Sunday, 29 January 2017

गाँधी जी को पढ़ाइये ... छिपाइए मत

     जानते हो आज 12 साल का बच्चा गाँधी जी की बहिन मतारी क्यों करता है ? क्योंकि 5 साल की उमर से हमारे ऊपर गाँधी थोप दिए जाते हैं । हमें बताया जाता है बेटा आज़ादी से पहले बाद में एक ही भगवान हुए और वो हैं महात्मा गांधी । ये लो ढोलक मंजीरा और गाओ - "दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल । या धन धन गाँधी जी महाराज दुखियों के दुःख हरने वाले ।" 

     26 जनवरी की रैली में गुरूजी इस लौंडे को मजबूर कर देते हैं चाँद घुटाने के लिए । बोलते हैं "बेटा वो देश के लिए जान दे दिए और तुम गंजे होके धोती न पहन रहे ।" गुरूजी के इस इमोशनल अत्याचार पे छोरा टूट जाता है । चार दिन पहले तक लौंडा सलमा की मोहब्बत में सलमान खान हुआ जा रहा था । बीच की मांग काढ़ के सस्ता चश्मा लगाये सलमा की गली से ये बाल झटक के निकलता था ।


     आज 25 जनवरी की शाम सईद मियां आके इसके बाल ले जाते हैं । छोरे को सफ़ेद लुंगी और हैरी पॉटर का 6 नंबर का चश्मा मिलता है । ले बेटा पहन ले और बोल जय गान्ही बाबा की । चिल्ला जाड़े में कंपकंपाता लौंडा गाँधी जी को गरिया रहा होता है । जिस सलमा को बाल झटक झटक के पटाया था अब उसी के घर के आगे छोरे का जलूस निकल जाता है ।

     असली मजा तब आता है जब लौंडा फेसबुक चलाना शुरू करता है । तब इसे पता चलता है कि बापूजी तो कर्रे वाले पलंगतोड़ आशिक थे । सुशीला, मनु, अलाने की पुतबहू और फलाने की परपोती तो शाम होते ही बापू के बिस्तर पे सजती थी । तब ये भड़का आशिक सलमा को याद कर करके टसुए बहाता है और उन्हीं गान्ही बाबा को गरियाता है जिनकी जय-जयकार कभी मास्टर जी ने बुलवाई थी |
     @#$%* तुमाए चक्कर में हमाये बचपन की मोहब्बत चाँद मियां से ब्याह गयी । हरामखोर हर साल का अलग माँडल निकालता है । हमसे ब्याह पढा होता तो बस दो बच्चे करते । काहे कि बच्चे दो ही अच्छे | ट्रक पे भी लिखा होता है: हम दो हमारे दो | छोरे का नाम खाते चुन्नू और छोरी का मुन्नी । नरक में कुम्भीपाकम् हो इस $%@# गान्ही का । तब हम पढ़े लिखे सो कॉल्ड इंटेलेक्चुअल लोग बोलते हैं कि तुम बहुत बद्तमीज़ हो बापू को गाली लिख रहे हो । और ब्लाह ब्लाह ।
             
     मेरे ख्याल से दिक्कत वहां से शुरू होती है जब हम अपने माइंडसेट दूसरों पर थोपते हैं । अरे वो पढ़ाइये जो सच है । बच्चे बहुत होशियार हैं आजकल । आज नहीं तो कल वो सच्चाई पता कर लेंगे । आज सबके पास इंटररनेट है भाई । आपकी अय्याशी के सबूत यहाँ हाई रेसोलूशन में मौजूद है । बेहतर है आप बच्चो को सब बताइए | किस परिस्तिथि में उन्होंने क्या किया - उन्हें ये सब बताइए | ताकि आगे चलकर वो अपने मन में महापुरुषों के बारे में गलत धारणा न बनायें |
     यहाँ गाँधी जी का सिर्फ उदाहरण लिया गया है । आप अपने आस पास छात्रों के विचार सुनिए | वो हर महापुरुष पर ऊँगली उठा रहे हैं । आप ध्यान से देखिये आजकल हर महापुरुष इसी तरह गाली खा रहा है । और आप इसे गलत भी नहीं कह सकते | हर समाज के घरों में अपनी अपनी तस्वीरें सजी हैं । खाँचे खिंच चुके हैं । लोग बँट रहे हैं । और ये बहुत गलत हो रहा है । आज नहीं तो कल आपको इस पर ध्यान देना ही होगा । बेटर टुडे देन टुमारो ...

पुण्यतिथि पर महात्मा गाँधी जी को सादर नमन _/\_

Saturday, 28 January 2017

जौहर- गाथा

मेरे लिये शब्द सिर्फ शब्द नहीं होते | वो जीवंत परिवेश होते हैं | मैं प्रेमचन्द को पढते वक्त खुद को होरी का भाई पाता हूँ | निर्मला को पढते समय मैने उसे मेरी सखी पाया | उसके हालात पर मेरी आखों में अंगार थे | उसी तरह जब मैं जौहर शब्द सुनता हूँ तो खुद को आग की लपटों में घिरा पाता हूँ | मैं आखेँ मूँद भी लूँ तो भी राजपूतानियों के जलते शरीरों के दृश्य मेरे अंत:करण को बींध देते हैं | कानों को बन्द भी कर लूँ फिर भी उनकी कारूण चीखें मेरे कानों के परदे चीर देती हैं |
बचपन में चाय पर ज़रा सा जल गया था एक बार | घर में कोहराम मच गया था | कोलगेट लगाओ दही लाअो | यह करो तो छाला नहीं पडेगा वह करो तो निशान चला जायेगा | तनिक सोचिये कैसा वीभत्स दृश्य होगा वो जब सैकडों हजारों महिलायें इस्लामी अत्याचारियों से अपनी पवित्र देह बचाने के लिये जौहर में प्रवेश कर रही होंगी | रूह तो काँपी होगी उनकी एक बार | पैरों ने भी साथ नहीं दिया होगा शायद | फिर भी अपनी इज्ज़त की रक्षा के लिये , मुगल शासकों के हरम में रखेल बनने की जगह उन्होने मौत को गले लगाना ऊचित समझा |

दीगर-ए-बात है वो जहर खा के भी जान दे सकतीं थीं | पर उन्होने जौहर चुना | मौत का सबसे कठिन रास्ता | जलती चिता में ज़िन्दा सशरीर प्रवेश | बस रणभूमि से ख़बर आयी राणा के हुतात्मा होने की और इधर पग बढ गये जौहर की तरफ | क्यूँ ? क्युकि मरने के बाद भी इस्लामी दहशदगर्द उसके शरीर की बोटी बोटी नोच लेंगे | सुनी थी पद्मिनी ने राजा दाहिर की दोनों पुत्रियों की कहानियां | किस तरह दरिन्दों ने मृत शरीरों को अपवित्र किया था | यही हाल राणा जी हत्या के बाद उसके शरीर का होना था |

इसीलिये उसने हीरे नहीं चाटे | इसीलिये उसने जहर नहीं खाया | इसीलिये उसने अपनी कटार से अपनी अंतडियाँ नहीं काटी | इसीलिये उसने जलती चिता में प्रवेश किया | ताकि उसका शरीर भस्मीभूत हो जाये | ताकि उसकी देह को विधर्मी स्पर्श भी न कर पायें | वो तो राणा के प्रेम में पगी थी | उसी प्रेम के लिये उसने खुद को कुर्बान कर दिया | राणा ने भी अपनी जान की बाजी लगा उसकी रक्षा की | अपने जीते जी उन्होने वाहशी खिलजी को राजपूतों की इज्ज़त से खेलने नहीं दिया | प्रेम इसे कहते हैं निर्देशक महोदय |
प्रेम 2 आत्माओं का मिलन होता है | अलाउद्दिन खिलजी ने जो किया उसे वासना कहते हैं | और प्रेम में तो वासना का दूर दूर तक स्थान नहीं होता | अलाउद्दिन रानी पद्मिनी के शरीर को पाना चाहता था | उनकी आत्मा को नहीं | इसीलिये इतिहास ने खिलजी को कामी कीडा लिखा और पद्मिनी को आत्मबलिदानी | ये इतिहास का वो न्याय है जो खिलजी और उसके मानस पुत्रों के माथे पर कलंक है | खिलजी के वंशज लाख कोशिश कर लें पर इस कलंक को अपने माथे से वो धो नहीं सकते |
आप पद्मिनी के चरित्र को कलंकित करना चाहते हैं | अल्टरनेट वियू के नाम पर आप राजपूती अस्मिता को तार तार करना चाहते हैं | पर य़ाद रखिये जिसे खिलजी जैसे दुर्दांत हत्यारे नहीं कर पाये उसे आप जैसे तुच्छ फिल्मकार भी नहीं कर सकते | क्युकि सूरज पर थूकने वाले शायद ये भूल जाते जाते हैं कि उनका थूक पलट कर उनके मुंह पर ही गिरता है |

Sunday, 15 January 2017

बिल्लियों के कोसने से कभी उल्काएं नहीं गिरा करतीं

     ढाका की मलमल के बारे में आप सभी ने सुना होगा | कहते हैं कि आप ढाका की मलमल वाली चादर को एक अंगूठी से निकाल सकते थे | इतनी बारीक़ और महीन होती थी ये | यही कहानिया कमोबेश भारत के हर हिस्से की हैं | हमने एसा लोहा बनाया जिसपे हजारों सालों से जंग नहीं लगी | पर ये सब हवा में नहीं हुआ | इसे करने में हमारे पूर्वजों की दिन रात की मेहनत और ज्ञान था |
                                        
     फिर अंग्रेज आये | अपनी रिपोर्ट में वायसराय ने लिखा “ मैं हैरान हूँ भारत को देखकर | यहाँ कोई गरीब नहीं | सब व्यापारी है, किसान हैं | सबके अपने काम धंधे हैं | सबके यहाँ स्वर्ण भंडार हैं | मैं यहाँ इतने दिनों से हूँ | मैंने किसी को भीख मांगते नहीं देखा | सिवाय साधू सन्यासियों के | पर वो समाज के हित में मांगते हैं | अपने लिए नहीं | ये हैरत की बात है ” ये था इंग्लॅण्ड के भारत में तत्कालीन वायसराय के शब्दों में हमारा भारत | नाम नहीं लिख रहा हूँ | गूगल कीजियेगा |

     धन- धान्य और तमाम तरह के खनिजों से परिपूर्ण सोने की चिड़िया कहे जाने वाली इस भारत भूमि को लूटने के नए नए तरीके खोजे जाने लगे | तमाम मीटिंग्स हुई | निष्कर्ष निकाले गए | निर्णय लिए गए | चूंकि तब तक अंग्रेज भारतवर्ष के भाग्य विधाता बन चुके थे सो उनके लिए गए निर्णय भारत का भविष्य थे | उन लिए गए निर्णयों में से एक था भारत के हथकरघा उद्योग को बर्बाद करने का निर्णय | आधुनिकीकरण के नाम पर तमाम छोटी छोटी ग्रामोद्योग इकाइयों को बंद करा दिया गया |
     भारत भर से कपास ढाका की जगह लन्दन जाने लगी | वहां से मशीन का बुना सस्ता और घटिया कपडा आने लगा | चूंकि ये कपडा बहुत ही सस्ता और दिखने में आकर्षक था | सो हमारे भारतीय भाइयों ने इसे हाथों- हाथ लिया | धीरे- धीरे बुनकरों के घर में फांका पड़ना शुरू हुआ | उन्हें दो जून की रोटी भी बमुश्किल नसीब होने लगी | मजबूरन उन्हें अपने पूर्वजों के हुनर, जो पीढ़ी दर पीढ़ी उनके हाथों में रचा बसा था, उसे तिलांजलि देनी पड़ी |
     आप सोच रहे होंगे मैं इसे क्यों सुना रहा हूँ ? बताता हूँ | आज आपको बहुत से तथ्य पता चलेंगे | लेख थोडा लम्बा हो जायेगा अत: आपसे धैर्य से पूरा पढने की गुजारिश कर रहा हूँ |
     अभी हाल ही में मोदी जी खादी ग्रामोद्योग की डायरी और केलेंडर पर सूत कातते नजर आये | ये डायरी और केलेंडर हर साल छपते हैं | इसमें कुछ नया नहीं है | पर इस बार फ्रंट पेज पर गाँधी जी की नहीं बल्कि आज के आइकोन भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर थी | बस यही विवाद की जड़ है | हालाँकि ये प्रथम बार नहीं है जब फ्रंट पेजेस पर गाँधी जी नदारद हैं | विगत वर्षों में कई बार एसा हुआ है | पर चूंकि इस बार केंद्र में मोदी जी हैं तो विवाद उठना लाजमी है |
                               modi with gandhi charkha
     हिम्मत कैसे हुई संघ के एक स्वयंसेवक की गाँधी को रिप्लेस करने की ? माना आपको अपार जनसमर्थन प्राप्त है | पर कुछ मामले ऐसे हैं जहाँ लकीर पीटना अनिवार्य है | कहते भी है “ मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी |” और आपने साहब उन्ही गाँधी को रिप्लेस कर दिया | ऐसे में वो लोग जिनकी रोजी रोटी गाँधी नाम से चलती है, भला वो कैसे चुप रह सकते हैं ? माना आपके विचारों से प्रेरित हो आज का युवा खादी खरीदने लगा है | आकंड़ो को अगर देख लें तो खादी की बिक्री के आकंडे की सुई जो विगत बीस वर्षो 5-6 % की बढ़ोतरी पर टिकी हुई थी | आज आपके शासन काल में वही सुई मीटर फाड़ के 34% का ग्रोथ दिखाती है |
     क्या जरूरत है साहब आपको खादी की फिकर करने की ? काहे नहीं उन कुकुरमुत्तों को चैन से उगने और फलने फूलने देते आप ? पड़ा रहने दीजिये चरखे को इक कौने में | लगने दीजिये उसे धूल-धक्कड़ | बाकी नेताओ की तरह आप भी बापू के जन्मदिन पे जाइए आश्रम में | चढ़ा आइये 2 फूल उस चरखे की मैय्यत पर | जब आज तक यही होता आया है तो वही होने दीजिये न | आप काहे चरखे को अपने अंगोछे से पोछ अपने हाथ ख़राब करते हैं ? मरने दीजिये उन बुनकरों के सपनों को, फटने दीजिये उस मलमल की चादर को जो कभी अंगूठी से पार हो जाया करती थी | पहले अंग्रेजों ने उन्हें लूटा, अब चरखे की आड़ में गाँधी के वंशज लूटेंगे | आपको क्या ?
     साहब हम भारतीय इसी लायक हैं | 1200 सालों की गुलामी हमने युही नहीं झेली | आपका विरोध तार्किक आधार पर नहीं है | ये हो भी नहीं सकता | क्युकि गाँधी को बेचने वाले तर्क की कसौटी पर कहीं खरे नहीं उतरते | चूंकि बात अब लेगेसी की हो रही है | तो गाँधी जी की लेगेसी और वर्तमान पर विमर्श करना और उसे आप तक पहुँचाना हमारा परम कर्तव्य है | दो ट्वीट पेशे- खिदमत हैं |

    1. “Since it’s happy women day today. Men should be allowed to touch them to feel happiness.”
    2. “I love to watch women playing at Wimbledon. The trouble is I keep watching the wrong balls.”

मेरे हिंदी पाठकों के लिए मैं हिंदी अनुवाद लिख रहा हूँ |
   1. “चूंकि आज महिला दिवस है इसीलिए आज पुरुषों को उन्हें छूकर खुश होने की स्वतंत्रता होनी चाहिए |”
   2. “मुझे महिलाओं को विम्बलडन में खेलते देखना पसंद है |” माफ़ कीजिये इससे आगे का अनुवाद मैं नहीं लिख सकता | बस इतना समझ लीजिये कि आगे जो कहा गया है वो बहुत ही बदतमीज़ और घटिया मानसिकता को दर्शाता है | एक सभ्य परिवार से आने वाला कभी एसा नहीं कह सकता |
     हाँ ये मेरे ट्वीट नहीं हैं | मैं संघ का स्वयंसेवक हूँ | मुझे शाखाओं में “यत्र नारीयस्तु पूज्यते” का पाठ पढाया गया है | मैं वीर शिवाजी की उस परंपरा का वाहक हूँ जिसने विजित गौहर खान में अपनी माँ का अक्स देख उन्हें ससम्मान पालकी में बैठाकर उनके शिविरों में वापस भेजा था । ये उदगार हैं महान महात्मा गाँधी जी के प्रपोत्र तुषार गाँधी के | जिन्हें आपने कल टीवी पर कलपते देखा होगा | कल उन्होंने कहा कि “बापू अब KVIC को राम-राम कह दें. यूं भी KVIC ने खादी और बापू दोनों की विरासत को कमजोर ही किया है. लिहाजा मोदी को चाहिए कि वो इस कमीशन को निरस्त कर दें |”
                                  

                                  
     इन महानुभाव ने विरासत चुराने की बात की है | मैं यहाँ इन्हें गाँधी जी की सुशीला बेन और मनु बेन को अपने बिस्तर पर सुलाने वाली विरासत से नहीं जोड़ रहा | यद्यपि ऊपर लिखे 2 ट्वीट से ये स्पष्ट है कि ये किस विरासत की बात कर रहे हैं | फिर भी मैं इनका ध्यान कुछ एतिहासिक तथ्यों की तरह खींचना चाहूँगा |
     1. भारत के इतिहास में पूर्ण स्वराज्य की मांग करने वाले वीर सावरकर प्रथम व्यक्ति थे | उन्होंने सन 1900 में पूर्ण राजनैतिक स्वतंत्रता की बात की | उस समय तक कांग्रेस के अधिवेशनों में उनकी अंग्रेजों के प्रति भक्ति प्रकट करने के लिए “लॉन्ग लिव द किंग” गाया जाता था | बाद में वीर सावरकर से प्रभावित हो यही मांग आज़ाद भगत सिंह आदि क्रांतिकारियों ने की | उस समय गाँधी जी की लीडरशिप में कांग्रेस की मांग डोमिनियन स्टेट की थी | यानि कि शासन तो अंग्रेजों का ही हो पर उसमे थोड़ी बहुत सहभागिता भारतियों की हो | जब अंग्रेजों के अत्याचारों के विरूद्ध भारतियों में आक्रोश बढ़ा और अंग्रेजों की सेफ्टी वाल्व कांग्रेस इस आक्रोश को थामने में असफल रही | तब जाकर 1929 में गाँधी जी द्वारा पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की गयी | तो क्या ये कहा जा सकता है कि गाँधी जी ने सावरकर जी के विचारों को चोरी किया और अपने नाम से उनका प्रचार किया ?
                               
     2. सर्वप्रथम 1905 में वीर सावरकर ने विदेश निर्मित वस्त्रों की होली जलाई | सर्वप्रथम उन्होंने भारत के हथकरघा उद्योग की बर्बादी को समझा | बुनकर भाइयों के हक़ की आवाज बने | गाँधी जी ने यही काम ठीक 16 साल बाद 1921 में किया | तब जाकर उन्होंने चरखा चलाया | तब उनका चरखा बुनकरों के संघर्ष का प्रतीक बना |
     चरखा चलाने का उद्देश्य बिलकुल स्पष्ट था | अपने हाथ की बुनी खादी पहनों और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करो | उन्होंने खुद एक दुशाला एक धोती पहनी | उनका कहना था की अपनी आवश्यकताओं को कम से कम करों | पर आवश्यकताओं की सीमित रखने का संदेश तो स्वामी विवेकानंद ने उनसे दशकों पहले दिया था | “सिम्पल लिविंग एंड हाई थिंकिंग |” अब चूंकि गाँधी जी ने भी बिलकुल यही सन्देश दिया तो क्या यह कहा जायेगा कि गाँधी जी ने स्वामी विवेकानंद जी की विरासत चुरा ली ?
     लेख बहुत लम्बा खिंच चूका है | मैं वापस अपनी प्रस्तावना पर आता हूँ | गाँधी ने अपने लिए चरखा नहीं चलाया | उन्हें भारत के मुख्य आसामी फाइनेंस करते थे | वो चाहते तो आसानी से बढ़िया इंग्लॅण्ड का बुना सूट पहनते और उन्होंने पहना भी | किन्तु गरीब बुनकरों की दुर्दशा देख गाँधी जी ने उनके लिए चरखा उठाया | गाँधी जी का चरखा मुख्यत: अंग्रेजों की उस लूट खसोट वाली औपनिवेशिक नीति के विरुद्ध था जिसके तहत अंगेजों ने भारत को लूट अपना घर भरा | जिसने लाखो बुनकरों से उनके चरखे छीन उन्हें पैसे पैसों का मोहताज कर दिया |
     इस चरखे ने लोगों को प्रेरणा दी अंग्रेजों के खिलाफ उठ खड़ा होने के लिए | उनका चरखा आर्थिक आज़ादी के संघर्ष का प्रतीक था | पिछले 120 सालों के इस संघर्ष को गाँधी की तस्वीर को कौड़ियों के मोल बेचने वाले तुषार गाँधी और उन जैसे लोग नहीं समझ सकते | आज ग्रामोद्योग बढ़ रहा है | ग्रामीण अंचल के युवा उद्योगों के लिए लोन देकर मोदी सरकार गाँधी और दीन दयाल के ग्राम स्वराज्य के सपनो को साकार कर रही है |
     आज ये लोग जो विरोध में हैं वो इसीलिए बौखलाए नहीं हैं कि मोदी की तस्वीर लग गयी | वो इसीलिए बौखला गए हैं कि जिस विरासत को नोच नोच कर उन्होंने आज तक खाया है वो विरासत अब मोदी की हो रही है | अगर यही हाल रहा तो इन विरासतखोरों के लिए खाने के बांदे पड जायेंगे | पर भारत की माटी का एक सपूत अभी जिन्दा है | वो बापू को युही लुटने नहीं देगा | वो चौकीदार अपने डंडे से आपको युही रोकता रहेगा | आप भी अपना कोसने का कीर्तन जारी रखिये | क्युकि बिल्ली के कोसने से कभी उल्काएं नहीं गिरा करतीं |