Saturday, 26 November 2016

नेता जनता संवाद

नेता जी - ऐ सुनो ! 28 तारीख को भारत बंद का आवाहन है । दुकान पर काली मिर्च मत बेचना । खेत में प्याज मत उगाना उस दिन ।
जनता - क्यों करना है भाई ? किस ख़ुशी में भारत बंद है ?
नेता जी - सरकार ने 500 हजार का नोट बंद कर दिया । वो भी बिना हमें बताये । पीएम की तानाशाही नहीं चलने देंगे । 
जनता - वो तो ठीक है पर तुमको क्या दिक्कत है ? तुम्हारी तशरीफ़ में थोड़े न कील ठुकी है ।
नेता जी - देखते नहीं । देश की जनता को कितना प्रॉब्लम हो रहा है ।
जनता - तकलीफ हमें है तो तुम क्यों फ़ोकट के पॉपकॉर्न बन उछाल ले रहे हो ? तुम्हे क्या ? तुम तो फसक्लास गाडी में बैठकर AC के मजे ले रहे हो । तुम्हे क्या दिक्कत ?
नेता जी - शादी भी नहीं हो रही ।
जनता - होगी भी नहीं । करम ही ऐसे हैं तुम्हारे ।
नेता जी - नामुराद हम जनता के हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं ।
जनता - पर पैसा तो तुम्हारा भी काई हुआ है । हमारे लिए काहे लड़ रहे हो भाई ।
नेता जी - हमारे पूर्वजों ने भी तुम्हारी लड़ाई लड़ी थी । दादी भी बोली थीं "गरीबी हटाओ" । अब हम तुम्हारी गरीबी हटाएंगे |
जनता - हटी क्या गरीबी ?
नेता जी - हट जायेगी । हमने एक नया प्लान बनाया है ।
जनता - बाबू बुरा मत मानना पर तुमसे न हो पायेगा । तुम रहन दो । एक काम करो ।
नेता - क्या ?
जनता - ये लो पामरा । पहले हमारे खेत की घास हटा दो ।
नेता - व्हाट इज पामरा , व्हाट इज घास ? एंड आई एम् नॉट हियर टू रिमूव योर घास ।
जनता - नेताजी आपको पामरा घास खुरपी का पता नहीं । आपको गन्ने और गुड़ का अंतर पता नहीं । आपको नोन तेल धनिया का पता नहीं और चले हो आप हमारी लड़ाई लड़ने । क्यू मजाक करते हो साहब । इन 60-70 सालों में यही तो करते आ रहे हो आप और मूर्ख बनते आ रहे हैं हम । आपके दादाजी गाँव गरीब चरखे की बात किया करते थे । आज़ादी के बाद उन्हीं के रंग कितने बदल गए । जब देश के पास अनाज नहीं था खाने को तब उनकी सिगरेट की डिलीवरी हवाई जहाज से हुआ करती थी ।
  आप ही की दादीजी कहा करती थीं न । मुझे पीएम बनाओ और गरीबी हटाओ । बना दिया पीएम । हटी हमारी गरीबी ?किसान थे हम । जमीन थी हमारी । सोने जैसा गेंहू उगाते थे, धान की फसल लहलहाती थी हमारे खेत में । 1951 में 71% किसान था देश में 2011 में 45% रह गए । कहाँ गए 26% किसान ? 1991 में हमारे पास 185 मिलियन हेक्टेयर खेती लायक जमीं थी 2011 में 182 मि.हे. जमीं बची । कहाँ गयी हमारी जमीं ? धरती माँ खा गयी या आसमान ने निगल ली ?
     1951 में 82% लोग गांव में रहते थे 2011 में 68% रह गए । कहाँ गया गाँव का गरीब किसान ? बताइये ? किसान गया शहर आपके घर में झाड़ू बुहारने । वो गया शहर अपने गमछे से आपकी गाड़िया पोछने । वो गया शहर बाबू साहब को दफ्तर में पानी पिलाने । वो गया शहर साहब का कुत्ता टहलाने । अन्नदाता कहते थे लोग हमें और आपने हमें अपने घर का नौकर बना दिया । आपने हमसे हमारी जमीन छीन ली साहब । हमें खेतिहर मजदूर बना दिया ।
व्यापारी थे हम । खुद का कुटीर उद्योग था हमारा । गाँव में अरोमा की खुशबू का साबुन बनाते थे और देश भर बेचते थे । सूत की मखमल बुनते थे यहाँ और इंग्लैंड में बिकता था । क्या किया आपने । लगा लगा के हिटलरी कर उद्योग तबाह कर दिए आपने । छोटे छोटे व्यापारियों से मुँह के निवाले छीन लिए आपने ।
     दिया क्या आपने हमें । चुनावों में झूठे वादे । हकीकत की टूटी फूटी सड़के । लाखों करोड़ के घोटाले । दिल्ली मुम्बई का स्लम उस पर भी समय समय पर बुलडोजर चलवा देते हो आप । आज जब नोटबंदी से आपका काला पैसा पानी हो गया तो गरीब जनता की याद आ गयी साहब को । आज आप गरीब के हक की लड़ाई की बातें करते हो । शर्म नहीं आती आपको । गरीबी हटाने का वादा था आपका साहब । पर आपने तो गरीब ही हटा दिए । आप पर किस विधि विश्वास करें हम ?
     हमारी चिंता करना छोड़ दीजिए । हमने अपना प्रधान सेवक चुन लिया है । भरोसा है हमें उस पर । पांच साल ऊँगली पकड़ चलेंगे हम । जरूरत पड़ी तो कंधे से कन्धा मिला के चलेंगे हम । जैसे कि अभी चल रहे हैं ।
काहे का भारत बंद ? क्यों हो भारत बंद ? ये अब ड्योढ़ी दुगुनी मेहनत करेगा । सतत आगे बढ़ेगा । भारत अब बंद नहीं होगा बल्कि अपने सुनहरे भविष्य के नए द्वार खोलेगा । अब कोई खानदानी, कोई एनार्की या कोई चिटफंड वाली घोटालेबाज़ हमें नहीं रोक सकती । हम जानते हैं ये फैसला देशहित में है । और हम सब एक-जुट होकर इसका समर्थन करेंगे । आपको साथ देना है तो कदम बढाइये हाथ मिलाइये वरना टांग अड़ाने वालों की टांगे कुचल कर हम आगे बढ़ेंगे ।
     अब फटाफट अपनी फॉर्च्यूनर में बैठकर दिल्ली निकल जाइये साहब । इन गांवों की पगडंडियों में चलेंगे तो कमर लचक जायेगी आपकी । और जाकर कह देना अपने आकाओं से कि भरतवंशियों ने साँपो को दूध पिलाना अब बंद कर दिया है । 

Sunday, 9 October 2016

चाइनीज़ झालर


“खील, बताशे, लक्ष्मी मैया का कलेंडर, पूजा का सामान.... ये क्या प्रिया सामान की लिस्ट में तुम्हारी प्रिय चीज नहीं है, जिसे लेकर तुमने पिछली दिवाली पर अपना रौद्र रूप दिखाया था | इस बार अपनी तरह घर नहीं सजाओगी क्या ?” अक्षर ने शीशे के सामने बैठकर इठलाती प्रिया की चुटकी लेते हुए कहा |

प्रिया अक्षर के मन की बात समझ गयी थी | “नहीं अक्षर !” मीठी चाशनी में लिपटे हुए ये प्रिया के ये २ शब्द अक्षर के कानों में मिश्री घोल गए | प्रिया के मुंह से उसका नाम सुनते ही अक्षर के दिल में प्रेम का सितार बजने लगा | वो इस मधुर संगीत के तरन्नुम में डूबने ही वाला था पर प्रिया की मोहक आवाज़ ने उसकी तन्द्रा तोड़ गयी |

“इस बार हम चाइनीज़ झालर से घर नहीं सजायेंगे बल्कि मिट्टी के दिए जलाएंगे | जानते हो हमारे देश के एक बड़े हिस्से पर चीन का अवैध कब्ज़ा है | आये दिन चीनी सैनिक हमारी सीमा पर उत्पात मचातें हैं | पाकिस्तान को भी इसी ने चढ़ा कर रखा है | अब तो इसने ब्रह्मपुत्र नदी का पानी भी रोक दिया | तुम ही बताओ अक्षर ऐसी स्थिति में क्या हम भारतियों चीन में बने उत्पाद खरीदने चाहिए ?”




“वैसे भी मिट्टी के दिए ज्यादा सुन्दर लगते हैं | एक कतार में चुने हुए छोटे-छोटे प्रकाश पुंज | खुद जलकर दुनिया को रौशनी से तरबतर करते ये बित्ते भर के दिए | और तुम जानते हो अक्षर मिट्टी के दीयों का सबसे खूबसूरत फायदा क्या है ?”

ऐसे मौके बहुत कम आते थे जब उसकी प्रिया यूँ दार्शनिक अंदाज़ में बोलती | अक्षर को प्रिया का बडबोलापन बहुत भाता था | इसीलिए आज अक्षर सिर्फ सुनने के मूड में था | प्रिया की आखों में झांककर एक हल्की सी मुस्कान देकर अक्षर बोला “नहीं प्रिया ! मैं नहीं जानता वो खूबसूरत फायदा | तुम बताओ |”

“इन दीयों को बेचकर जो पैसे गरीब कुम्हार कमाएंगे उन्हें वो अपने बच्चों की पढाई-लिखाई और दिवाली के पटाखों पर खर्च कर सकते हैं | इस दिवाली पर सिर्फ दीपक ही क्यों आतिशबाजी छुडाये ? उन गरीब बच्चों को भी तो हक़ है न |”
                     
“उनका भी तो मन करता होगा मुर्गा-छाप पटाखे छुड़ाने का | रॉकेट की तरह सर्र्र से उड़ जाने का | चकई की तरह गोल-गोल घूमने का | फिर हम इस चाइनीज़ झालर को खरीद कर उन नन्हें मुन्नों से उनके सपने क्यों छीने ? हम्म !” 


“तो बताओ प्रिया कितने दिये चाहिए तुम्हें | कितने दीयों से रोशन करोगी अपना आशना |” जबाब में प्रिया मुस्करा भर दी | अक्षर भी इससे आगे कुछ कह न सका | वो  अपलक प्रिया को निहार रहा था | उसकी बडबोली फेसबुकिया प्रिया आज सचमुच की एंजेल प्रिया बन चुकी थी | 

Saturday, 23 July 2016

2 गोली उनके सीने में उतार दूंगा : आज़ाद

नाम: आज़ाद
पिता का नाम : स्वाधीन
घर : जेलखाना
अब लिखने की जरूरत नहीं कि आज़ाद कौन था | ये मात्र तीन पंक्तियाँ किसी भी भारतीय के लिए श्रीमद भागवत के श्लोक के बराबर हैं | पर आज उस महामानव के जन्मदिन पर मैं आपको ये कहानी नहीं सुनाऊंगा | ये तो आप सब ने सुनी है | आज मैं चन्द्र शेखर आज़ाद की वो कहानी सुनाऊंगा जिसे सुनने के बाद आपके रोंगटे खड़े हो जायेगें|
चन्द्रशेखर आज़ाद के माता पिता मध्यप्रदेश के भावरा में एकांत में रहते थे | उस समय तक आज़ाद खुद को देश सेवा के लिए समर्पित कर चुके थे | ये उन दिनों की बात है जब आज़ाद देश में क्रांति की अलख जिन्दा रखने के लिए सरकारी खजाने लूटा करते थे | हजारो का खजाना उनके पास सुरक्षित रहता था | उनके गाँव से एक आदमी उनसे मिलने के लिए आया | बोला कि "इतने पैसे हैं तुम्हारे पास | तिजोरी माल से भरी है | उधर तुम्हारे माता पिता भूख से मर रहे हैं | कम से कम इतना धन तो अपने गाँव पहुंचा दो जिससे तुम्हारे माँ बाप बुढ़ापे में चैन की रोटी खा सके |" जो जबाब आज़ाद ने दिया उसे पढ़ कर मेरे रोंगटे खड़े हो गये | मेरी रूह काँप गयी | आज़ाद ने कहा कि " इस तिजोरी का एक पैसा गाँव नहीं जायेगा | ये पैसा माँ भारती के लिए है | मेरे अकेले के माँ बाप भूखे नहीं सोते | सैकड़ो क्रांतिकारियों के घर में फांके की नौबत है | उनका पालन पोषण गाँव वालों की जिम्मेदारी है | अगर गांववाले उन २ बूढों को २ वक्त की २ रोटियां खिलाने में असमर्थ हैं तो मुझे बता दो मैं गाँव आऊंगा और अपनी पिस्तौल की २ गोलियां उन दोनों के सीने में उतार कर वापस आ जाऊंगा | " ये सुनकर उस आदमी की नजरे झुक गयी | फिर कभी आज़ाद के माँ बाप को भूखा नहीं सोना पड़ा |
ये कहानी मैं आपको इसीलिए नहीं सुना रहा क्युकी आज उन्हीं आज़ाद का जन्मदिन है | ये मैं इसलिए सुना रहा हूँ क्युकि आज मन व्यथित है | आज देश आज़ाद है और आजाद देश की कृतज्ञ सत्ता उस आज़ाद का अपमान करती है इसीलिए आपको मैं ये कहानी सुना रहा हूँ | आपको शायद याद न हो पर मैं भूल नहीं सकता | आज जो दलितों की कथित देवी अपने अपमान से आहत हैं कभी इन्होने ही आज़ाद को आतंकी कहा था | वो आज़ाद जिसने अपने खून से आज़ादी लिखी, जिसने पहाड़ो को अपने नाखूनों से चीरा था | जिसने देश को भगत सिंह राजगुरु और बिस्मिल से अमूल्य रत्न दिए जो अल्फ्रेड पार्क में अकेला बीसिओं से जूझा था | वो फूल जो जमीं पर उगा और फकत आसमान पर खिला | वो आज़ाद हिमालय जिसकी याद में रोया | उस आज़ाद को उप्र की तत्कालीन मुख्यमंत्री 'देवी मायावती' ने आतंकवादी कहा था |
अभी जब 'देवी मायावती' राज्यसभा में खड़े होकर कह रहीं थी कि "मैंने कभी किसी का अपमान नहीं किया" और सभा के अभी सदस्य चुप रहे | कोई ये कहने की हिम्मत नहीं कर सका कि आपने देश के पुत्र चन्द्र शेखर के लिए आतंकवादी शब्द का प्रयोग किया था | जब वो किसी की माँ बहन बेटी का अपमान करती रही और और सब लोग चुप रहे | किसी ने ये कहने का साहस नहीं कि आपका अपमान गलत था पर उसकी आड़ में आपको किसी महिला के सम्मान से खेलने की इजाज़त नहीं दी जा सकती | जब अखिल भारत में कहीं भी विरोध का स्वर नहीं उठा | तब हम दिनकर के वंशजों अपनी कलम उठानी पड़ती है और विरोध में लिखना पड़ता है |
'देवी मायावती' जी आप भले ही उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यंत्री रही हैं पर इससे आपको हमारे आज़ाद को आतंकी कहने का अधिकार नहीं मिल जाता | आज़ाद का नाम इस देश के इतिहास के पन्नो में स्वर्ण अक्षरों में लिखा हुआ है | आपका जिक्र इतिहास के किन पन्नो में होगा या किन अक्षरों में लिखा जायेगा ये मैं यहाँ लिखना नहीं चाहता | चंद्रशेखर आज़ाद को आप जैसे भ्रष्टों के प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है | सूरज के मुंह पर थूकने वाले ये भूल जाते हैं कि उनका थूका हुआ वापस उनके ही मुंह पर आकर गिरता है | इसीलिए 'देवी मायावती' जी कृपया अपने शब्दों के घोड़ो को लगाम दें | अन्यथा देश की जनता आपको और हर उस आदमी को जो देश के हुतात्माओं को आतंकी कहता है जबाब देगी और ऐसा सबक सिखाएगी जिसकी गूँज अनंत काल तक सुनाई देगी |
भारत के महान पुत्र चन्द्रशेखर आज़ाद को उनके जन्मदिन पर नमन _/\_
-अनुज अग्रवाल

Wednesday, 6 July 2016

कहाँ हैं शांतिप्रिय मुस्लिम

अभी पिछले साल ही फिलस्तीन ने इस्रायल के 2 जवान मार दिये थे । बाई गॉड... क्या तांडव किया था बदले में इस्राइल ने | फ़िलिस्तीनियों को उनके ही घर में कुत्तो की तरह दौड़ा दौड़ा कर मारा । हमारे यहाँ के लोगों से इन दोनों ही घटनाओं का कोई मतलब नहीं था । न इस्राइल के सैनिकों की हत्या से और न इस्त्राइल के प्रतिशोध से । पर जब इस्राइल जबाबी कार्यवाही कर रहा था तब कराहे जाने की आवाज़ें भारत से भी आ रहीं थी । दोमुंहे सेक्युलरिस्ट्स दिल्ली में सेव गाजा मार्च निकाल रहे थे । अगर ये मान भी लिया जाए कि ये सब वो इंसान होने के नाते कर रहे थे, तो जब फिलिस्तीन इस्राइल के नागरिकों को मार रहा था तब इनकी मानवीय संवेदनाये कहाँ थी ?
आजकल रमजान का महीना चल रहा है । बांग्लादेश में आतंकियों ने इस्लाम के नाम पर कल 20 लोगों को मार दिया । मारने से पहले पूछा कुरान की आयत सुनाओ । जिसे याद थी वो बचा । जिसे नहीं याद थी उसे कत्ल कर दिया गया । आपको बता दूँ इन मरने वालों में एक भारत की बेटी तारिषि भी शामिल है । अभी तक मुझे तो कोई खबर सुनाई नहीं दी कि किसी ने जंतर मंतर पर इसके विरोध में कैंडल मार्च किया है | यहाँ तक कि निंदा के स्वर तक नहीं सुनाई दिए | आज किसी सेक्युलरिस्ट्स या किसी महिला आयोग गिरोह की कोई मानवीय संवेदना नहीं जगी । क्या मैं पूछ सकता हूँ क्यों ? आखिर ये दोगलापन क्यों ? गाजा पर विधवा विलाप और बांग्लादेश पर ख़ामोशी क्यों ?
और खबरदार जो आपने इसे धर्म के नाम पर हत्या कहा तो । खबरदार इस लोहमर्षक हत्याकांड की निंदा भी आपने गर की तो । आपको तुरंत सांप्रदायिक ठहरा दिया जायेगा । कहा जायेगा कि "आपको तो हर दुर्घटना को मजहब के चश्मे से देखने की आदत हो गयी है | आतंकियों का भी भला कोई मजहब होता है ? कुछ बुरे लोगों के कर्मों की वजह से आप पुरे मजहब को बदनाम क्यों करते हैं और ब्लाह ब्लाह ब्लाह |" पर कोई ये नहीं बताएगा कि उन चंद खूनी भेडियों का विरोध कथित अधिसंख्य शांतिप्रिय मुस्लिम सडको पर करते क्यों नहीं नजर आते ? मुंबई में जब शहीद स्मारक को तोडा जाता है, तब इसका विरोध करते कथित शांतिप्रिय मुस्लिम लोग क्यों नहीं नजर आते ? क्यों शहीद तंजील अहमद के जनाजे से ज्यादा भीड़ हमें आतंकी अफजल और आतंकी याकूब के जनाजे में नजर आती है ? इस्लाम को शांति का मजहब घोषित करने वाले इन प्रश्नों का जबाब क्यों नहीं देते ?
कोई यदि आपको बदनाम कर रहा है तो आपकी छवि को सुधारने का काम भला किसका है ? जिस शक्ति से आप उन लोगों का विरोध करते हैं जो आपके मजहब को आपके अनुसार बदनाम करते हैं | ठीक उसी निष्ठा से आप इन मुस्लिम आतंकियों का विरोध क्यों नहीं करते, जिनकी वजह से आपका मजहब बदनाम होता है ? क्यों नहीं आप याकूब को अपने यहाँ दफनाने से मना कर देते ? क्यों नहीं आप आइसिस में जाने वाले लड़ाकों के परिवारों का सामाजिक बहिष्कार करते ? आप हर बार क्यों आतंकियों के पक्ष में खड़े नज़र आते हैं ? यदि आप आगे आकर इनका विरोध करें तो किसी कि क्या मजाल जो आपके मजहब को आतंकी कह जाए |
खैर मुझे क्या ? ये आप लोगों का मसला है | आप जानों | और मैं क्यों तारिषि के बारे में लिखूं ? ये सब कह मैं क्यों बुरा बनूँ । क्यों मैं अपना समय ख़राब करूँ ? वो मेरी भला क्या लगती थी | कोई मुझ पर थोड़े न कोई हमला हुआ है | मुझसे थोड़े न कोई आयत पूछी गयी है | फ्राइडे पर डोमिनोज में 50% और सन्डे को मैक डी में 6% डिस्काउंट मिलता है | मैं तो चला बर्गर खाने | तुम मरो सालों ... मुझे क्या !

-अनुज अग्रवाल

Sunday, 26 June 2016

एक खत अर्नब गोस्वामी के नाम

बचपन में मुझ पर पत्रकार बनने का भूत सवार था | कोई पूछता बेटा क्या बनोगे तो शान से सीना चौड़ा करके बताता कि पत्रकार बनूँगा और अपना अखवार निकालूँगा | उस समय नहीं जानता था कि अखवार निकालना किसे कहते हैं | पर हौसले उस समय आसमान छूते थे | उस भी मेरे फेवरिट आप थे अर्नब गोस्वामी | क्या लपेटते थे सामने वाले को | मंत्री, प्रधानमंत्री कोई भी हो पर अपने अर्नब गोस्वामी जी नहीं रुकने वाले | एक के बाद एक नश्तर की तरह चुभते तीखे प्रश्न | मैं बिलकुल आप जैसा बनना चाहता था | निर्भीक, निडर, निष्पक्ष | आप विश्वास नहीं करेंगे मैंने आपका प्राइम टाइम घर में एकता कपूर के सीरियल बंद करा के देखा है | कभी कभी दोस्तों से लड़कर मैच बंद करा उनकी दुश्मनी मोल ले मैंने आपका प्राइम टाइम देखा है |




मुझे याद है जब आपने प्रमोद मुतालिक को स्टूडियो से बाहर निकाला था | निश्चित ही लडकियों को सडको पर दौड़ा कर पीटना सभ्य समाज में स्वीकारा नहीं जा सकता | जब मुतालिक ने इसका पक्ष लिया तो आपने उन्हें "फ्रिंज एलिमेंट" कहा और अपने स्टूडियो से भगा दिया | तब मैंने मेरे दोस्तों को कहा कि देखो भाई ये है एक बन्दा पुरे हिंदुस्तान में जो किसी से नहीं डरता | ऐसे होने चाहिए हमारे पत्रकार लोग |

मुझे वो सीन भी याद है जब आप संघ पर आरोप लगा रहे थे और मीनाक्षी लेखी जी ने आपसे कहा कि " यू आर गैटिंग मनी फ्रॉम लॉबी ..." और उसके बाद आपका वो कालजयी डायलॉग "नेवर एवर .... " फिर आपका २ सांसो का ब्रेक और फिर दो शब्द बोलना " एवर एवर ..." फिर ब्रेक और फिर उसे पूरा करना | उसके बाद आपका २ मिनट तक सिर्फ "हाउ डेयर यू... हाउ डेयर यू " करना | आपका ये डायलॉग आपसे ज्यादा मैंने बोला होगा | और विश्वास कीजिये प्रैक्टिस इतनी हो गयी कि ये लाइन मैं आपसे बेहतर बोल सकता हूँ |

फिर एक वो पल भी आया जब आपने राज ठाकरे का इंटरव्यू लिया | उस इंटरव्यू को देखने के बाद मैं आश्चर्यचकित रह गया था | बड़े बड़े मिनिस्टर्स जिसके सामने मिमियाते नजर आते हैं उस अर्नब को आज क्या हो गया ? क्यों उसके सवालो में वो धार नहीं रही जो सामने वाले के छक्के छुड़ा देती थी | खैर उस पर भी मैंने फेसबुक पर अपना क्षोभ व्यक्त किया था | पर फिर भी आपकी बनायीं छवि मैंने मेरे मन में नहीं बिगड़ने दी | मैंने मेरे मन को समझाया कि होता है कभी कभी | करना पड़ता है समझौता | ये इतनी बड़ी बात नहीं है | अर्नब पहले जैसा ही है निर्भीक, निडर और निष्पक्ष |

पर कल जब मैंने आपको कैराना के मुद्दे पर बहस करते देखा तो मेरे मन में अंकित गुड मेन की आपकी छवि को गहरा धक्का लगा | हो सकता है कि जो लिस्ट भाजपा सामने लायी है उसमे कुछ एक नाम गलत हो | पर क्या उससे ये साबित होता है कि पलायन नहीं हुआ ? हो सकता है कि कैराना के मुद्दे को भाजपा सांप्रदायिक रूप दे रही हो पर क्या उससे इस मुद्दे की भयावहता कम हो जाती है | क्या उससे उन 300 परिवारों की पीड़ा कम हो जाएगी जिन्हें मुस्लिम गुंडागर्दी के चलते उनके पैतृक घर को त्यागना पड़ा ? वो घर जहाँ उनका बचपन बीता, वो चाहर दिवारिया जिनके सहारे घुटने रगड़ते उन्होंने चलना सीखा | वो घर, वो चाहर दिवारिया इन्हें कौन वापस करेगा ? जिन आम के बागो में दोपहर बीता, जिन गलियों में हुए जवानी बीती | जो गलियां, वो बाग़ क्यों इनसे छीने जा रहे हैं ? कौन इस बात का जबाब देगा सर? कौन ?

महात्मा गाँधी ने एक बार कहा था कि "चाहे 100 अपराधी छूट जाएँ पर किसी एक निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए |" यहाँ न्याय की गुहार 1000 लोग लगा रहे हैं | कुछ एक नाम निकाल भी दो या मान लो पूरी लिस्ट ग़लत है और सिर्फ एक आदमी एसा है जिसने मुस्लिम आतंक के चलते कैराना छोड़ा है तो क्या वो एक बन्दा भी न्याय की आस छोड़ दे ? उसके हक़ के लिए उसे उसका अधिकार दिलाने के लिए कौन खड़ा होगा सर ? क्युकि अब ये मुद्दा उठाना तो आपने सांप्रदायिक घोषित कर दिया | उसे इसकी जमीन अब वापस कौन दिलाएगा सर ?

एक पत्रकार होने के नाते आपका कर्तव्य था कि आप उप्र सरकार को कठखड़े में खड़ा करते और अपना रौद्र रूप दिखा सवाल करते | पूछते उप्र सरकार से कि क्यों कैराना हुआ ? पूछते उनसे कि क्यों कांधला हुआ ? क्यों पलायन अविरत जारी है ? क्यों ये रुक नहीं रहा ? क्यों आप इन्हें सुरक्षा मुहैया नहीं करा रहे ? क्यों वहां की स्थिति इतनी दयनीय है ? क्यों प्रशासन मूक है वहां ? क्यों ? आखिर क्यों ?

पर आपने क्या किया ? आपने भाजपा को जो कम से कम इनका मुद्दे उठा रही है उसी को इसका आरोपी बना दिया | आपकी डिबेट में पलायन मुद्दा ही नहीं रहा | बड़ी चालाकी से मुख्य मुद्दा आपकी डिबेट से गायब हो गया | पलायन पर बहस करने की जगह आप ये बहस कर रहे हैं कि लिस्ट में 10 नाम गलत है | और बाकी के 336 ... उनका क्या सर ? क्या चुनाव की बलि बेदी पर उन्हें होम कर दिया जाये ? क्या उनकी जिन्दगी का आपकी TRP के सामने कुछ मोल नहीं ?

सर ये पत्र मैं इसीलिए लिख रहा हूँ क्युकि आपके प्राइम टाइम से मुझे गहरा दुःख हुआ है | मैं आपसे बस यही कह सकता हूँ कि कम से कम आप TRP के लिए अपना प्राइम टाइम न करें | आप मेरे वही निर्भीक, निडर और निष्पक्ष अर्नब बने रहें | TRP... हो सकता है आपको कम मिले | पर मेरे मन में आपको इज्ज़त बहुत मिलेगी सर | कल देश का बच्चा बच्चा अर्नब बनना चाहेगा | और कहेगा देखो वो पत्रकारिता का स्तम्भ जा रहा है जो न किसी से डरा है न किसी से डरेगा | और मैं अर्नब जैसा पत्रकार बनना चाहता हूँ |