Thursday, 1 March 2018

अप्राइम_टाइम: होलिका ज्ञान

अभी कल होली है | आप सभी को रंगों के प्यार भरे उत्सव की अशेष शुभकामनाये | ये होली आपके जीवन को ख़ुशी और समृद्धि के रंगों से सराबोर कर दे |
हम सब जानते हैं कि होली आपसी मेल मिलाप का त्यौहार है | इस दिन हम अपने पुराने मित्रों से और जिनसे छिटपुट लड़ाई होती है उन सभी से गले लगकर अपने पुराने बैर भुला कर एक नए सौहार्दपूर्ण रिश्तों की शुरुवात करते हैं | मेरा ओब्जर्बेशन बस यहीं से शुरू होता है | कुछ प्रश्न जो हर होली पर मेरे मन में उठते हैं ... वो हैं
बैर किससे भुलाएँ ?
प्रेम किससे करें ?
मेल मिलाप किसके साथ हो ?
सामंजस्य किससे बैठाये ?
     मेरे सामने यही समस्या आकर खड़ी हो गयी है | मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि प्रेम के इस त्यौहार का मतलब क्या है ?
     सामने एक बन्दा हाथ में शमशीर लिए मेरे टुकड़े टुकड़े करने के इरादे से खड़ा है | क्या मैं आगे बढ़कर उसे गुलाल लगाऊं
     जो हाथ मेरी भारत माँ के आंचल की तरफ उसे विदीर्ण करने के लिए बढ़ रहे हैं क्या उन हाथों में मैं जौ की भुनी बालियाँ देकर उन्हें आत्मीयता के बंधन में बांध लूँ ?
क्या ये ठीक होगा ?
     या जो पैर मेरे देशवासियों को कुचलने के लिए आगे बढ़ रहे हैं उन पैरों में होलिका के शिष्टाचारवश अपना शीश झुका दूँ
क्या करूँ मैं ???
हम सब समाज में रह रहे हैं | और समाज कभी एक व्यक्ति से नहीं बनता | समाज सहअस्तित्व की अवधारणा में विश्वास रखता है |
     अगर मैं आपका अस्तित्व स्वीकार कर रहा हूँ तो आपको भी मेरा अस्तित्व स्वीकार करना होगा |
     होली के दिन आप मेरे घर की गुजिया खाएं और अगले दिन मुझे जिबह करने के लिए खड़े हों जायें तो मेरा दायित्व है ये सोचना कि क्या मैं आपको गुजिया खिलाकर रंगों में सराबोर कर अपने समाज के साथ उचित कर रहा हूँ ?
     मेरे किसी मित्र से किसी बात पर बहस हो तो एक घंटे एक दिन या ज्यादा से ज्यादा एक हफ्ते में उससे पुन: बातें शुरू हो जाती हैं | क्यों ?
     क्योकि उनका अल्टीमेट उद्देश्य मेरी मृत्यु नहीं है | पर यहाँ तो सामने लाल बत्ती जल रही है | साफ खतरा महसूस हो रहा है | कम से कम मैं बिल्ली को सामने दे:ख अपनी आँखें बंद नहीं कर सकता | मैं कबूतर नहीं हूँ भाई ...
     इसीलिए मुझे और आपको सजग तो रहना होगा | मुझे और आपको मजबूत होना ही पड़ेगा | मुझे और आपको आगे आना ही पड़ेगा | अपनी सुरक्षा के लिए अपने समाज के हित के लिए ...
अब सवाल ये है कि ये कैसे संभव है | और जबाब सिर्फ एक है :
संगठन ...
     हम सबने पढ़ा है | एक किसान... किसान के चार बेटे चारों बेटे अलग अलग लकड़ियाँ आसानी से तोड़ लेते हैं | पर लकड़ियों का बण्डल को तोड़ने का सामर्थ्य उन चारों में से किसी के पास नहीं था | यह है संगठन की शक्ति |
ये संगठन कैसे बनता है ?
     ये संगठन बनता है मेरे और आपके साथ आने से | हम दोनों और फॉर दैट मैटर हम सब जब एक दूसरों के सुख दुःख में सहभागी होंगे | उससे बनेगा ये संगठन |
     और यही सब करते हैं हम अपनी शाखा में आज सोशल मीडिया का युग चल रहा है | सारे रिश्ते मोबाईल के मोहताज हैं | मैं पूछ नहीं रहा पर आप गिनिये कि अपने मोहल्ले भर में कितने लोगों को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं आप ?
     किस किस घर में आपने चाय पी है जाकर और कितनी बार ? फिर आप खुद ही अंदाज लगा लीजिये कि विपत्ति की स्थिति आने पर मोहल्ले भर में कितने लोग आपके साथ खड़े होंगे ?
     जो आकंडे आप लगायेंगे उन्हें बिना देखे मैं कह सकता हूँ कि भयावह है मित्र | जिसकी परिणिति डॉ नारंग सरीखी है |
     इसीलिए इसी होली पर अपने सगंठन का शुभारम्भ कीजिये | एकत्रित होइए | शाखा में आइये | मेल जोल बढाइये |सामंजस्य बैठाईये | पर सही लोगों के साथ |
     जय श्रीराम ... होली की पुन: अशेष शुभकामनाये | ये होली आपके लिए शुभ हो _/\_
-अनुज अग्रवाल