अभी पिछले साल ही फिलस्तीन ने इस्रायल के 2 जवान मार दिये थे । बाई गॉड... क्या तांडव किया था बदले में इस्राइल ने | फ़िलिस्तीनियों को उनके ही घर में कुत्तो की तरह दौड़ा दौड़ा कर मारा । हमारे यहाँ के लोगों से इन दोनों ही घटनाओं का कोई मतलब नहीं था । न इस्राइल के सैनिकों की हत्या से और न इस्त्राइल के प्रतिशोध से । पर जब इस्राइल जबाबी कार्यवाही कर रहा था तब कराहे जाने की आवाज़ें भारत से भी आ रहीं थी । दोमुंहे सेक्युलरिस्ट्स दिल्ली में सेव गाजा मार्च निकाल रहे थे । अगर ये मान भी लिया जाए कि ये सब वो इंसान होने के नाते कर रहे थे, तो जब फिलिस्तीन इस्राइल के नागरिकों को मार रहा था तब इनकी मानवीय संवेदनाये कहाँ थी ?
आजकल रमजान का महीना चल रहा है । बांग्लादेश में आतंकियों ने इस्लाम के नाम पर कल 20 लोगों को मार दिया । मारने से पहले पूछा कुरान की आयत सुनाओ । जिसे याद थी वो बचा । जिसे नहीं याद थी उसे कत्ल कर दिया गया । आपको बता दूँ इन मरने वालों में एक भारत की बेटी तारिषि भी शामिल है । अभी तक मुझे तो कोई खबर सुनाई नहीं दी कि किसी ने जंतर मंतर पर इसके विरोध में कैंडल मार्च किया है | यहाँ तक कि निंदा के स्वर तक नहीं सुनाई दिए | आज किसी सेक्युलरिस्ट्स या किसी महिला आयोग गिरोह की कोई मानवीय संवेदना नहीं जगी । क्या मैं पूछ सकता हूँ क्यों ? आखिर ये दोगलापन क्यों ? गाजा पर विधवा विलाप और बांग्लादेश पर ख़ामोशी क्यों ?
और खबरदार जो आपने इसे धर्म के नाम पर हत्या कहा तो । खबरदार इस लोहमर्षक हत्याकांड की निंदा भी आपने गर की तो । आपको तुरंत सांप्रदायिक ठहरा दिया जायेगा । कहा जायेगा कि "आपको तो हर दुर्घटना को मजहब के चश्मे से देखने की आदत हो गयी है | आतंकियों का भी भला कोई मजहब होता है ? कुछ बुरे लोगों के कर्मों की वजह से आप पुरे मजहब को बदनाम क्यों करते हैं और ब्लाह ब्लाह ब्लाह |" पर कोई ये नहीं बताएगा कि उन चंद खूनी भेडियों का विरोध कथित अधिसंख्य शांतिप्रिय मुस्लिम सडको पर करते क्यों नहीं नजर आते ? मुंबई में जब शहीद स्मारक को तोडा जाता है, तब इसका विरोध करते कथित शांतिप्रिय मुस्लिम लोग क्यों नहीं नजर आते ? क्यों शहीद तंजील अहमद के जनाजे से ज्यादा भीड़ हमें आतंकी अफजल और आतंकी याकूब के जनाजे में नजर आती है ? इस्लाम को शांति का मजहब घोषित करने वाले इन प्रश्नों का जबाब क्यों नहीं देते ?
कोई यदि आपको बदनाम कर रहा है तो आपकी छवि को सुधारने का काम भला किसका है ? जिस शक्ति से आप उन लोगों का विरोध करते हैं जो आपके मजहब को आपके अनुसार बदनाम करते हैं | ठीक उसी निष्ठा से आप इन मुस्लिम आतंकियों का विरोध क्यों नहीं करते, जिनकी वजह से आपका मजहब बदनाम होता है ? क्यों नहीं आप याकूब को अपने यहाँ दफनाने से मना कर देते ? क्यों नहीं आप आइसिस में जाने वाले लड़ाकों के परिवारों का सामाजिक बहिष्कार करते ? आप हर बार क्यों आतंकियों के पक्ष में खड़े नज़र आते हैं ? यदि आप आगे आकर इनका विरोध करें तो किसी कि क्या मजाल जो आपके मजहब को आतंकी कह जाए |
खैर मुझे क्या ? ये आप लोगों का मसला है | आप जानों | और मैं क्यों तारिषि के बारे में लिखूं ? ये सब कह मैं क्यों बुरा बनूँ । क्यों मैं अपना समय ख़राब करूँ ? वो मेरी भला क्या लगती थी | कोई मुझ पर थोड़े न कोई हमला हुआ है | मुझसे थोड़े न कोई आयत पूछी गयी है | फ्राइडे पर डोमिनोज में 50% और सन्डे को मैक डी में 6% डिस्काउंट मिलता है | मैं तो चला बर्गर खाने | तुम मरो सालों ... मुझे क्या !
-अनुज अग्रवाल
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