Wednesday, 6 December 2017

इतिहास के पन्नों में अयोध्या

     6 दिसंबर 1992 इतिहास में दर्ज ये एक तारीख मात्र नहीं है | ये हो भी नहीं सकती | अपने आप में इतिहास समेटे है ये दिन | 500 सालों का इतिहास | अपने रामलला की जन्मभूमि को स्वतंत्र कराने का इतिहास | उसके लिए दसियों युद्ध सैकड़ो लड़ाइयों का इतिहास | लाखों बलिदानों का इतिहास | अपनों द्वारा छली गयी और तमाम राजनैतिक षड्यंत्रों का शिकार रही पुनीत पावन #अयोध्या भूमि का इतिहास है ये | ये सरयू में बहे उन हुतात्माओं के लहू का इतिहास है जिसने अपने भरतवंशीय पुत्रों के रक्त को पुकारा और भरतवंशियों ने अपनी शिराओं में दौड़ते इसी लहू से जन्मभूमि का आज के दिन तिलक कर दिया |



     एक धर्मांध कट्टरपंथी विदेशी आक्रान्ता भारत आता है शबाब और शराब के नशे में डूबी हुए दिल्ली की लोदी सल्तनत उसे एक मामूली लुटेरा समझती रही | वो काबुल से अपने खच्चरों पर बैठ कर आया और दिल्ली के सुलतान की सल्तनत के परखच्चे उड़ा कर चला गया | 300 सालों की गुलामी से छिन्न-भिन्न, हमारी बची खुची, टुकडो में बंटी किन्तु अपने स्वार्थ लिपसा में डूबी #राजशाही उससे लड़ने की हिम्मत न जुटा सकी | एक राणा सांगा ने जरूर खानवा आकर उसे ललकारा पर हाय रे दुर्भाग्य अपने ही सहोदरों ने धोखा दे दिया |

     निश्छल भारतवासी भी उसकी कुटिल चालों को नहीं समझ सके | या सच अगर लिखूं तो कोई हो नृप हमें का हानिवाली मानसिकता ले डूबी | वरना क्या कारण था जो तोमरों की सेना बाबर से जा मिली | राणा सांगा को दक्षिण के महान साम्राज्यों से कोई मदद नहीं मिली ? भाषायें अलग हैं पर भारतीय एक हैं | भारतवर्ष भेषभूषा से भिन्न किन्तु सांस्कृतिक और राजनैतिक रूप से #अखंड है | महान आचार्य चाणक्य की ये सीख हम क्यों भूल गए ?

     1527 में बाबर खानवा का युद्ध जीतता है और 1528 में वो श्री राममंदिर तुडवा कर मज्जिद चिनवा देता है | क्यों ? क्युकि उसे उसके लक्ष्य का पता होता है | वो जानता था कि ये मंदिर ही भारत की एकता का प्रतीक है | श्रीरामलला जन-जन के आराध्य हैं | दुष्ट रावण के संहार करने की प्रेरणा देने वाले हैं | यदि इस शक्ति के प्रतीक श्री राम के पवित्र मंदिर को अगर उसने तहस नहस कर दिया तो उसकी सल्तनत को चुनौती देने की हिम्मत कौन करेगा ?

     चुन चुन के उसने और उसके वंशजो ने मंदिरों को ढहाया ये बताने के लिए देखो तुम्हारा खुदा तुम्हे नहीं बचा सकता | गौरव और शक्ति की प्रतीक प्रतिमाओं को मज्जिद की सीढ़ियों में चिनवा दिया । ये जताने के लिए कि तुम्हारे #शक्ति के प्रतीक खोखले हैं | मुग़ल इसमें सफल भी रहे | क्युकि शक्ति उन मूर्तियों में थी नहीं | शक्ति तो हमेशा जनता की भुजाओ में निहित थी | वो जनता जो अपने स्वार्थ के चलते अपने सामाजिक कर्तव्यों को भुला बैठी थी | अरे खुद श्री राम ने रावण को अकेले नहीं मारा | उसके लिए सुग्रीव, हनुमान, अंगद, नल-नील और यहाँ तक कि नन्ही गिलहरी तक ने सहयोग किया | श्री राम ने जंगलों से ब्रह्मास्त्र नहीं छोड़ा रावण पर | उनके सहयोग के लिए जनता आगे आई | उसकी मदद से श्रीराम ने लंका फतह की |

     खैर भारत में सारे बुजदिल नहीं रहते थे | कुछ लोग थे जिनकी शिराओं में उनके पूर्वजों का खून था | कुल 1 लाख 73 हजार लाशें गिरने के बाद ही मीर बांकी मंदिर गिरा पाया | देवीदीन पांडे, राणा रणविजय सिंह, रानी जयराज कुमारी, स्वामी महेश्वरानंद आदि लोगों के राम जन्मभूमि की स्वतंत्रता के लिए समय समय पर तमाम छोटे-बड़े युद्ध लड़ें और अपनी क़ुरबानी दीं | अकबर के राज्य में लगभग 20 हमले हुए जिसके परेशान अकबर ने वहां पूजन की अनुमति दी |

     जहागीर और शाहजहाँ ने अपने बाप दादो के यथास्थिति वाले फैसले को ही आगे बढाया पर 1658 में दिल्ली की गद्दी पर सत्तानशीं टोपियाँ सीकर अपनी जिन्दगी जीने वाला कथित महान सूफी संत औरंगजेब मुग़ल सल्तनत की छाती पर होने वाली #बुतपरस्ती को सहन नहीं कर सका | उसने जाबांज खान के नेतृत्व में अयोध्या पर आक्रमण कराया | हालाँकि अपने इरादों में औरंगजेब सफल नहीं हुआ | गुरु गोविन्द सिंह ने जाबांज खान को अल्लाह से मिलवा दिया |

     इस हार के बाद औरंगजेब 6 साल तक जन्मभूमि की तरफ आँख उठाने की हिम्मत न कर सका | 1664 में अपनी शक्ति एकत्र कर रक्त पिपासु औरंगजेब ने अयोध्या पर आक्रमण किया | मंदिर की रक्षा के लिए 10 हजार से ज्यादा हिन्दुओं ने अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया | किन्तु वो विफल रहे | जन्मभूमि एक बार फिर परतंत्र हुई | राम चबूतरा तोड़ दिया गया | पर हिन्दुओ ने हार नहीं मानी |

     संघर्ष आगे चलता रहा | राजा गुरुदत्त सिंह और राजकुमार सिंह ने इसे दासता से छुड़ाने के प्रयास किये | 1751 तक ये मंदिर कभी अपने कब्जे में कभी जाहिल लुटेरों के कब्जे में आता जाता रहा | मराठों ने अफगानियों के खिलाफ युद्ध लड़ा | पर दुर्भाग्य से वो #पानीपत में हार गए और मंदिर स्वतंत्र कराने का सपना फिर से सपना बन कर रह गया | इसके लगभग 100 साल तक शांति रही | फिर 1854 से 1856 बाबा रामचंद्र दास और बाबा उद्धव दास ने लखनऊ के नबाबो कमश: नसीरुद्दीन हैदर और वाजिद अली शाह से 5 युद्ध किये |

     फिर आया 1857 ये वो समय था जब देश में अंग्रेजों के विरुद्ध आज़ादी का बिगुल फूंक चुका था | हिन्दू मुस्लिम कंधे से कन्धा मिलाकर अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे | ऐसे में विवाद की जड़ को खत्म करने के उद्देश्य से मुस्लिम नेता अमीर अली ने मुस्लिमों को समझाकर अयोध्या की कमान बाबा #रामचन्द्रदास को देने का निर्णय किया | हिन्दुओं के आराध्य का भव्य मंदिर अयोध्या में बने इस पर सभी मुस्लिम राजी थे | किन्तु हाय रे दुर्भाग्य अपनी फूट डालो की नीति के तहत अंग्रेजों ने बाबा रामचंद्रदास और आमिर अली दोनों को एक पेड़ पर लटकवा दिया | राम मंदिर मुद्दे को सौहार्दपूर्ण को हल करने का ये शायद आखिरी मौका था |

     1886 में इस मुद्दे पर एक याचिका अंग्रेजो के समक्ष दाखिल की | पर अंग्रेंजों ने इस पर कुछ निर्णय करने से इंकार कर दिया | 23 दिसंबर 1941 को यहाँ पूजा की अनुमति मिल गयी | फिर 1949 को न्यायलय में वाद दायर किया गया | 7 अक्टूबर 1984 को अयोध्या में मंदिर पुन: निर्माण का संकल्प लिया गया | 1 फरवरी 1986 को बाबरी ढांचे में लगा ताला हटा दिया गया | 19 नवम्बर 1989 वो एतिहासिक दिन था जब एक #हरिजन ने श्रीराम मंदिर की नींव का पहला पत्थर रखा | 1990 में बात काफी आगे बढ़ी | 30 अक्टूबर को विहिप ने कार सेवा की घोषणा की |

     उस समय मुलायम सिंह की सरकार थी | लाखों लोग उस दिन अयोध्या में थे | पूरी कोशिश थी सरकार की कि अयोध्या में कारसेवक प्रवेश न कर पायें | पर रामभक्तों ने वहां मौजूद हर बैरियर को तोड़ते हुए कारसेवा की | उसी दिन गोली चली और कई रामभक्तों ने अपनी जानें गवाईं | जिन लोगो ने प्राण गवाये उसमे #कोठारी बंधू भी शामिल थे | अपने सीने पर गोलियां खाते समय उनकी उम्र 18 और 20 साल थी |

     ये कुर्बानियां बेकार नहीं गयी | उनकी मृत्यु देश भर के हिन्दुओं की आत्माओं को झकझोर गयी | जिसकी परिणिति हमें 6 दिसंबर 1992 को दिखाई दी | जब लाखों रामभक्तों के समूह ने फतह करते हुए 500 साल की गुलामी के प्रतीक उन 3 गुम्मदों को जमीदोज कर सदियों से चली आई सांस्कृतिक वर्चस्व की लड़ाई में एक मील का पत्थर स्थापित किया | एक लक्ष्य उस दिन हमने पाया |



     पर मित्रो अभी पूरा लक्ष्य सधा नहीं है | बहुत कुछ है जो पाना अभी बाकी है | मंदिर की सौगंध खाने वालों ने शायद उन लाखो हुतात्माओ के बलिदान को बिसरा दिया होगा, पर हिन्दू समाज कभी उन वीरो को नहीं भूलेगा | वो सौगंध पूरी होकर रहेगी जो #रामलला को साक्षी मानकर हमारे पूर्वजों ने खाई थी | एक इतिहास उस दिन लिखा गया था | एक इतिहास लिखना अभी बाकी है | वो दिन दूर नहीं जब माननीय उच्चतम न्यायलय सभी साक्ष्यो को मद्देनजर रखते हुए अपना निर्णय देगा | और अयोध्या में मेरे और आपके सहयोग से भव्यतम श्री राम मंदिर बनेगा |
जय जय श्री राम !!