Sunday, 9 October 2016

चाइनीज़ झालर


“खील, बताशे, लक्ष्मी मैया का कलेंडर, पूजा का सामान.... ये क्या प्रिया सामान की लिस्ट में तुम्हारी प्रिय चीज नहीं है, जिसे लेकर तुमने पिछली दिवाली पर अपना रौद्र रूप दिखाया था | इस बार अपनी तरह घर नहीं सजाओगी क्या ?” अक्षर ने शीशे के सामने बैठकर इठलाती प्रिया की चुटकी लेते हुए कहा |

प्रिया अक्षर के मन की बात समझ गयी थी | “नहीं अक्षर !” मीठी चाशनी में लिपटे हुए ये प्रिया के ये २ शब्द अक्षर के कानों में मिश्री घोल गए | प्रिया के मुंह से उसका नाम सुनते ही अक्षर के दिल में प्रेम का सितार बजने लगा | वो इस मधुर संगीत के तरन्नुम में डूबने ही वाला था पर प्रिया की मोहक आवाज़ ने उसकी तन्द्रा तोड़ गयी |

“इस बार हम चाइनीज़ झालर से घर नहीं सजायेंगे बल्कि मिट्टी के दिए जलाएंगे | जानते हो हमारे देश के एक बड़े हिस्से पर चीन का अवैध कब्ज़ा है | आये दिन चीनी सैनिक हमारी सीमा पर उत्पात मचातें हैं | पाकिस्तान को भी इसी ने चढ़ा कर रखा है | अब तो इसने ब्रह्मपुत्र नदी का पानी भी रोक दिया | तुम ही बताओ अक्षर ऐसी स्थिति में क्या हम भारतियों चीन में बने उत्पाद खरीदने चाहिए ?”




“वैसे भी मिट्टी के दिए ज्यादा सुन्दर लगते हैं | एक कतार में चुने हुए छोटे-छोटे प्रकाश पुंज | खुद जलकर दुनिया को रौशनी से तरबतर करते ये बित्ते भर के दिए | और तुम जानते हो अक्षर मिट्टी के दीयों का सबसे खूबसूरत फायदा क्या है ?”

ऐसे मौके बहुत कम आते थे जब उसकी प्रिया यूँ दार्शनिक अंदाज़ में बोलती | अक्षर को प्रिया का बडबोलापन बहुत भाता था | इसीलिए आज अक्षर सिर्फ सुनने के मूड में था | प्रिया की आखों में झांककर एक हल्की सी मुस्कान देकर अक्षर बोला “नहीं प्रिया ! मैं नहीं जानता वो खूबसूरत फायदा | तुम बताओ |”

“इन दीयों को बेचकर जो पैसे गरीब कुम्हार कमाएंगे उन्हें वो अपने बच्चों की पढाई-लिखाई और दिवाली के पटाखों पर खर्च कर सकते हैं | इस दिवाली पर सिर्फ दीपक ही क्यों आतिशबाजी छुडाये ? उन गरीब बच्चों को भी तो हक़ है न |”
                     
“उनका भी तो मन करता होगा मुर्गा-छाप पटाखे छुड़ाने का | रॉकेट की तरह सर्र्र से उड़ जाने का | चकई की तरह गोल-गोल घूमने का | फिर हम इस चाइनीज़ झालर को खरीद कर उन नन्हें मुन्नों से उनके सपने क्यों छीने ? हम्म !” 


“तो बताओ प्रिया कितने दिये चाहिए तुम्हें | कितने दीयों से रोशन करोगी अपना आशना |” जबाब में प्रिया मुस्करा भर दी | अक्षर भी इससे आगे कुछ कह न सका | वो  अपलक प्रिया को निहार रहा था | उसकी बडबोली फेसबुकिया प्रिया आज सचमुच की एंजेल प्रिया बन चुकी थी |