Saturday, 23 July 2016

2 गोली उनके सीने में उतार दूंगा : आज़ाद

नाम: आज़ाद
पिता का नाम : स्वाधीन
घर : जेलखाना
अब लिखने की जरूरत नहीं कि आज़ाद कौन था | ये मात्र तीन पंक्तियाँ किसी भी भारतीय के लिए श्रीमद भागवत के श्लोक के बराबर हैं | पर आज उस महामानव के जन्मदिन पर मैं आपको ये कहानी नहीं सुनाऊंगा | ये तो आप सब ने सुनी है | आज मैं चन्द्र शेखर आज़ाद की वो कहानी सुनाऊंगा जिसे सुनने के बाद आपके रोंगटे खड़े हो जायेगें|
चन्द्रशेखर आज़ाद के माता पिता मध्यप्रदेश के भावरा में एकांत में रहते थे | उस समय तक आज़ाद खुद को देश सेवा के लिए समर्पित कर चुके थे | ये उन दिनों की बात है जब आज़ाद देश में क्रांति की अलख जिन्दा रखने के लिए सरकारी खजाने लूटा करते थे | हजारो का खजाना उनके पास सुरक्षित रहता था | उनके गाँव से एक आदमी उनसे मिलने के लिए आया | बोला कि "इतने पैसे हैं तुम्हारे पास | तिजोरी माल से भरी है | उधर तुम्हारे माता पिता भूख से मर रहे हैं | कम से कम इतना धन तो अपने गाँव पहुंचा दो जिससे तुम्हारे माँ बाप बुढ़ापे में चैन की रोटी खा सके |" जो जबाब आज़ाद ने दिया उसे पढ़ कर मेरे रोंगटे खड़े हो गये | मेरी रूह काँप गयी | आज़ाद ने कहा कि " इस तिजोरी का एक पैसा गाँव नहीं जायेगा | ये पैसा माँ भारती के लिए है | मेरे अकेले के माँ बाप भूखे नहीं सोते | सैकड़ो क्रांतिकारियों के घर में फांके की नौबत है | उनका पालन पोषण गाँव वालों की जिम्मेदारी है | अगर गांववाले उन २ बूढों को २ वक्त की २ रोटियां खिलाने में असमर्थ हैं तो मुझे बता दो मैं गाँव आऊंगा और अपनी पिस्तौल की २ गोलियां उन दोनों के सीने में उतार कर वापस आ जाऊंगा | " ये सुनकर उस आदमी की नजरे झुक गयी | फिर कभी आज़ाद के माँ बाप को भूखा नहीं सोना पड़ा |
ये कहानी मैं आपको इसीलिए नहीं सुना रहा क्युकी आज उन्हीं आज़ाद का जन्मदिन है | ये मैं इसलिए सुना रहा हूँ क्युकि आज मन व्यथित है | आज देश आज़ाद है और आजाद देश की कृतज्ञ सत्ता उस आज़ाद का अपमान करती है इसीलिए आपको मैं ये कहानी सुना रहा हूँ | आपको शायद याद न हो पर मैं भूल नहीं सकता | आज जो दलितों की कथित देवी अपने अपमान से आहत हैं कभी इन्होने ही आज़ाद को आतंकी कहा था | वो आज़ाद जिसने अपने खून से आज़ादी लिखी, जिसने पहाड़ो को अपने नाखूनों से चीरा था | जिसने देश को भगत सिंह राजगुरु और बिस्मिल से अमूल्य रत्न दिए जो अल्फ्रेड पार्क में अकेला बीसिओं से जूझा था | वो फूल जो जमीं पर उगा और फकत आसमान पर खिला | वो आज़ाद हिमालय जिसकी याद में रोया | उस आज़ाद को उप्र की तत्कालीन मुख्यमंत्री 'देवी मायावती' ने आतंकवादी कहा था |
अभी जब 'देवी मायावती' राज्यसभा में खड़े होकर कह रहीं थी कि "मैंने कभी किसी का अपमान नहीं किया" और सभा के अभी सदस्य चुप रहे | कोई ये कहने की हिम्मत नहीं कर सका कि आपने देश के पुत्र चन्द्र शेखर के लिए आतंकवादी शब्द का प्रयोग किया था | जब वो किसी की माँ बहन बेटी का अपमान करती रही और और सब लोग चुप रहे | किसी ने ये कहने का साहस नहीं कि आपका अपमान गलत था पर उसकी आड़ में आपको किसी महिला के सम्मान से खेलने की इजाज़त नहीं दी जा सकती | जब अखिल भारत में कहीं भी विरोध का स्वर नहीं उठा | तब हम दिनकर के वंशजों अपनी कलम उठानी पड़ती है और विरोध में लिखना पड़ता है |
'देवी मायावती' जी आप भले ही उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यंत्री रही हैं पर इससे आपको हमारे आज़ाद को आतंकी कहने का अधिकार नहीं मिल जाता | आज़ाद का नाम इस देश के इतिहास के पन्नो में स्वर्ण अक्षरों में लिखा हुआ है | आपका जिक्र इतिहास के किन पन्नो में होगा या किन अक्षरों में लिखा जायेगा ये मैं यहाँ लिखना नहीं चाहता | चंद्रशेखर आज़ाद को आप जैसे भ्रष्टों के प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है | सूरज के मुंह पर थूकने वाले ये भूल जाते हैं कि उनका थूका हुआ वापस उनके ही मुंह पर आकर गिरता है | इसीलिए 'देवी मायावती' जी कृपया अपने शब्दों के घोड़ो को लगाम दें | अन्यथा देश की जनता आपको और हर उस आदमी को जो देश के हुतात्माओं को आतंकी कहता है जबाब देगी और ऐसा सबक सिखाएगी जिसकी गूँज अनंत काल तक सुनाई देगी |
भारत के महान पुत्र चन्द्रशेखर आज़ाद को उनके जन्मदिन पर नमन _/\_
-अनुज अग्रवाल

Wednesday, 6 July 2016

कहाँ हैं शांतिप्रिय मुस्लिम

अभी पिछले साल ही फिलस्तीन ने इस्रायल के 2 जवान मार दिये थे । बाई गॉड... क्या तांडव किया था बदले में इस्राइल ने | फ़िलिस्तीनियों को उनके ही घर में कुत्तो की तरह दौड़ा दौड़ा कर मारा । हमारे यहाँ के लोगों से इन दोनों ही घटनाओं का कोई मतलब नहीं था । न इस्राइल के सैनिकों की हत्या से और न इस्त्राइल के प्रतिशोध से । पर जब इस्राइल जबाबी कार्यवाही कर रहा था तब कराहे जाने की आवाज़ें भारत से भी आ रहीं थी । दोमुंहे सेक्युलरिस्ट्स दिल्ली में सेव गाजा मार्च निकाल रहे थे । अगर ये मान भी लिया जाए कि ये सब वो इंसान होने के नाते कर रहे थे, तो जब फिलिस्तीन इस्राइल के नागरिकों को मार रहा था तब इनकी मानवीय संवेदनाये कहाँ थी ?
आजकल रमजान का महीना चल रहा है । बांग्लादेश में आतंकियों ने इस्लाम के नाम पर कल 20 लोगों को मार दिया । मारने से पहले पूछा कुरान की आयत सुनाओ । जिसे याद थी वो बचा । जिसे नहीं याद थी उसे कत्ल कर दिया गया । आपको बता दूँ इन मरने वालों में एक भारत की बेटी तारिषि भी शामिल है । अभी तक मुझे तो कोई खबर सुनाई नहीं दी कि किसी ने जंतर मंतर पर इसके विरोध में कैंडल मार्च किया है | यहाँ तक कि निंदा के स्वर तक नहीं सुनाई दिए | आज किसी सेक्युलरिस्ट्स या किसी महिला आयोग गिरोह की कोई मानवीय संवेदना नहीं जगी । क्या मैं पूछ सकता हूँ क्यों ? आखिर ये दोगलापन क्यों ? गाजा पर विधवा विलाप और बांग्लादेश पर ख़ामोशी क्यों ?
और खबरदार जो आपने इसे धर्म के नाम पर हत्या कहा तो । खबरदार इस लोहमर्षक हत्याकांड की निंदा भी आपने गर की तो । आपको तुरंत सांप्रदायिक ठहरा दिया जायेगा । कहा जायेगा कि "आपको तो हर दुर्घटना को मजहब के चश्मे से देखने की आदत हो गयी है | आतंकियों का भी भला कोई मजहब होता है ? कुछ बुरे लोगों के कर्मों की वजह से आप पुरे मजहब को बदनाम क्यों करते हैं और ब्लाह ब्लाह ब्लाह |" पर कोई ये नहीं बताएगा कि उन चंद खूनी भेडियों का विरोध कथित अधिसंख्य शांतिप्रिय मुस्लिम सडको पर करते क्यों नहीं नजर आते ? मुंबई में जब शहीद स्मारक को तोडा जाता है, तब इसका विरोध करते कथित शांतिप्रिय मुस्लिम लोग क्यों नहीं नजर आते ? क्यों शहीद तंजील अहमद के जनाजे से ज्यादा भीड़ हमें आतंकी अफजल और आतंकी याकूब के जनाजे में नजर आती है ? इस्लाम को शांति का मजहब घोषित करने वाले इन प्रश्नों का जबाब क्यों नहीं देते ?
कोई यदि आपको बदनाम कर रहा है तो आपकी छवि को सुधारने का काम भला किसका है ? जिस शक्ति से आप उन लोगों का विरोध करते हैं जो आपके मजहब को आपके अनुसार बदनाम करते हैं | ठीक उसी निष्ठा से आप इन मुस्लिम आतंकियों का विरोध क्यों नहीं करते, जिनकी वजह से आपका मजहब बदनाम होता है ? क्यों नहीं आप याकूब को अपने यहाँ दफनाने से मना कर देते ? क्यों नहीं आप आइसिस में जाने वाले लड़ाकों के परिवारों का सामाजिक बहिष्कार करते ? आप हर बार क्यों आतंकियों के पक्ष में खड़े नज़र आते हैं ? यदि आप आगे आकर इनका विरोध करें तो किसी कि क्या मजाल जो आपके मजहब को आतंकी कह जाए |
खैर मुझे क्या ? ये आप लोगों का मसला है | आप जानों | और मैं क्यों तारिषि के बारे में लिखूं ? ये सब कह मैं क्यों बुरा बनूँ । क्यों मैं अपना समय ख़राब करूँ ? वो मेरी भला क्या लगती थी | कोई मुझ पर थोड़े न कोई हमला हुआ है | मुझसे थोड़े न कोई आयत पूछी गयी है | फ्राइडे पर डोमिनोज में 50% और सन्डे को मैक डी में 6% डिस्काउंट मिलता है | मैं तो चला बर्गर खाने | तुम मरो सालों ... मुझे क्या !

-अनुज अग्रवाल