Sunday, 26 June 2016

एक खत अर्नब गोस्वामी के नाम

बचपन में मुझ पर पत्रकार बनने का भूत सवार था | कोई पूछता बेटा क्या बनोगे तो शान से सीना चौड़ा करके बताता कि पत्रकार बनूँगा और अपना अखवार निकालूँगा | उस समय नहीं जानता था कि अखवार निकालना किसे कहते हैं | पर हौसले उस समय आसमान छूते थे | उस भी मेरे फेवरिट आप थे अर्नब गोस्वामी | क्या लपेटते थे सामने वाले को | मंत्री, प्रधानमंत्री कोई भी हो पर अपने अर्नब गोस्वामी जी नहीं रुकने वाले | एक के बाद एक नश्तर की तरह चुभते तीखे प्रश्न | मैं बिलकुल आप जैसा बनना चाहता था | निर्भीक, निडर, निष्पक्ष | आप विश्वास नहीं करेंगे मैंने आपका प्राइम टाइम घर में एकता कपूर के सीरियल बंद करा के देखा है | कभी कभी दोस्तों से लड़कर मैच बंद करा उनकी दुश्मनी मोल ले मैंने आपका प्राइम टाइम देखा है |




मुझे याद है जब आपने प्रमोद मुतालिक को स्टूडियो से बाहर निकाला था | निश्चित ही लडकियों को सडको पर दौड़ा कर पीटना सभ्य समाज में स्वीकारा नहीं जा सकता | जब मुतालिक ने इसका पक्ष लिया तो आपने उन्हें "फ्रिंज एलिमेंट" कहा और अपने स्टूडियो से भगा दिया | तब मैंने मेरे दोस्तों को कहा कि देखो भाई ये है एक बन्दा पुरे हिंदुस्तान में जो किसी से नहीं डरता | ऐसे होने चाहिए हमारे पत्रकार लोग |

मुझे वो सीन भी याद है जब आप संघ पर आरोप लगा रहे थे और मीनाक्षी लेखी जी ने आपसे कहा कि " यू आर गैटिंग मनी फ्रॉम लॉबी ..." और उसके बाद आपका वो कालजयी डायलॉग "नेवर एवर .... " फिर आपका २ सांसो का ब्रेक और फिर दो शब्द बोलना " एवर एवर ..." फिर ब्रेक और फिर उसे पूरा करना | उसके बाद आपका २ मिनट तक सिर्फ "हाउ डेयर यू... हाउ डेयर यू " करना | आपका ये डायलॉग आपसे ज्यादा मैंने बोला होगा | और विश्वास कीजिये प्रैक्टिस इतनी हो गयी कि ये लाइन मैं आपसे बेहतर बोल सकता हूँ |

फिर एक वो पल भी आया जब आपने राज ठाकरे का इंटरव्यू लिया | उस इंटरव्यू को देखने के बाद मैं आश्चर्यचकित रह गया था | बड़े बड़े मिनिस्टर्स जिसके सामने मिमियाते नजर आते हैं उस अर्नब को आज क्या हो गया ? क्यों उसके सवालो में वो धार नहीं रही जो सामने वाले के छक्के छुड़ा देती थी | खैर उस पर भी मैंने फेसबुक पर अपना क्षोभ व्यक्त किया था | पर फिर भी आपकी बनायीं छवि मैंने मेरे मन में नहीं बिगड़ने दी | मैंने मेरे मन को समझाया कि होता है कभी कभी | करना पड़ता है समझौता | ये इतनी बड़ी बात नहीं है | अर्नब पहले जैसा ही है निर्भीक, निडर और निष्पक्ष |

पर कल जब मैंने आपको कैराना के मुद्दे पर बहस करते देखा तो मेरे मन में अंकित गुड मेन की आपकी छवि को गहरा धक्का लगा | हो सकता है कि जो लिस्ट भाजपा सामने लायी है उसमे कुछ एक नाम गलत हो | पर क्या उससे ये साबित होता है कि पलायन नहीं हुआ ? हो सकता है कि कैराना के मुद्दे को भाजपा सांप्रदायिक रूप दे रही हो पर क्या उससे इस मुद्दे की भयावहता कम हो जाती है | क्या उससे उन 300 परिवारों की पीड़ा कम हो जाएगी जिन्हें मुस्लिम गुंडागर्दी के चलते उनके पैतृक घर को त्यागना पड़ा ? वो घर जहाँ उनका बचपन बीता, वो चाहर दिवारिया जिनके सहारे घुटने रगड़ते उन्होंने चलना सीखा | वो घर, वो चाहर दिवारिया इन्हें कौन वापस करेगा ? जिन आम के बागो में दोपहर बीता, जिन गलियों में हुए जवानी बीती | जो गलियां, वो बाग़ क्यों इनसे छीने जा रहे हैं ? कौन इस बात का जबाब देगा सर? कौन ?

महात्मा गाँधी ने एक बार कहा था कि "चाहे 100 अपराधी छूट जाएँ पर किसी एक निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए |" यहाँ न्याय की गुहार 1000 लोग लगा रहे हैं | कुछ एक नाम निकाल भी दो या मान लो पूरी लिस्ट ग़लत है और सिर्फ एक आदमी एसा है जिसने मुस्लिम आतंक के चलते कैराना छोड़ा है तो क्या वो एक बन्दा भी न्याय की आस छोड़ दे ? उसके हक़ के लिए उसे उसका अधिकार दिलाने के लिए कौन खड़ा होगा सर ? क्युकि अब ये मुद्दा उठाना तो आपने सांप्रदायिक घोषित कर दिया | उसे इसकी जमीन अब वापस कौन दिलाएगा सर ?

एक पत्रकार होने के नाते आपका कर्तव्य था कि आप उप्र सरकार को कठखड़े में खड़ा करते और अपना रौद्र रूप दिखा सवाल करते | पूछते उप्र सरकार से कि क्यों कैराना हुआ ? पूछते उनसे कि क्यों कांधला हुआ ? क्यों पलायन अविरत जारी है ? क्यों ये रुक नहीं रहा ? क्यों आप इन्हें सुरक्षा मुहैया नहीं करा रहे ? क्यों वहां की स्थिति इतनी दयनीय है ? क्यों प्रशासन मूक है वहां ? क्यों ? आखिर क्यों ?

पर आपने क्या किया ? आपने भाजपा को जो कम से कम इनका मुद्दे उठा रही है उसी को इसका आरोपी बना दिया | आपकी डिबेट में पलायन मुद्दा ही नहीं रहा | बड़ी चालाकी से मुख्य मुद्दा आपकी डिबेट से गायब हो गया | पलायन पर बहस करने की जगह आप ये बहस कर रहे हैं कि लिस्ट में 10 नाम गलत है | और बाकी के 336 ... उनका क्या सर ? क्या चुनाव की बलि बेदी पर उन्हें होम कर दिया जाये ? क्या उनकी जिन्दगी का आपकी TRP के सामने कुछ मोल नहीं ?

सर ये पत्र मैं इसीलिए लिख रहा हूँ क्युकि आपके प्राइम टाइम से मुझे गहरा दुःख हुआ है | मैं आपसे बस यही कह सकता हूँ कि कम से कम आप TRP के लिए अपना प्राइम टाइम न करें | आप मेरे वही निर्भीक, निडर और निष्पक्ष अर्नब बने रहें | TRP... हो सकता है आपको कम मिले | पर मेरे मन में आपको इज्ज़त बहुत मिलेगी सर | कल देश का बच्चा बच्चा अर्नब बनना चाहेगा | और कहेगा देखो वो पत्रकारिता का स्तम्भ जा रहा है जो न किसी से डरा है न किसी से डरेगा | और मैं अर्नब जैसा पत्रकार बनना चाहता हूँ |