँखें डालकर इनमे से एक प्रश्न का उत्तर खुद को अवश्य दीजियेगा सर | और हाँ ये सब करते हुए अपना अपना मुंह मत छिपाना सर | क्युकी आपके ज्यादातर उत्तर आपको आपकी ही नजरों में गिराने के लिए काफी हैं |